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क्या है नैनोबॉडी जो कोविड जैसी महामारी को हराने में हो सकता है मददगार?

वैज्ञानिकों का कहना है कि एआई द्वारा बनाई गई नैनोबॉडी कोविड जैसी महामारी में वायरस से लड़ने में काफी असरदार साबित हो सकती है।

Representational Image । Photo Credit: AI Generated

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

21वीं सदी में जब पूरी दुनिया कोविड‑19 जैसी महामारी की चपेट में आई, तब उसने मौजूदा मेडिकल डेवलेपमेंट पर कई सवालिया निशान लगा दिए थे। इस संकट ने वैज्ञानिकों को नई और बेहतर तकनीकों के बारे में विचार करने के लिए प्रेरित किया। इन्हीं तकनीकों में से एक, एआई का उपयोग करके अब वैज्ञानिकों ने बायो मेडिकल इनोवेशन के क्षेत्र में भी अहम भूमिका निभाई है। एआई का प्रयोग करके वैज्ञानिकों ने डिज़ाइन की हैं नैनोबॉडीज़। ये नैनोबॉडीज़ आकार में बेहद सूक्ष्म होते हुए भी वायरस को मारने में काफी सक्षम होंगे।

 

वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में यह तकनीक न केवल कोविड‑19 बल्कि इबोला, जीका और अन्य वायरल संक्रमणों के इलाज में भी क्रांति ला सकती है। इस लेख में खबरगांव आपको बताएगा कि नैनोबॉडीज़ क्या होती हैं, एआई उनकी डिज़ाइनिंग में किस प्रकार सहायता करता है, और किस तरह यह तकनीक वायरल बीमारियों से लड़ने का भविष्य बदल सकती है।

 

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क्यों होती हैं नैनोबॉडीज़?

नैनोबॉडी एक तरह की सूक्ष्म आकार की एंटीबॉडीज़ हैं जो कि मूलतः ऊंट, लामा और अल्पाका जैसे जानवरों के इम्यून सिस्टम से प्राप्त तकनीक की मदद से विशेष प्रकार से बनाई जाती हैं। ये सामान्य एंटीबॉडी की तुलना में बहुत छोटे आकार की होती हैं (लगभग 15 kDa) और किसी भी वायरस या प्रोटीन के छोटे‑से‑छोटे भाग से भी जुड़ने में सक्षम होती हैं। इन्हें सिंगल-डोमेन एंटीबॉडीज़ (single-domain antibodies) कहा जाता है क्योंकि ये पारंपरिक एंटीबॉडी की तुलना में आकार में लगभग दस गुना छोटे होते हैं। 

 

नैनोबॉडीज़ की खासियत यह है कि यह काफी कम खर्चीली और उत्पादन में सरल होती हैं। नैनोबॉडीज़ SARS-CoV-2 (जिससे कोविड‑19 होता है) जैसे वायरस के सतह पर मौजूद प्रोटीन, जैसे कि spike protein, से जुड़कर संक्रमण को फैलने से रोकती हैं। पारंपरिक एंटीबॉडीज़ की तुलना में नैनोबॉडीज़ की थर्मल और केमिकल स्थिरता अधिक होती है, जिससे उनको स्टोर करने और एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में दिक्कत नहीं होती है। जहां पारंपरिक एंटीबॉडीज़ का उत्पादन महंगा होता है और इसे बनाने में भी काफी समय लगता है, वहीं नैनोबॉडीज़ को बैक्टीरिया या यीस्ट में सस्ते में तैयार किया जा सकता है। यही विशेषताएं उन्हें अगली पीढ़ी की एंटी-वायरल थेरपी बनाने में सक्षम बनाती हैं।

क्या है एआई की भूमिका?

एआई अब बायोलॉजिकल डेटा का विश्लेषण करने के साथ साथ पूरी तरह से नए प्रकार के प्रोटीन और बायोलॉजिक्स को डिज़ाइन करने में भी सक्षम हो गया है। विशेष रूप से डीप लर्निंग और प्रोटीन फोल्डिंग प्रिडिक्शन जैसे क्षेत्रों में हुए विकास ने इस तकनीक को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। उदाहरण के लिए, अल्फा फोल्ड (Alpha Fold) और रोज़ टीटीए फोल्ड (Rose TTA Fold) जैसे एआई मॉडल अब किसी प्रोटीन की त्रि-आयामी संरचना (Three Dimensional Structure) को बनाने में सहायक हो सकते हैं। यही क्षमता अब नैनोबॉडीज़ डिज़ाइन करने में उपयोग की जा रही है।

 

जब किसी वायरस के प्रोटीन की संरचना आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को दी जाती है, तो वह यह अनुमान लगा सकता है कि कौन-से अमीनो एसिड अनुक्रम उस वायरस से सबसे प्रभावी ढंग से बाइंड कर सकते हैं। इसके बाद एआई उन अनुक्रमों को प्राथमिकता देता है जो न केवल प्रभावी हों बल्कि बायोकेमिकल रूप से स्थिर भी हों। यह पूरी प्रक्रिया अब घंटों में पूरी हो सकती है, जबकि परंपरागत रूप से यही काम करने में महीनों तक लग जाता था। एआई से प्राप्त डिज़ाइनों को पहले कम्प्यूटर सिमुलेशन में जांचा जाता है और फिर उनमें से चुनिंदा डिज़ाइनों को प्रयोगशाला में तैयार कर प्रयोग किया जाता है। यह तरीका लागत और समय दोनों की भारी बचत करता है।

 

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कितना होगा असर

एआई द्वारा डिज़ाइन की गई नैनोबॉडीज़ का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वे अच्छी तरह से परिस्थितियों के साथ के साथ सामंजस्य बैठा लेती हैं। वायरस जब अपने रूप बदलते हैं, जैसा कि कोविड‑19 के डेल्टा या ओमिक्रॉन वेरिएंट्स में देखा गया है तो पारंपरिक वैक्सीन या एंटीबॉडीज़ उतने प्रभावी नहीं रहते। लेकिन एआई इतनी तेजी से वायरस के नवीनतम वेरिएंट्स के स्पाइन प्रोटीन (spike protein) की संरचना को समझकर नैनोबॉडी डिज़ाइन कर सकता है कि वह वायरस को मारने में सक्षम हो जाता है। यह विशेषता महामारी की रोकथाम में बेहद महत्वपूर्ण है। एआई नैनोबॉडीज़ को कई रूपों में तैयार किया जा सकता है—जैसे नेज़ल स्प्रे, इंजेक्शन, या ओरल कैप्सूल। इससे मरीजों को शुरुआती लक्षणों के दौरान ही प्रभावी उपचार मिल सकता है। कुछ वैज्ञानिक इन नैनोबॉडीज़ को फर्स्ट लाइन थिरेप्यूटिक शील्ड (First-line Therapeutic Shields) कह रहे हैं जो संक्रमण को शरीर में फैलने से पहले ही रोक सकते हैं। आने वाले वर्षों में यह तकनीक न केवल अस्पतालों बल्कि आम चिकित्सा केंद्रों तक पहुंच सकती है, जिससे संक्रामक रोगों से लड़ने की सामूहिक क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।

चुनौतियां क्या हैं

 

हालांकि, भले ही एआई और नैनोबॉडीज़ की यह जोड़ी बेहद आशाजनक दिखती है, लेकिन इसकी कुछ व्यावहारिक और वैज्ञानिक सीमाएं भी हैं। सबसे पहली चुनौती है- एआई द्वारा डिज़ाइन की गए स्ट्रक्चर की जैविक रूप में वैधता सिद्ध करना। कम्प्यूटर पर डिज़ाइन किया गया एक प्रोटीन वास्तविक जीवन में हमेशा उसी प्रकार व्यवहार नहीं करता जैसा कि सिमुलेशन में दिखता है। इसलिए लैब टेस्ट अब भी अत्यंत आवश्यक हैं। 

 

दूसरी समस्या है- मानव शरीर का इम्यून सिस्टम कभी-कभी नैनोबॉडी को 'बाहरी तत्व' (Foreign Element) समझकर उस पर हमला कर सकता है, जिससे इलाज का असर कम हो सकता है। तीसरी चुनौती है- रेग्युलेटरी अप्रूवल। चूंकि एआई-डिज़ाइन्ड बायोलॉजिक्स अपेक्षाकृत नई अवधारणा है, इसलिए इन्हें दवाओं के तौर पर उपयोग में लाने से पहले लंबी समीक्षा प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, यदि एआई मॉडल जिस डेटा पर आधारित हैं वह अधूरा या पक्षपाती (biased) हो, तो इसके परिणाम भी उतने सटीक नहीं होंगे। इन चुनौतियों के बावजूद, वैज्ञानिक समुदाय लगातार नए तरीकों से इन समस्याओं का समाधान खोज रहा है।

क्या है भविष्य

एआई और बायोटेक्नोलॉजी का यह मेल मेडिकल साइंस में उसी प्रकार की क्रांति ला सकता है जैसी इंटरनेट ने सूचना के क्षेत्र में लाई थी। एआई द्वारा डिज़ाइन की गई नैनोबॉडी न केवल तेज़, सस्ती और सटीक हैं, बल्कि वे लगातार बदलते वायरस के वैरिएंट्स के साथ तालमेल बैठाने में भी सक्षम हैं। यह तकनीक भविष्य की महामारियों से लड़ने में हमारे पास एक शक्तिशाली उपकरण हो सकती है।

 

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कुछ वैज्ञानिक यह अनुमान भी लगा रहे हैं कि आने वाले समय में हम 'प्लग एंड प्ले' तरीके से एआई को वायरस की जानकारी देंगे और वह उसी दिन इलाज सुझा देगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह तकनीक मेडिकल की दुनिया में काफी उपयोगी साबित हो सकती है।

 

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