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रमजान में छूट गया है आपका रोजा? ऐसे कर सकते हैं कजा और कफ्फारा

इस्लाम धर्म में बताया गया है कि रमजान महीने रोजा रखना सबका फर्ज होता है। हालांकि, रोजा यदि छूट जाए या न रख पाएं तो इसके कजा और कफ्फारा का नियम बताया गया है।

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सांकेतिक चित्र(Photo Credit: Canva Image)

रमजान महीना शुरू हो चुका है और इस्लाम धर्म में इस महीने को बहुत पवित्र माना जाता है। बता दें कि मुस्लिम धर्म से धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि इस दौरान रोजा रखना हर मुसलमान के लिए फर्ज होता है। हालांकि, बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर मोहम्मद शमी और उनके द्वारा रमजान के दौरान रोजा न रखने की चर्चा काफी तेज है।

 

बता दें कि इस समय भारतीय क्रिकेट टीम के गेंदबाज मोहम्मद शमी चैंपियंस ट्रॉफी में टीम इंडिया का हिस्सा हैं, जिस वजह से उन्होंने मैच के दौरान पानी पिया, जिस वजह से नया विवाद शुरू हो गया। अब ये चर्चा तेज है कि अगर कोई रमजान के दौरान रोजा तोड़ देता है या किसी मजबूरी या गलती से रोजा छूट जाता है, तो उसे क्या करना चाहिए। बात दें कि इसके लिए इस्लाम में कजा और कफ्फारा का नियम है।

 

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अगर रमजान में छूट जाए तो क्या करें

अगर किसी वजह से रोजा नहीं रखा गया, जैसे बीमारी, सफर या किसी दूसरे वजह से, तो उसे बाद में रखा जा सकता है। इसे कजा रोजा कहा जाता है। कजा का मतलब होता है ‘बाद में पूरा करना’। जब कोई किसी वजह से रोजा नहीं रख पाया, तो वह रमजान के बाद किसी भी समय उस छूटे हुए रोजे को रख सकता है। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि यदि रमजान में तीन रोजे छूट गए, तो महीना खत्म के बाद तीन दिनों तक रोजा रखकर उसकी भरपाई की जा सकती है।

क्या होता है कफ्फारा?

हालांकि, अगर रोजा जानबूझकर तोड़ा गया हो या बिना किसी वजह के नहीं रखा गया हो, तो इसके लिए सिर्फ कजा करना ही काफी नहीं होता, बल्कि कफ्फारा भी अदा करना पड़ता है। कफ्फारा का मतलब होता है ‘प्रायश्चित’ या ‘माफी के लिए किया जाने वाला काम’। इस्लाम में कफ्फारा के तहत यह हुक्म दिया गया है कि जो भी जानबूझकर रोजा तोड़ता है, उसे इसके बदले में लगातार 60 रोज यानी इतने दिनों तक रोजा रखना होगा। अगर उसके ऐसा करना मुमकिन नहीं है, तो 60 गरीबों को खाना खिलाना जरूरी होता है।

 

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इस्लामिक मामलों के जानकार बताते हैं कि अगर किसी ने बिना किसी वजह के रोजा नहीं रखा या जानबूझकर तोड़ा, तो उसे सबसे पहले अल्लाह से तौबा करनी चाहिए और इस गलती के लिए माफी मांगनी चाहिए। इसके बाद या तो 60 दिनों के लगातार रोजे रखे जाएं या फिर जरूरतमंदों को खाना खिलाया जाए। यह खाना ऐसा होना चाहिए जो आमतौर पर लोग खुद खाते हैं, यानी इसे हल्का या कमतर नहीं होना चाहिए।

 

कजा और कफ्फारा में यह अंतर होता है कि कजा सिर्फ उन रोजों के लिए होता है, जो किसी मजबूरी की वजह से छूट गए हों, जबकि कफ्फारा उन रोजों के लिए दिया जाता है, जो जानबूझकर तोड़े गए हों।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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