वृंदावन की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में राधावल्लभ संप्रदाय का विशेष स्थान है। मान्यता है कि 16वीं शताब्दी में हरिवंशाचार्य जी महाराज ने इस संप्रदाय की स्थापना की थी। राधावल्लभ संप्रदाय की मान्यता है कि श्रीकृष्ण का स्वरूप तभी पूर्ण है, जब वह श्रीराधा के साथ हों। पुराणों में राधा को भगवान की ह्लादिनी शक्ति कहा गया है, जो प्रेम और आनंद का स्रोत है। यही वजह है कि इस संप्रदाय में कृष्ण जी की आराधना उनके 'राधा वल्लभ' यानी राधा के प्रियतम स्वरूप में की जाती है।
इस संप्रदाय से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, जब रासलीला के दौरान राधा वहां से चली गईं, तो कृष्ण भी उनके पीछे चले गए और पूरा रास अधूरा रह गया। मान्यता है कि इस घटना ने यह संदेश दिया कि राधा के बिना कृष्ण का अस्तित्व अधूरा है। राधावल्लभ संप्रदाय की पूजा-पद्धति और परंपराओं में यही दर्शन झलकता है। यहां भक्ति का आधार नियम या कठोर साधना नहीं, बल्कि शुद्ध प्रेम और भावनाओं की गहराई है। वृंदावन स्थित राधावल्लभ मंदिर इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है, जहां आज भी राधा-कृष्ण की अद्वितीय आराधना होती है।
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पुराणों से जुड़ी मान्यता
पुराणों में वर्णन है कि भगवान श्रीकृष्ण की सभी शक्तियों में ह्लादिनी शक्ति (आनंद और प्रेम देने वाली शक्ति) सबसे श्रेष्ठ है और वही शक्ति श्री राधा हैं। राधावल्लभ संप्रदाय में बिना राधा के श्रीकृष्ण का स्वरूप पूर्ण नहीं माना जाता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण और पद्म पुराण में उल्लेख मिलता है कि राधा भगवान की आत्मा और उनकी शक्ति हैं। पद्म पुराण में कहा गया है कि राधा और कृष्ण एक ही सत्ता के दो रूप हैं। राधा का नाम कृष्ण के बिना अधूरा है और कृष्ण का नाम राधा के बिना अधूरा है। इसी आधार पर राधावल्लभ संप्रदाय में राधा को प्रधान और कृष्ण को राधा के वल्लभ यानी प्रियतम रूप में पूजा जाता है।
संप्रदाय की उत्पत्ति
राधावल्लभ संप्रदाय की स्थापना हरिवंशाचार्य जी महाराज (16वीं शताब्दी) ने की थी। वह ब्रजभूमि के महत्त्वपूर्ण संतों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने इस परंपरा में राधारानी को भगवान से भी श्रेष्ठ स्थान दिया और भक्ति का मार्ग दिखाया है।
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खासियत और मान्यताएं
- इस संप्रदाय में राधा और कृष्ण की संयुक्त उपासना होती है लेकिन इसमें राधा को प्रधान माना जाता है।
- राधावल्लभ संप्रदाय का मुख्य मंत्र है – 'राधावल्लभ' यानी श्रीकृष्ण को राधा के प्रियतम स्वरूप में देखना।
- यहां भक्ति का आधार केवल प्रेम और रागात्मक भक्ति है। इस संप्रदाय में नियमों, वैराग्य या कठोर साधनाओं से अधिक महत्व भावनाओं और हृदय की शुद्धता को दिया जाता है।
- इस संप्रदाय में भजन, कीर्तन और राग-रंग के माध्यम से भगवान की आराधना की जाती है।
- राधावल्लभ मंदिर (वृंदावन) इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है, जहां परंपरागत पूजा-पद्धति और सेवाएं प्रेम और भाव से की जाती हैं।