logo

ट्रेंडिंग:

मार्गशीर्ष महीने की एकादशी क्यों कहलाती है मोक्षदा? कथा से व्रत नियम, सब जानिए

मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष में पड़ती है और यह व्रत पाप नाश, पूर्वजों की मुक्ति और आत्मा के मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाला माना जाता है।

Representative Image

प्रतीकात्मक तस्वीर, Photo Credit- Social Media

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'मोक्षदा एकादशी' कहा जाता है। यह एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यह मोक्ष (मुक्ति) प्रदान करने वाली है। इस वर्ष मोक्षदा एकादशी 30 नवंबर को शाम 4 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर 1 दिसंबर दोपहर 2 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। इसलिए व्रत का पालन 1 दिसंबर को किया जाएगा। मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने से पापों का नाश, पूर्वजों को मोक्ष मिलता है और आत्मा के मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

 

मोक्षदा एकादशी के दिन श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन उन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

 

यह भी पढ़ें- शंकराचार्य से पंगा, कभी पीएम मोदी से नाराजगी, रामभद्राचार्य की कहानी क्या है?

यह क्यों कहलाती है 'मोक्षदा'?

मोक्षदा एकादशी को मोक्षदा कहने के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसका उल्लेख विष्णु पुराण में मिलता है। प्राचीन काल में गोकुल नामक नगर में वत्स नाम के एक राजा रहते थे। राजा बहुत ही दयालु और न्यायप्रिय थे। एक रात उन्होंने एक डरावना सपना देखा। सपने में उन्होंने देखा कि उनके पिता नरक में भयंकर यातनाएं झेल रहे हैं। यह सपना देखकर राजा बहुत दुखी हो गए। उन्होंने सुबह उठकर ब्राह्मणों और पंडितों को बुलाया। राजा ने समस्या का समाधान पूछने के लिए पर्वत मुनि के आश्रम में जाने का निर्णय लिया। मुनि ने बताया कि उनके पिता अपने जीवन में अपनी पत्नी यानी राजा की मां को बहुत कष्ट देते थे। उसी पाप का परिणाम उन्हें नरक में भोगना पड़ रहा है। 

 

इससे बचने के लिए मुनि ने राजा को मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का व्रत करने को कहा जिससे वह अपने पिता को मुक्ति दिला सकते हैं। राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिपूर्वक मोक्षदा एकादशी का व्रत किया, विष्णु भगवान की पूजा की, दान-पुण्य किया और अंत में व्रत का संपूर्ण पुण्य अपने पिता को अर्पित कर दिया। इस प्रकार राजा के पिता को मोक्ष प्राप्त हुआ। इस कथा के कारण, यह एकादशी नरक के दुखों से मुक्ति और मोक्ष देने वाली मानी जाती है, इसलिए इसे 'मोक्षदा' कहा जाता है।

व्रत के नियम

  • व्रत के नियम दशमी तिथि की शाम से ही शुरू हो जाते हैं। इस दिन सात्विक भोजन करें और सूर्यास्त के बाद भोजन न करें।
  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। पूजा स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु/श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • भगवान विष्णु को तुलसी जो कि एकादशी के दिन नहीं तोड़नी चाहिए, धूप, दीप, चंदन, फल और मिठाई अर्पित करें। गीता का पाठ करें।
  • यदि आप निर्जला व्रत नहीं कर सकते हैं, तो जल और फलाहार का सेवन कर सकते हैं। किसी तरह के अन्न का सेवन न करें।

यह भी पढ़ें- 6 महीने बंद रहते हैं कपाट, फिर कौन करता है बद्रीनाथ धाम में पूजा?

पारण (व्रत तोड़ने) के नियम

  • व्रत का पारण हमेशा एकादशी के अगले दिन, यानी द्वादशी के दिन किया जाता है।
  • पारण हमेशा द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले और हरि वासर की अवधि समाप्त होने के बाद किया जाता है।
  • व्रत तोड़ने से पहले ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराएं या दान दें। इसके बाद ही सात्विक भोजन ग्रहण करें।

गीता जयंती का महत्व

  • मोक्षदा एकादशी के दिन ही भगवान कृष्ण ने अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन-
  • भगवद् गीता का पाठ करना या सुनना बहुत शुभ माना जाता है।
  • गीता और कृष्ण की एक साथ पूजा की जाती है।
Related Topic:#Ekadashi Vrat 2025

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap