जिस धान की भूसी को आप फेंक दे रहे उससे हो सकती है करोड़ों की कमाई
चावल की भूसी को न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में बेचकर करोड़ों की कमाई की जा सकती है। ग्रामीण भारत में कमाई का यह अच्छा जरिया हो सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated
भारत ने हाल ही में डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन (De-oiled Rice Bran) के निर्यात पर लगा दो साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया है। यह निर्णय केंद्र सरकार ने उस समय लिया जब घरेलू मांग स्थिर हो चुकी थी और पशु आहार उद्योग में दाम नियंत्रित स्तर पर पहुंच गए थे। यह कदम न सिर्फ कृषि प्रसंस्करण उद्योग को राहत देगा, बल्कि ग्रामीण आय, पशुपालन, और निर्यात संतुलन पर भी सकारात्मक असर डाल सकता है।
डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन दरअसल चावल की भूसी से तेल निकालने के बाद बचा हुआ हिस्सा होता है, जो पशु चारे और पोल्ट्री फीड में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। भारत हर साल करीब 1.2 करोड़ टन चावल की भूसी उत्पन्न करता है, जिससे लगभग 25 लाख टन डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन (DORB) बनता है। लेकिन 2022 में सरकार ने इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था ताकि घरेलू बाजार में पशु चारे के दाम न बढ़ें।
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अब जब यह प्रतिबंध हटाया गया है, तो इसके आर्थिक और सामाजिक असर व्यापक होंगे। किसान, मिल मालिक, फीड उद्योग और निर्यातक — सभी इस फैसले से किसी न किसी रूप में प्रभावित होंगे। इस लेख में खबरगांव हम विस्तार से देखेंगे कि यह निर्णय कैसे ग्रामीण आय को बढ़ाएगा, पशुपालन को प्रभावित करेगा, भारत के व्यापार संतुलन को किस दिशा में ले जाएगा और एशिया के अन्य निर्यातक देशों के साथ प्रतिस्पर्धा पर इसका क्या असर होगा।
1. ग्रामीण आमदनी में संभावित बढ़ोतरी
डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन के निर्यात से सबसे बड़ा लाभ ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों और चावल मिलर्स को मिलने की उम्मीद है। जब प्रतिबंध लागू था, तो मिलर्स को घरेलू बाजार में सीमित दाम पर यह उत्पाद बेचना पड़ता था। परिणामस्वरूप, राइस ब्रैन ऑयल इंडस्ट्री की लाभप्रदता घटी और किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से कम कीमतें मिलीं। प्रति 100 किलो धान में 5 से 10 किलो तक राइस ब्रैन का उत्पादन होता है। और इसमें 14-18 प्रतिशत तक का तेल निकाला जाता है।
अब निर्यात खुलने से बाजार में प्रतिस्पर्धी दाम मिलेंगे, जिससे ब्रैन खरीद मूल्य में 10–15% तक की बढ़ोतरी की संभावना है। यह लाभ चावल मिलर्स और अंततः किसानों तक पहुंचेगा।
भारत में 65% से अधिक मिलें ग्रामीण या अर्ध-शहरी इलाकों में हैं, जहां रोजगार का बड़ा स्रोत यही सेक्टर है। इस निर्णय से सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन यूनिट्स को भी फिर से गति मिलेगी, जो पहले उत्पादन घटा रही थीं।
कृषि अर्थशास्त्रियों के अनुसार, हर 1 टन डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन के निर्यात से लगभग 2,000 रुपये का वैल्यू एडिशन संभव है। यदि भारत सालाना 10 लाख टन निर्यात भी करे, तो 2,000 करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त ग्रामीण आय सृजित हो सकती है। इसके अलावा, चावल उद्योग में सहायक रोजगार — जैसे परिवहन, पैकेजिंग और लॉजिस्टिक्स — भी बढ़ेंगे।
भारत में एक करोड़ टन भूसी के उत्पादन की क्षमता है। चूंकि राइस ब्रैन ऑयल को स्वस्थ ऑयल में गिना जाता है इसलिए पूरी दुनिया में इसकी मांग बढ़ने की संभावना है। अभी तक इस मामले में भारत का चीन और जापान से खास मुकाबला है।
2. पशुपालन और चारा उद्योग पर प्रभाव
डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन भारत में पशु आहार का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह डेयरी उद्योग, पोल्ट्री फार्म, और मत्स्य पालन के लिए प्रोटीन और फाइबर का किफायती स्रोत है। प्रतिबंध का मूल कारण यही था कि घरेलू फीड की कीमतें नियंत्रण में रहें।
भारत में पशु चारे की मांग सालाना लगभग 250 लाख टन है, जिसमें राइस ब्रैन आधारित उत्पादों की हिस्सेदारी करीब 8–10% है। जब निर्यात बंद था, तब फीड उद्योग को सस्ता DORB मिल रहा था, जिससे दुधारू पशुओं की लागत घटती रही।
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अब निर्यात खुलने से घरेलू कीमतों में 5–8% की वृद्धि संभावित है। हालांकि यह वृद्धि बहुत अधिक नहीं होगी, क्योंकि भारत के पास उत्पादन सरप्लस है। यदि सरकार निर्यात कोटा प्रणाली लागू रखती है (जैसा संकेत मिला है), तो घरेलू आपूर्ति पर्याप्त बनी रहेगी।
पशुपालन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे डेयरी किसानों पर मामूली लागत दबाव पड़ेगा, परंतु बेहतर दाम मिलने से मिलर्स और किसानों की वित्तीय स्थिति सुधरेगी। लंबे समय में यह चक्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संतुलित करेगा—क्योंकि चारा उद्योग, तेल निष्कर्षण उद्योग और पशुपालन, तीनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
3. व्यापार संतुलन और विदेशी मुद्रा पर असर
भारत हर साल अरबों डॉलर का खाद्य तेल आयात करता है — विशेष रूप से पाम ऑयल, सोया ऑयल और सूरजमुखी तेल। राइस ब्रैन ऑयल उद्योग, जो घरेलू उत्पादन से जुड़ा है, इस निर्भरता को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन का निर्यात सीधे तौर पर विदेशी मुद्रा अर्जित करेगा। अनुमान है कि यदि भारत प्रति वर्ष 10–12 लाख टन DORB निर्यात करे, तो सालाना 200–250 मिलियन डॉलर का विदेशी राजस्व आ सकता है। यह भारत के कृषि निर्यात बास्केट जिसमें पहले से ही बासमती चावल, गन्ना उत्पाद, और मसाले प्रमुख हैं, उसको भी डायवर्सिफाई करेगा।
इसके अलावा, यह कदम भारत को कृषि प्रसंस्करण उद्योग को बेहतर बनाने यानी कि Agri Value Chain में ऊंचा स्थान दिलाएगा। पहले राइस ब्रैन को सस्ते दाम पर घरेलू बाजार में ही उपयोग किया जाता था, लेकिन अब यह एक निर्यात योग्य कमोडिटी के रूप में उभरेगा। इससे व्यापार घाटा (Trade Deficit) पर हल्का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, खासकर ऐसे समय में जब तेल और इलेक्ट्रॉनिक आयात दबाव बढ़ा रहे हैं।
4. एशियाई बाजारों में प्रतिस्पर्धा
डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन के बड़े निर्यातक देशों में वियतनाम, थाईलैंड, म्यांमार और पाकिस्तान शामिल हैं। इन देशों का प्रमुख बाजार बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया, वियतनाम (पोल्ट्री इंडस्ट्री के लिए) और मध्य पूर्व है।
भारत के प्रतिबंध के दौरान इन देशों ने अपनी उपस्थिति बढ़ा ली थी। उदाहरण के लिए, वियतनाम ने 2023 में 1.5 लाख टन DORB निर्यात किया, जो उसके कुल पशु चारा निर्यात का लगभग 12% था। अब भारत की वापसी से एशियाई बाजार में प्रतिस्पर्धा तेज होगी।
भारत को यहां लागत और गुणवत्ता दोनों के आधार पर बढ़त है — क्योंकि भारत का DORB अधिक प्रोटीन और कम फाइबर वाला माना जाता है। साथ ही, भारत के पास लॉजिस्टिक और उत्पादन स्केल का भी लाभ है, जिससे वह थोक आपूर्ति में बेहतर साबित हो सकता है।
हालांकि, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों की सरकारी निर्यात सब्सिडी योजनाएं भारत के लिए चुनौती हो सकती हैं। इसलिए विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को दीर्घकालिक निर्यात नीति, गुणवत्ता प्रमाणन (Feed-grade certification), और मूल्य स्थिरीकरण तंत्र (Price Stabilization System) की दिशा में काम करना होगा।
यदि ये नीतियां प्रभावी रूप से लागू की गईं, तो भारत एशिया का प्रमुख डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन का निर्यातक बन सकता है और राइस वैल्यू एडिशन चेन सिस्टम में नया आयाम जुड़ सकता है।
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निर्यात को बढ़ाने के लिए रूरल प्रोसेसिंग क्लस्टर्स का निर्माण किया जा सकता है। इसके अलावा किसानों को सीधा मूल्य लाभ दिलाने के लिए को-ऑपरेटिव मॉडल भी अपनाया जा सकता है।
डी-ऑयल्ड राइस ब्रैन के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का निर्णय कृषि अर्थव्यवस्था, ग्रामीण आमदनी और भारत के व्यापार संतुलन — तीनों मोर्चों पर सकारात्मक संकेत देता है। इससे जहां एक ओर किसानों और मिलर्स की आय बढ़ेगी, वहीं पशुपालन और डेयरी सेक्टर को दीर्घकालिक रूप से अधिक टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखला मिलेगी।
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