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नवरात्रि 2025: स्कंदमाता का अवतार कैसे हुआ था, कौन हैं यह देवी?

नवरात्रि के पांचवें दिन देवी दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा होती है। आइए जानते हैं देवी दुर्गा ने क्यों स्कंदमाता का अवतार लिया था।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

नवरात्रि का पांचवा दिन देवी दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। देवी स्कंदमाता का स्वरूप बहुत दिव्य है। वह गोद में बाल स्कंद को धारण किए हुए कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं और उनका वाहन सिंह (शेर) है। उनके हाथों में कमल और आशीर्वाद का वरदान होता है, देवी के एक हाथ में बाल कार्तिकेय विराजमान रहते हैं। उनका यह रूप मातृत्व की ममता, करुणा और वीरता का अद्भुत संगम माना जाता है।

 

नवरात्रि के पांचवे दिन श्रद्धालु देवी स्कंदमाता की विशेष पूजा करते हैं। मान्यता है कि उनकी उपासना से न केवल भक्त को साहस, बुद्धि और भक्ति की प्राप्ति होती है, बल्कि भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद भी साथ ही प्राप्त हो जाता है। यही वजह है कि देवी स्कंदमाता की आराधना को जीवन में सफलता, सुरक्षा और सुख-समृद्धि का स्रोत माना जाता है।

 

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मां स्कंदमाता कौन हैं?

मां दुर्गा का पांचवां स्वरूप स्कंदमाता कहलाता है। 'स्कंद' यानी कार्तिकेय (देवताओं के सेनापति) और 'माता' यानी उनकी जननी। इस रूप में मां गोद में बाल रूप स्कंद (कार्तिकेय) को धारण किए हुए विराजमान रहती हैं। इन्हें करुणा, मातृत्व और वीरता का प्रतीक माना जाता है।

देवी दुर्गा ने क्यों लिया स्कंदमाता का रूप

देवी के इस स्वरूप से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। प्रचलित कथा के अनुसार, जब तरकासुर नामक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया कि उसे केवल भगवान शिव के पुत्र से ही मारा जा सके, तब देवताओं के लिए बड़ा संकट उत्पन्न हो गया। उस समय भगवान शिव योग में लीन रहते थे और विवाह की ओर ध्यान नहीं देते थे।

 

देवताओं की प्रार्थना और कई घटनाओं के बाद जब भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ, तो उनके पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म हुआ। यही कार्तिकेय बाद में देवताओं के सेनापति बने और उन्होंने महाबली तारकासुर का वध किया।

 

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इस प्रकार मां दुर्गा ने स्कंदमाता का रूप धारण किया, क्योंकि वह स्वयं अपने पुत्र कार्तिकेय को गोद में लेकर, संसार के रक्षक और दुष्टों के संहारक के रूप में प्रतिष्ठित करती हैं।

स्वरूप और विशेषताएं

  • देवी स्कंदमाता सिंह (शेर) पर सवार रहती हैं।
  • धार्मिक ग्रंथों में देवी के वर्णित स्वरूप के अनुसार, उनके चार हाथ होते हैं।
  • दो हाथों में कमल
  • एक हाथ में बाल स्कंद (कार्तिकेय)
  • और एक हाथ से आशीर्वाद देती हैं।
  • इन्हें पद्मासना देवी भी कहते हैं क्योंकि वह कमल पर विराजमान होती हैं।
  • उनका स्वरूप सौम्यता, शांति और मातृत्व का अद्भुत संगम माना जाता है।

पूजा और महत्व

  • मान्यता के अनुसार, देवी स्कंदमाता की पूजा से साहस, बुद्धि और भक्ति की प्राप्ति होती है।
  • देवी का यह रूप भक्तों को मातृसुलभ स्नेह प्रदान करता है और सभी दुखों का नाश करता है।
  • माना जाता है कि उनकी आराधना करने से भक्त को भगवान कार्तिकेय का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।

 

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