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प्रदोष व्रत के दिन क्यों शाम के समय ही होती है महादेव की पूजा?

भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत के दिन संध्या काल में महादेव की उपासना की जाती है। आइए जानते हैं क्या है इसका कारण और पूजा विधि।

Image of Bhagwan shiv Statue

भगवान शिव की प्रतिमा।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

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भगवान शिव की उपासना के लिए प्रदोष व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। बता दें कि प्रत्येक मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत का पालन किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष दिन पर भगवान शिव की उपासना करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं। बता दें कि प्रदोष व्रत पूजा के लिए शाम का समय निर्धारित रहता है। आइए जानते हैं क्या है इसका कारण।

प्रदोष काल में शिव पूजा का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष काल सूर्यास्त और रात्रि के प्रथम प्रहर के बीच का समय होता है, जिसे सबसे शुभ और फलदायक माना गया है। मान्यता है कि इसी समय भगवान शिव तांडव नृत्य करते हैं और इस विशेष मुहूर्त में उनकी उपासना करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

 

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भगवान शिव को संध्या के समय पूजा करने का कारण यह भी है कि यह समय दिन और रात के संधिकाल का प्रतीक होता है। संधिकाल यानी जिस समय दिन का रात से मिलन होता है, इस समय को आध्यात्मिक जागरण का समय माना गया है, जब ब्रह्मांड की ऊर्जा सबसे अधिक सक्रिय होती है। इस समय शिव की आराधना करने से भक्तों को न केवल भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि वे आध्यात्मिक उन्नति भी कर सकते हैं।

प्रदोष व्रत की विधि

प्रदोष व्रत को विधिपूर्वक करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। इसके लिए व्रत रखने वाले लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए और भगवान शिव की आराधना करने का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन संध्या के समय पूजा के दौरान शिवलिंग का जल, दूध, दही, शहद और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद बेलपत्र, धतूरा, भांग और चंदन अर्पित किए जाते हैं।

 

भगवान शिव की आरती करने के साथ ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे मन और आत्मा को शांति मिलती है। प्रदोष व्रत की कथा सुनने और सुनाने का विशेष महत्व है। कथा सुनने से भक्तों को व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है और शिव की कृपा से जीवन के संकट दूर होते हैं।

 

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पूजा के दौरान भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र, शिव तांडव स्तोत्र, शिव पंचाक्षर स्तोत्र और षडाक्षर स्तोत्र का पाठ करने से भी लाभ मिलता है। पूजा के अंत में भगवान शिव को फल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाएं और आरती करें। इसके बाद इस प्रसाद को बांटा जाता है। व्रतधारी को रात्रि में सात्त्विक भोजन करना चाहिए।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।


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