इस्लाम धर्म में शब-ए-बारात एक बहुत ही खास रात मानी जाती है। इसे इस्लामिक कैलेंडर के आठवें महीने शाबान की 15वीं रात को मनाया जाता है। इस रात को इसलिए खास माना जाता है क्योंकि इसे इबादत, दुआ और अपने पैगंबर से माफी मांगने की रात माना जाता है। बता दें कि 13 फरवरी को शुरू हुआ शब-ए-बारात, 14 फरवरी की शाम को खत्म हो जाएगा।
शब-ए-बारात का मतलब है 'रिहाई की रात' या 'गुनाहों से माफी की रात'। यह रात बहुत ही बरकत वाली मानी जाती है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि इस रात अल्लाह अपने बंदों की दुआएं कबूल करते हैं और उनके गुनाहों को माफ कर देते हैं। इसलिए इस रात को मुस्लिम समाज में बहुत अहमियत दी जाती है और लोग पूरी रात इबादत में बिताते हैं।
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इस्लाम में शाबान महीने की खासियत
इस्लाम में शाबान का महीना बहुत खास होता है, क्योंकि यह रमजान से पहले का महीना होता है और पैगंबर हजरत मुहम्मद ने इसे इबादत के लिए खास बताया है। शब-ए-बारात की रात को लोग अपने ईश्वर से अपने बीते हुए गुनाहों की माफी मांगते हैं और अपने आने वाले जीवन के लिए दुआ करते हैं। इस रात को यह भी माना जाता है कि अल्लाह अगले साल के लिए बंदों की तकदीर लिखते हैं। इसलिए लोग इस रात को खास तौर पर जागकर इबादत करते हैं और खुदा से रहमत की दुआ मांगते हैं।
इस रात को लेकर मुस्लिम समाज में अलग-अलग परंपराएं देखने को मिलती हैं। कुछ लोग पूरी रात मस्जिदों में या अपने घरों में नमाज और कुरान पढ़ते हैं और दुआ करते हैं। वहीं, कुछ लोग इस रात कब्रिस्तान जाकर अपने पूर्वजों के लिए दुआएं करते हैं और उनके लिए माफी मांगते हैं।
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