कहीं मंदिर की तो कहीं मूर्ति की परिक्रमा क्यों होती है? सब समझ लीजिए
धार्मिक अनुष्ठान में परिक्रमा का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं, कितने प्रकार परिक्रमा होती है और इसका महत्व क्या है।

परिक्रमा करते भक्त।(Photo Credit: Wikimedia Commons)
भारत में मठ-मंदिरों को श्रद्धा और आस्था का केंद्र कहा जाता है। मंदिर में देवी-देवताओं के दर्शन के साथ-साथ परिक्रमा का भी विशेष महत्व है। बता दें कि मंदिर या देव प्रतिमा के चारों ओर घूमकर पूजा-अर्चना करने की प्रक्रिया को परिक्रमा कहते हैं। इसे ‘प्रदक्षिणा’ भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म में परिक्रमा को आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करने और जीवन के चक्र को समझने का एक माध्यम माना गया है। परिक्रमा के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनका पालन भक्त अलग-अलग मंदिरों में करते हैं।
देव परिक्रमा
यह सबसे सामान्य परिक्रमा है, जिसमें भक्त मंदिर के गर्भगृह में स्थित मुख्य देवता की मूर्ति के चारों ओर घूमते हैं। इसे सामान्य रूप से ‘आंतरिक परिक्रमा’ कहा जाता है। जैसे उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ मंदिर में भक्त शिवलिंग के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा के बाद परिक्रमा की जाती है।
हालांकि, कुछ देवताओं की परिक्रमा अलग होती है, जैसे भगवान शिव कि अर्ध यानी आधी परिक्रमा ही की जाती है। भगवान विष्णु की तीन बार परिक्रमा का विधान है, देवी दुर्गा की एक और हनुमान जी की तीन परिक्रमाएं की जाती है।
प्रदक्षिणा मार्ग परिक्रमा
कुछ मंदिरों में गर्भगृह के बाहर एक विशेष परिक्रमा मार्ग होता है। इसे ‘बाहरी परिक्रमा’ कहते हैं, और इसमें भक्त पूरे मंदिर परिसर के चारों ओर घूमते हैं। मदुरै में स्थित मीनाक्षी मंदिर में परिक्रमा के लिए विशाल मार्ग बनाया गया है। इसके साथ ओडिशा में स्थित जगन्नाथ मंदिर पुरी में भक्त मंदिर की बाहरी दीवार के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
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सप्त परिक्रमा
सप्त परिक्रमा का अर्थ है देव प्रतिमा के चारों ओर सात बार घूमना। इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। यह परिक्रमा मुख्य रूप से विष्णु और शिव मंदिरों में की जाती है। आंध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर में भक्त भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति के चारों ओर सात बार परिक्रमा करते हैं।
साथ ही गुजरात में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ मंदिर में भी सप्त परिक्रमा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि क्रिया को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
गोवर्धन परिक्रमा
गोवर्धन परिक्रमा भगवान कृष्ण की लीला से प्रेरित है और भक्त वृंदावन के पास स्थित गोवर्धन पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा में लगभग 21 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। इसे पैदल, दंडवत (लेट-लेटकर) या घुटनों के बल करते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देव से क्रोध से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपने छोटी उंगली पर उठा लिया था। भक्त यहां भगवान कृष्ण की लीला के स्मरण में परिक्रमा करते हैं।
नर्मदा परिक्रमा
नर्मदा परिक्रमा भारत की सबसे लंबी और कठिन परिक्रमा में से एक है, जिसमें भक्त नर्मदा नदी के पूरे तट की पैदल परिक्रमा करते हैं। इसे जीवन का सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है। इस परिक्रमा में नदी के दोनों किनारों पर यात्रा की जाती है।
नर्मदा परिक्रमा 2600 किलोमीटर की लंबी यात्रा है, जिसे पूरा करने में करीब तीन साल, तीन महीने और 13 दिन लगते हैं। यह परिक्रमा एक साथ नहीं बल्कि टुकड़ों में पूरा किया जाता है।
पंचकोशी परिक्रमा
पंचकोशी परिक्रमा विशेष रूप से काशी, अयोध्या और उज्जैन में की जाती है। इसमें भक्त तीनस्थलों के पांच प्रमुख स्थानों का भ्रमण करते हैं। यह परिक्रमा बहुत ही पवित्र मानी जाती है।काशी परिक्रमा के दौरान प्रमुख शिवलिंग और धार्मिक स्थलों के दर्शन किए जाते हैं। वहीं अयोध्या की पंचकोशी परिक्रमा में अयोध्या धाम के साथ-साथ श्री राम जन्भूमि की परिक्रमा का भी फल प्राप्त होता है।
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दंडवत परिक्रमा
दंडवत परिक्रमा कठिन परिक्रमा में गिना जाता है, जिसमें भक्त हर कदम पर लेटकर प्रणाम करते हुए आगे बढ़ते हैं। इस परिक्रमा में संयम, ध्यान, ऊर्जा और भक्तिभाव का विशेष ध्यान रखा जाता है।
बता दें कि महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में स्थित पंडरपुर मंदिर भक्त भगवान विट्ठल की मूर्ति के चारों ओर दंडवत परिक्रमा करते हैं। वहीं वृन्दावन में स्थित राधा-कृष्ण के मंदिरों में भी दंडवत परिक्रमा की जाती है।
परिक्रमा का क्या है आध्यात्मिक महत्व?
धर्म शास्त्रों में यह बताया गया है कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को पूरा तभी माना जाता है, जब भक्त देव प्रतिमा या स्थान कि परिक्रमा करते हैं। कहा जाता है कि परिक्रमा के दौरान भक्त मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। इसके साथ परिक्रमा भक्त के समर्पण और श्रद्धाभाव को दर्शाती है। कहा जाता है परिक्रमा करते समय मंत्रोच्चार और ध्यान करने से मन व शरीर शुद्ध होता है। शास्त्रों में परिक्रमा को जीवन के चक्र और आत्मा की यात्रा का प्रतीक कहा जाता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।
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