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विघ्नेश्वरी स्तोत्र: नवरात्रि में रोज करें पाठ, धार्मिक महत्व जानिए

नवरात्रि के दौरान श्री विघ्नेश्वरी स्तोत्र पाठ का विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं इस स्तोत्र के हर श्लोक का भावार्थ।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

श्री विघ्नेश्वरी स्तोत्र का पाठ हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि नवरात्रि में इसके नियमित पाठ से जीवन में आने वाले विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। यह स्तोत्र मां विघ्नेश्वरी को समर्पित है, जो देवी दुर्गा का ही एक स्वरूप मानी जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार इस स्तोत्र का पाठ सूर्योदय के समय या संध्या काल में करना सबसे शुभ माना गया है। इस समय पर किए गए पाठ से मन की एकाग्रता बढ़ती है और साधक को मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

 

देवी विंध्यवासिनी का मंदिर विंध्याचल धाम में स्थित है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित यह शक्तिपीठ देवी के प्रमुख धामों में गिना जाता है। मान्यता है कि मां विंध्यवासिनी अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और यहां श्रद्धा से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती है। 

श्री विघ्नेश्वरी स्तोत्र

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।
बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

 

भावार्थ:


मां विंध्यवासिनी वह देवी हैं जो राक्षस निशुम्भ और शुम्भ का संहार करने वाली हैं। वह चण्ड-मुण्ड जैसे असुरों का वध करती हैं। रणभूमि में वह तेजोमय होकर प्रकट होती हैं। ऐसी देवी विंध्यवासिनी को मैं प्रणाम करता हूं।

 

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त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी ।
गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

 

भावार्थ:


मां अपने हाथों में त्रिशूल और असुर मुण्ड को धारण करती हैं। वह पृथ्वी के संकटों का नाश करने वाली हैं। हर घर में वह अपने स्वरूप से निवास करती हैं और सबका कल्याण करती हैं।


दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी ।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

 

भावार्थ:


देवी विंध्यवासिनी दरिद्रता और दुखों को हरने वाली हैं। वह हमेशा अपने भक्तों को सुख, वैभव और विभूति प्रदान करती हैं। वे वियोग और शोक का नाश करने वाली करुणामयी मां हैं।


लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं ।
कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

 

भावार्थ:


मां की आंखें सुंदर और चंचल हैं। वह लता (कमल या पुष्प) जैसे आसन पर विराजमान होती हैं और अपने भक्तों को वरदान देती हैं। वह कपाल और त्रिशूल धारण करती हैं।


कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी ।
वरा-वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

 

भावार्थ:


मां अपने कमल जैसे हाथों से दान और आशीर्वाद देती हैं। वह सुख-दुख दोनों देने वाली हैं, परंतु अंत में मंगलमयी स्वरूप ही प्रदान करती हैं। उनका मुखमंडल कल्याणकारी और वरदायी है।

 

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कपीन्द्न जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी ।
जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

 

भावार्थ:


मां भक्तों को रात में भी शांति और सुख देती हैं। वे तीन स्वरूपों (सत, रज, तम या महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती) को धारण करती हैं। वह जल और थल दोनों में सर्वत्र निवास करती हैं।


विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी ।
महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

 

भावार्थ:


मां उत्तम और सदाचारियों का पालन-पोषण करती हैं। उनका रूप बहुत विशाल और अद्भुत है। वह अपनी दिव्य शक्ति से संसार के पेट (अर्थात् जगत) में रमण करती हैं।


पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम्‌ ।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं ॥

 

भावार्थ:


मां विंध्यवासिनी की सेवा इंद्र जैसे देवता भी करते हैं। वह असुर वंश का नाश करने वाली हैं। वह अपने भक्तों को शुद्ध और श्रेष्ठ बुद्धि प्रदान करती हैं।

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