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श्री यंत्र से महामृत्युंजय तक, जानें इनका प्रभाव और कुछ खास बातें

हिंदू धर्म में यंत्र पूजा को बहुत ही फलदाई माना जाता है। शास्त्रों में यंत्र पूजा के महत्व और इनके प्रकार को बहुत ही विस्तार से बताया जाता है।

Image of Shri Yantra

सबसे शक्तिशाली होता है 'श्री यंत्र'।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

सनातन धर्म में यंत्र पूजा का विशेष महत्व है। यंत्रों की रचना विशेष नियमों और सिद्धांतों के आधार पर की जाती है और इनका उपयोग आध्यात्मिक साधना, पूजा, तांत्रिक अनुष्ठानों व ध्यान में किया जाता है। माना जाता है कि यंत्र के माध्यम से साधक सीधे देवी-देवता की ऊर्जा से जुड़ सकता है और अपने जीवन में सुख, शांति, सफलता और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है। आइए जानते हैं इन यंत्रों के विषय में उनसे जुड़ी मान्यताएं क्या-क्या हैं।

पौराणिक काल से हो रहा है यंत्र का उपयोग

यंत्र पूजा की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। वेद और पुराणों में यंत्रों का उल्लेख मिलता है। विशेष रूप से तंत्र शास्त्र में यंत्रों की रचना, पूजा और सिद्धि की विस्तृत जानकारी दी गई है। ‘यंत्र’ शब्द संस्कृत के ‘यम्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है- नियंत्रित करना। बता दें कि यंत्र एक विशेष तरह की ज्यामितीय आकृति होती है, जिसे देवी-देवताओं की ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यंत्र का कार्य भी उसी तरह ही है और कहा जाता है कि यह साधक की ऊर्जा को नियंत्रित कर उसे ईश्वर की शक्ति से जोड़ता है।

 

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि विश्वामित्र, अगस्त्य और दुर्वासा जैसे ऋषियों ने यंत्रों की सहायता से अनेक चमत्कार किए थे। देवी भगवती के ‘श्री यंत्र’ को सबसे शक्तिशाली माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस यंत्र की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और जीवन में ऐश्वर्य, सुख और शांति का आगमन होता है।

 

प्रमुख देवताओं के यंत्र

  • श्री यंत्र: यह सबसे शक्तिशाली यंत्र माना जाता है। इसे देवी लक्ष्मी और त्रिपुरा सुंदरी का प्रतीक माना जाता है। इसके नौ त्रिकोण ब्रह्मांडीय ऊर्जा के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्री यंत्र की पूजा से समृद्धि, सौभाग्य और आत्मिक शांति मिलती है। इस यंत्र का मूल मंत्र ‘ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ है।
  • कुबेर यंत्र: धन और वैभव प्राप्त करने के लिए इसकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि यह यंत्र विशेष रूप से व्यापारियों और व्यवसायियों के लिए फलदायक होता है। इस यंत्र का मूल मंत्र ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः’ या ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः’ है।
  • महामृत्युंजय यंत्र: भगवान शिव से संबंधित यह यंत्र रोग, भय, और मृत्यु से रक्षा करता है। इस यंत्र की साधना से आयु वृद्धि और आरोग्यता प्राप्त होती है। महामृत्युंजय यंत्र का मंत्र ‘ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ’ है।
  • हनुमान यंत्र: बल, साहस और विजय पाने के लिए इस यंत्र की पूजा की जाती है। हनुमान यंत्र साधक को नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है। हनुमान यंत्र के लिए एक प्रसिद्ध मंत्र ‘ॐ हं हनुमते नमः’ है।
  • सूर्य यंत्र: यह यंत्र आत्मविश्वास, प्रतिष्ठा और स्वास्थ्य में वृद्धि करता है। सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने के लिए इसका पूजन किया जाता है। सूर्य यंत्र का मूल मंत्र ‘ॐ घृणि सूर्याय नमः’ है। 
  • गणेश यंत्र: विघ्नों को दूर करने और कार्यों में सफलता के लिए गणेश यंत्र की पूजा लाभकारी होती है। इस यंत्र की संरचना में एक त्रिकोण, एक चक्र और गणेश जी की आकृति शामिल होती है। साथ ही इस यंत्र का मूल मंत्र ‘ॐ गं गणपतये नमः’ है।

यंत्र पूजा की विधि

यंत्र पूजा करने के लिए विशेष नियमों का पालन किया जाता है। यंत्र को किसी पवित्र स्थान पर स्थापित किया जाता है, जैसे कि पूजा कक्ष या साधना स्थल। यंत्र को स्थापित करने से पहले उसे शुद्ध जल, गंगाजल, और दूध से स्नान कराया जाता है। फिर उसे लाल या पीले वस्त्र पर रखा जाता है।

 

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यंत्र के समक्ष दीपक और अगरबत्ती जलाकर, पुष्प, चंदन, और अक्षत अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद संबंधित देवता के मंत्रों का जाप करते हुए यंत्र की पूजा की जाती है। श्री यंत्र के लिए ‘श्री सूक्त’ या ‘लक्ष्मी बीज मंत्र’ का जाप किया जाता है, वहीं महामृत्युंजय यंत्र के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है।

यंत्र से जुड़ी मान्यताएं

ऐसा माना जाता है कि यंत्र में देवी-देवताओं की ऊर्जा निवास करती है। विधिपूर्वक यदि उनकी पूजा की जाए, तो यंत्र साधक के जीवन में चमत्कारी परिवर्तन ला सकता है। ऐसी भी मान्यता है कि यंत्र की शक्ति तभी जागृत होती है जब उसमें नित्य पूजा और मंत्र जप किया जाए। केवल सजावट के लिए रखने से इसका पूर्ण लाभ नहीं मिलता। यंत्रों को हमेशा स्वच्छ और पवित्र स्थान पर रखा जाना चाहिए और उन्हें नियमित रूप से जल और फूल अर्पित करना चाहिए।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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