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शीतला देवी को क्यों चढ़ाया जाता है ठंढा खाना और नीम, यहां जानें कथा

हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं, कब रखा जाएगा यह व्रत और इससे जुड़ी पौराणिक कथा।

Image of Devi Sheetala

देवी शीतला(Photo Credit: Wikimedia Commons)

हिन्दू धर्म में शीतला अष्टमी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। बता दें कि हर साल चैत्र महीने में होली पर्व के 8 दिन बाद शीतला अष्टमी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। सनातन धर्म में देवी शीतला को रोग नाश करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। शीतला माता को ठंडी चीजें प्रिय होती हैं, इसलिए इन्हें शीतला कहा जाता है। हर चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में शीतला अष्टमी व्रत का पालान किया जाता है।

शीतला अष्टमी 2025 तिथि

वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 मार्च सुबह 04 बजकर 20 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 23 मार्च सुबह 05 बजकर 20 मिनट पर हो जाएगा। उदया तिथि के अनुसार, शीतला अष्टमी व्रत 22 मार्च 2025, शनिवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन पूजा मुहूर्त सुबह 06 बजकर 20 मिनट से शाम 06 बजकर 30 तक रहेगा।

 

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शीतला माता की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक गांव में लोग चेचक की बीमारी से परेशान थे। किसी को नहीं पता था कि यह रोग क्यों हो रहा है। तभी एक साधु ने बताया कि यह रोग शीतला देवी की कृपा से ही शांत हो सकता है। फिर गांव के लोग देवी शीतला की पूजा करने लगे और ठंडा भोजन चढ़ाने लगे। धीरे-धीरे गांव से बीमारी समाप्त हो गई और लोग सुख-शांति से रहने लगे।

 

एक अन्य कथा के अनुसार, शीतला देवी भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति मानी जाती हैं। उन्होंने दुनिया में रोगों को दूर करने के लिए देवी शीतला को भेजा। जब लोग चेचक और त्वचा संबंधित बीमारी पीड़ित हुए, तब उन्होंने प्रार्थना की और शीतला देवी प्रसन्न हुईं। इसके बाद से उनकी पूजा का विधान शुरू हुआ।

शीतला अष्टमी व्रत क्यों रखा जाता है?

शीतला अष्टमी का व्रत होली के आठवें दिन यानी चैत मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को रखा जाता है। इसे बसोड़ा भी कहते हैं। इस दिन महिलाएं व्रत करती हैं और परिवार की सेहत के लिए देवी से प्रार्थना करती हैं। व्रत के एक दिन पहले भोजन बनाया जाता है और अगले दिन यानी अष्टमी को उसी ठंडे भोजन (जिसे बसोड़ा कहते हैं) को देवी को अर्पित करके खुद भी खाया जाता है।

 

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माना जाता है कि इस दिन अगर कोई गर्म खाना बनाता है तो देवी नाराज हो जाती हैं। इसलिए ठंडा खाना चढ़ाना और खाना अनिवार्य होता है। नीम की पत्तियों से देवी की पूजा की जाती है क्योंकि नीम रोगनाशक होता है और शीतला माता को प्रिय भी है।

व्रत का लाभ

शीतला अष्टमी का व्रत करने से परिवार के सदस्य रोगों से बचे रहते हैं, खासकर बच्चों को त्वचा संबंधी बीमारियों से रक्षा मिलती है। यह व्रत आस्था के साथ किया जाए तो शांति और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। व्रतधारी दिन भर जल और फलाहार पर रहते हैं और सच्चे मन से माता की भक्ति करते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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