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सिंहाचलम मंदिर: जहां साल भर चंदन के लेप में ढके रहते हैं भगवान नरसिंह

विशाखापट्टनम में स्थित सिंहाचलम मंदिर भगवान नरसिंह को समर्पित प्रमुख मंदिरों में से एक है। आइए जानते हैं, इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं।

Image of Simhachalam Temple

विशाखापट्टनम में स्थित सिंहाचलम मंदिर।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो न केवल अपनी धार्मिक मान्यताओं बल्कि रहस्यमयी परंपराओं और वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक प्रसिद्ध मंदिर है आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में स्थित सिंहाचलम मंदिर भी है। यह मंदिर भगवान लक्ष्मी नरसिंह को समर्पित है और इसे दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।

 

सिंहाचल पर्वत की ऊंचाई पर बसा यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 800 फीट ऊपर स्थित है। मंदिर का नाम ‘सिंहाचलम’ दो शब्दों से मिलकर बना है- 'सिंह' जिसका अर्थ है 'सिंह' (शेर) और 'अचल' जिसका मतलब है 'पर्वत'। यह पर्वत और मंदिर भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रह्लाद के अत्याचारी पिता हिरण्यकश्यप का वध किया था।

 

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भगवान नृसिंह की पौराणिक कथा

हिंदू पुराणों के अनुसार, असुरराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु भक्त था। जब हिरण्यकश्यप ने उसे मारने की कोशिश की, तब भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और हिरण्यकश्यप का अंत किया।

 

इस घटना के बाद, भगवान नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ। तब प्रह्लाद ने उनसे शांति की प्रार्थना की और उनसे अनुरोध किया कि वे सौम्य रूप में विराजें। भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद की प्रार्थना स्वीकार की और इसी पर्वत पर 'शांत रूप' में स्वयं को प्रकट किया। इसलिए, यहां पर भगवान नरसिंह का विग्रह (प्रतिमा) सौम्य मुद्रा में है, जो अन्य नरसिंह मंदिरों की तुलना में अलग है।

मंदिर की वास्तुकला

सिंहाचलम मंदिर की बनावट द्रविड़ और कलिंग शैली का संगम है। इसमें खूबसूरत नक्काशीदार स्तंभ, विशाल द्वार और शिल्पकला के अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर और मंडप हैं, जो इसकी ऐतिहासिक भव्यता को दर्शाते हैं।

विग्रह पर चंदन लेप

इस मंदिर की सबसे रहस्यमयी और खास बात यह है कि भगवान लक्ष्मी नरसिंह की मूर्ति साल में केवल एक बार ही दर्शन के लिए खुलती है। बाकी पूरे साल विग्रह पर मोटी चंदन की परत चढ़ी रहती है। इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि भगवान ने स्वयं प्रह्लाद से कहा था कि वे सालभर चंदन से ढके रहेंगे ताकि उनके उग्र रूप की ऊर्जा संतुलित रहे।

 

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हर साल अक्षय तृतीया के दिन यह चंदन लेप हटाया जाता है और केवल एक दिन के लिए ही भक्तों को मूल मूर्ति के दर्शन होते हैं। इस दिन को 'निजरूप दर्शन' कहा जाता है। उसके बाद फिर से मूर्ति पर चंदन का लेप कर दिया जाता है। हालांकि, नृसिंह जयंती के दिन भी इस मंदिर भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

 

भक्तों का विश्वास है कि इस मंदिर में पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यहां पर भगवान नरसिंह को 'वरदराज' (इच्छा पूरी करने वाले) के रूप में पूजा जाता है। यह भी मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह की ऊर्जा इतनी शक्तिशाली है कि इसके दर्शन मात्र से ही जीवन की परेशानियां दूर हो जाती हैं।

 

यह मंदिर 18 नरसिंह मंदिरों में से एक है और इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। वैष्णव परंपरा में इसका विशेष स्थान है। साल भर यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, खासकर निजरूप दर्शन के दिन लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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