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जब भगवान विष्णु ने अधर्म के नाश के लिए लिया था नृसिंह रूप, पढ़ें कथा

भगवान नृसिंह श्री हरि के दशावतारों में से चौथे अवतार हैं। आइए जानते हैं कि नृसिंह जयंती कब मनाई जाएगी और पूजा महत्व।

Image of Narasimha Jayanti

हिरण्यकशिपु का वध करते भगवान नृसिंह।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दशावतारों में से चौथा अवतार नृसिंह अवतार है। यह अवतार अत्यंत अद्भुत और खास है क्योंकि इसमें भगवान ने आधा सिंह और आधा मनुष्य का रूप धारण किया था। यह अवतार अधर्म के विनाश और भक्त की रक्षा के लिए हुआ था। बता दें कि वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर नृसिंह जयंती मनाई जाती है। आइए जानते हैं कि यह पर्व कब मनाया जाएगा और इस दिन का महत्व क्या है।

नृसिंह जयंती 2025 तिथि

वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 10 मई को शाम 05 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इसका समापन 11 मई को रात 09 बजकर 15 मिनट पर होगा। ऐसे में 11 मई 2025, रविवार के दिन मनाया जाएगा।

 

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नृसिंह अवतार की पौराणिक कथा

पौराणिक काल में असुरराजा हिरण्यकशिपु था। उसने भगवान ब्रह्मा से कठोर तप कर अमरता का वरदान मांगा। हालांकि ब्रह्मा ने सीधे अमरता देने से मना कर दिया लेकिन हिरण्यकशिपु ने ऐसा वर मांगा जिससे वह किसी इंसान, जानवर, दिन, रात, घर के अंदर या बाहर, किसी हथियार या अस्त्र से ना मरे। वरदान पाकर वह अहंकारी हो गया और स्वयं को भगवान मानने लगा। उसने पूरे राज्य में विष्णु की भक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया।

 

हालांकि, उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को बहुत समझाया, डराया और यहां तक कि मारने की भी कोशिश की लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति से अडिग रहे। अंत जब हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा — 'अगर विष्णु हर जगह हैं, तो क्या वो इस खंभे में भी हैं?'

 

प्रह्लाद ने निडरता से कहा, 'हां, भगवान हर जगह हैं।' क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने खंभे को तोड़ा। उसी क्षण खंभे से एक अद्भुत रूप प्रकट हुआ — न पूरा मनुष्य, न पूरा पशु — वह थे भगवान नृसिंह, जिनका ऊपरी शरीर सिंह का और निचला हिस्सा मनुष्य का था। वह संध्या समय (ना दिन, ना रात), द्वार की चौखट (ना घर के अंदर, ना बाहर), अपने नाखूनों (ना अस्त्र, ना शस्त्र) से हिरण्यकशिपु को मारकर उसका अंत कर देते हैं।

नृसिंह जयंती का महत्व

नृसिंह जयंती हर साल वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान नृसिंह के पृथ्वी पर प्रकट होने का पर्व है। यह विशेष दिन भगवान विष्णु के उन भक्तों के लिए अत्यंत पावन माना जाता है जो संकट में उनकी कृपा के आश्रय में विश्वास रखते हैं।

 

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पूजा विधि

इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और भगवान नृसिंह का ध्यान करते हैं।

सुबह स्नान करके साफ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।

भगवान नृसिंह और भक्त प्रह्लाद की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

दीपक जलाकर, फूल, फल, हलवा, पंचामृत और तुलसी अर्पण करें।

विष्णु सहस्त्रनाम, नृसिंह स्तोत्र, और नृसिंह कवच का पाठ करें।

दिनभर उपवास करके रात्रि में फलाहार लिया जाता है और अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है।

धार्मिक मान्यताएं

ऐसा माना जाता है कि भगवान नृसिंह की पूजा करने से भय, शत्रु बाधा, और भूत-प्रेत दोष से मुक्ति मिलती है।

भक्त प्रह्लाद की तरह यदि कोई सच्चे ह्रदय से भगवान को पुकारे, तो वे हर संकट से उसकी रक्षा करते हैं।

कई लोग नृसिंह कवच को पढ़ते हैं जो आत्मरक्षा और भय निवारण के लिए अचूक माना गया है।

यह अवतार सिखाता है कि ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी सीमा को पार कर सकते हैं, चाहे वह समय, स्थान, या रूप की कोई भी मर्यादा हो।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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