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बिजली-पानी चूस रहे डेटा सेंटर कैसे बन रहे हैं कमाई का अड्डा? सब समझ लीजिए

दुनिया के तमाम देशों की तरह अब भारत में भी डेटा सेंटर तेजी से बन रहे हैं। आने वाले कुछ साल में इसका असर भारत में बिजली-पानी की क्षमता पर पड़ने वाला है।

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डेटा सेंटर की कहानी, Photo Credit: Khabargaon

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भारत में जियो लॉन्च होने के बाद इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या जोरदार तरीके से बढ़ी है। जहां इंटरनेट के लिए बाकायदा साइबर कैफे चल रहे थे, अब हर शख्स के मोबाइल में इंटरनेट चल रहा है। इसी का नतीजा है कि पेमेंट के लिए, मनोरंजन के लिए, फोन कॉल और मैसेजिंग के लिए और तमाम अन्य कामों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर कहते हैं कि भारत में एक GB डेटा की कीमत, एक चाय की कीमत से भी कम है। अब सस्ते इंटरनेट और डिवाइसेज की उपलब्धता का असर यह हुआ है कि भारत में भी 'डेटा सेंटर' जैसे शब्द चर्चा में आ गए हैं।

 

बीते कुछ साल में भारत में कुछ डेटा सेंटर बनाए गए हैं और कई बड़ी कंपनियां इस रेस में उतर चुकी हैं। अभी भी कई कंपनियां भारत में डेटा सेंटर खोलने की जद्दोजहद कर रही हैं। हाल ही में रिलायंस ने ब्रुकफील्ड से एक डील की है। इस डील के तहत आंध प्रदेश के विशाखापत्तनम में 1 गीगावाट क्षमता का डेटा सेंटर खोला जाएगा। 2030 तक तैयार होने वाले इस डेटा सेंटर को बनाने में लगभग 98 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसके लिए दोनों कंपनियों ने मिलकर 'Digital Connexion' नाम से एक जॉइंट वेंचर यानी साझे की कंपनी बनाई है। अब सवाल उठता है कि आखिर डाटा सेंटर में ऐसा क्या होता है जो रिलायंस जैसी तमाम कंपनियां इसमें निवेश कर रही हैं और इतनी मोटी रकम खर्च कर रही हैं।

 

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फ्राइडे रिलीज में हम इस बार इसी डेटा सेंटर के इतिहास, भूगोल, विज्ञान और अर्थशास्त्र को समझने की कोशिश करेंगे। साथ ही, हम यह भी समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर भारत जैसे देश में डेटा सेंटर की जरूरत है या नहीं? अगर भारत में डेटा सेंटर की जरूरत है तो इसके लिए भारत कितना तैयार है और इसके फायदे-नुकसान क्या हैं? आइए विस्तार से समझते हैं...

सबसे पहले तो डेटा सेंटर को जानिए

 

आमतौर पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोग किसी न किसी डेटा को ऐक्सेस करते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप फिल्में देखते हैं तो वे फिल्में कहीं न कहीं स्टोर की गई होती हैं। आप कोई जानकारी इकट्ठा करने के लिए सर्च करते हैं तो वह जानकारी भी कहीं न कहीं स्टोर की गई होती है। इसको और आसान शब्दों में कहें तो ऐसे समझिए कि जैसे आपके फोन में मेमोरी कार्ड लगा होता है तो आप उसमें गाने, फिल्में और अन्य डॉक्युमेंट्स रख सकते हैं और जरूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसे ही इंटरनेट की दुनिया को भी 'मेमोरी कार्ड' की जरूरत पड़ती है। मेमोरी कार्ड के इसी बहुत बड़े स्वरूप को डेटा सेंटर कहा जाता है।

 

किसी एक या एक से ज्यादा जगह पर बहुत बड़े-बड़े डेटा सेंटर में बहुत ज्यादा क्षमता वाले मेमोरी कार्ड, कंप्यूटर, इंटरनेट स्विच, सर्वर और प्रोसेसर जैसी डिवाइस लगाकर बड़ा डेटा सेंटर तैयार किया जाता है। ये डेटा सेंटर डेटा को स्टोर करने के साथ-साथ उसे प्रोसेस करने और यूजर्स के इस्तेमाल के लिए तैयार रखने का काम भी करते हैं इसलिए इनकी क्षमता MB या GB के बजाय मेगावॉट में मापी जाती है। आमतौर पर अगर किसी डेटा सेंटर की क्षमता 1 मेगावॉट है तो वहां लगभग 3 से 4 हजार सर्वर लगाए जा सकते हैं।

डेटा सेंटर में क्या-क्या होता है?

 

डेटा सेंटर को आप कोल्ड स्टोरेज की तरह समझ सकते हैं। पुराने जमाने के वैसे कोल्ड स्टोरेज जहां लोग आलू या अलग-अलग सब्जियां रखकर आते थे। गर्मी में भी ये सब्जियां ठंडी रखी जाती थीं और लंबे समय तक खराब नहीं होतीं। वहां बेसिक कॉन्सेप्ट यह होता है कि जितनी जगह में आपकी चीज रखी जाएगी, आपको उतने का पैसा देना होगा। डेटा सेंटर भी इसी कॉन्सेप्ट पर काम करते हैं। इंटरनेट सर्विस देने वाली कंपनियों के अलावा जो कंपनियां डेटा सेंटर बनाती हैं वे इसी तरह से अलग-अलग ग्राहकों को जगह देती हैं और उनसे पैसे लेती हैं।

 

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डेटा सेंटर के लिए भरपूर जमीन चाहिए। छोटे डेटा सेंटर के लिए 5000 से 20000 वर्ग फुट जमीन और बड़े डेटा सेंटर के लिए कम से कम 1 लाख वर्ग फुट जमीन चाहिए होती है। उदाहरण के लिए नोएडा में गूगल का डेटा सेंटर 4.64 लाख वर्ग फुट में फैला हुआ है। गूगल ने यह एरिया अडानी डेटा सेंटर से किराए पर लिया है। अडानी डेटा सेंटर कुल 39,146 वर्ग मीटर में फैला हुआ है।


जमीन के बाद सबसे बड़ी जरूरत है बिजली। इतनी सारी मशीनरी को चलाने के लिए बिजली चाहिए और इंटरनेट। ये डेटा सेंटर अलग-अलग हिस्सों में बंटे होते हैं और इन हिस्सों में अलग-अलग रैक बनाई जाती हैं। इन रैक में सर्वर, डेटा स्टोरेज के लिए डिवाइस, स्विच और PDU (पावर डिस्ट्रीब्यूशन यूनिट) होती हैं। इन सबको आपस में जोड़ने के लिए सामान्य वायर से लेकर फाइबर ऑप्टिक केबल तक लगी होती हैं। अलग-अलग रंग की केबलों का इस्तेमाल अलग-अलग काम के लिए किया जाता है। इस तरह के अलग-अलग रैक भी आपस में जुड़े रहते हैं और आखिर में ये सभी रैक इंटरनेट से जुड़े रहते हैं। इन सब चीजों को बंद नहीं किया जा सकता है और ये हमेशा चालू रहती हैं। ऐसे में ये काफी गर्म होती हैं और इन्हें ठंडा रखने के लिए खूब बिजली लगती है। यही वजह है कि एक डेटा सेंटर में बिजली की जितनी खपत होती है, उसका 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा इन्हें ठंडा रखने में ही खर्च हो जाता है।


डेटा सेंटर कैसे काम करते हैं?

अब अगर आप इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और कुछ भी सर्च करना चाहते हैं तो यही डेटा सेंटर आपकी मदद करते हैं। हालांकि, यह काम इतनी तेजी से होता है कि आपको पता भी नहीं चलता। इंटरनेट की अच्छी स्पीड इसीलिए जरूरी होती है। अब उदाहरण से समझिए- मान लीजिए कि आपने इंटरनेट का इस्तेमाल करते हुए गूगल पर कुछ सर्च किया। गूगल आपके इसी सवाल का खोजकर लाने में महज कुछ सेकेंड लेता है लेकिन इन कुछ सेकेंड में ही आपका सवाल किसी न किसी डेटा सेंटर तक पहुंच जाता है।

 

ये डेटा सेंटर फाइबर ऑप्टिकल केबल्स के जरिए इंटरनेट एक्सचेंज प्वाइंट, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और बॉर्डर गेटवे प्रोटोकॉल (BGP) से जुड़े होते हैं। आपका सवाल जैसे ही किसी डेटा सेंटर तक पहुंचता है, वह उस कंपनी के डेटाबेस की ओर डायवर्ट कर दिया जाता है जिसके सर्वर पर वह डेटा उपलब्ध होता है। सर्वर को आप उस फाइल या किताब की तरह मानिए जिसमें वह जानकारी दर्ज हो। सॉफ्टवेयर की मदद से उस सर्वर में से जानकारी छानी जाती है और वही जानकारी आप तक भेज दी जाती है। बीच में स्विच, राउटर और तमाम सॉफ्टवेयर भी काम आते हैं ताकि आपकी मनचाही जानकारी सुरक्षित रहे और कोई और शख्स उससे छेड़खानी न कर सके।

 

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इसे थोड़ा और आसान करिए। मान लीजिए आप एक लाइब्रेरी में जाते हैं, जहां से आपको कोई जानकारी चाहिए। वह जानकारी लाइब्रेरी के किसी एक कोने में रखी हुई है। अब आपने अपना सवाल लाइब्रेरियन को लिखकर दे दिया। लाइब्रेरियन इस सवाल का विषय पूछेगा क्योंकि किताबें विषय के अनुसार अलग-अलग रैक में रखी होती हैं। ठीक इसी तरह डेटा सेंटर में रखा डेटा अलग-अलग रैक में रखा होता है और तार के जरिए सारे रैक आपस में जुड़े होते हैं। जो सॉफ्टवेयर होते हैं वही लाइब्रेरियन का काम करते हैं। आपके सवाल के हिसाब से लाइब्रेरियन बड़ी सी लाइब्रेरी के एक खास हिस्से में जाएगा। वहां की बहुत सारी लाइनों में से एक खास लाइन में जाएगा और एक खास रैक में रखी किताब से जानकारी निकालकर दे देगा।

 

एकदम इसी तरह आपके पूछे गए सवाल को डेटा सेंटर में मौजूदा डेटा के डेटाबेस से मैच किया जाता है और जो सबसे बेहतर रिजल्ट होता है, वह आप तक पहुंचा दिया जाता है। आपके लिए यह डेटा उपलब्ध रहे और इसे आप पलक झपकते ही ऐक्सेस कर सकें इसी के लिए डेटा सेंटर बनाए जाते हैं। 

 

एक और उदाहरण से समझिए- मान लीजिए अमित नाम का एक शख्स दुनियाभर के सभी लोगों की तस्वीरों का एक बढ़िया डेटाबेस तैयार करता है। अब इसके लिए वह एक वेबसाइट तैयार करेगा और किसी कंपनी से होस्टिंग लेगा। होस्टिंग देने वाली कंपनी ने किसी न किसी डेटा सेंटर में स्टोरेज ले रखा होगा। अब जैसे ही अमित अपने सारे फोटोज अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेंगे, ये सारे फोटोज किसी एक या अलग-अलग डेटा सेंटर में स्टोर हो जाएंगे। अब अगर आप किसी शख्स की तस्वीर सर्च करेंगे तो आपकी सर्च क्वेरी उस डेटा सेंटर तक पहुंचेगी और वहां से आपको वह तस्वीर मिल जाएगी।

 

डेटा सेंटर खोलने वाले पैसे कैसे कमाते हैं?

 

डेटा सेंटर बनाने वाली कंपनियां कई तरह की सेवाएं देती हैं, जिनके बदले उन्हें मोटी कमाई होती है। इन सेवाओं में क्लाउड कंप्यूटिंग, को-लोकेशन, इंटरकनेक्शन सर्विस आदि हैं। उदाहरण के लिए, अगर आप अपना सर्वर बनाना चाहते हैं तो आप इन डेटा सेंटर में जगह ले सकते हैं। डेटा सेंटर कंपनियां प्रति रैक के हिसाब से पैसे लेती हैं। बदले में आपको बिजली, इंटरनेट, कूलिंग और आईटी सेवाएं देती हैं। कोई व्यक्ति या कंपनी अपनी जरूरत के मुताबिक, किसी डेटा सेंटर में एक रैक या एक कैबिनेट या  एक पूरा सूट खरीद ले सकता है। इसके बदले में डेटा सेंटर कंपनी पैसे कमाती है।

 

कुछ कंपनियां क्लाउड बेस्ड सर्विस जैसे कि इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐज ए सर्विस (IaaS), प्लेटफॉर्म ऐज ए सर्विस (PaaS) और सॉफ्टवेयर ऐज ए सर्विस (SaaS) देती हैं। इन्हें भी किराए पर दिया जाता है। अमेजन वेब सर्विसेज और माइक्रोसॉफ्ट अज्यूर जैसी कंपनियां कई बड़े डेटा सेंटर चलाती है और IaaS, PaaS और SaaS जैसी सर्विस देती हैं। इसके अलावा, नेटवर्क मॉनीटरिंग, डेटा बैकअप, डिजास्टर रिकवरी, इंटरकनेक्शन आदि सेवाएं देकर भी ये डेटा सेंटर कमाई करते हैं।

 

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भारत में काम करने वाली डेटा सेंटर कंपनियों में से एक प्रमुख कंपनी CtrlS है। इस कंपनी ने वित्त वर्ष 2024 में 1339 करोड़ रुपये कमाए। अनुमान है कि 2025-26 में इस कंपनी की कमाई में 25 से 30 पर्सेंट का इजाफा होने की उम्मीद है। यह कंपनी अपनी क्षमता को 90 मेगावॉट से बढ़ाकर मार्च 2026 तक 180 मेगावॉट तक करने जा रही है। कई अन्य डेटा सेंटर कंपनियां भी इसी तरह से विस्तार कर रही हैं।

भारत में डेटा सेंटर का भविष्य

 

रेटिंग एजेंसी ICRA के मुताबिक, दुनिया के कुल डेटा का 20 पर्सेंट भारत में ही है लेकिन सिर्फ 6 पर्सेंट डेटा सेंटर ही भारत के पास हैं। भारत में कई डेटा सेंटर की योजना तैयार है और कंपनियां बड़े स्तर पर निवेश भी कर रही हैं। अडाणी और गूगल की 5 बिलियन डॉलर की डील इसी दिशा में एक कदम है। Macquaries रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा वक्त में भारत के डेटा सेंटर्स की कुल क्षमता 1.4 गीगावॉट है। 1.4 गीगावॉट के डेंटा सेंटर तैयार हो रहे हैं और लगभग 5 गीगावॉट के डेटा सेंटर की योजना चल रही है। इतना सब तैयार करने में लगभग 2500 से 3800 करोड़ रुपये खर्च होने वाले हैं। इसमें सर्वर पर होने वाला खर्च शामिल नहीं है।

 

समस्या यह है कि भारत में जिन शहरों में डेटा सेंटर बने हैं या बनाए जा रहे हैं, उनके पास संसाधनों की कमी पहले से ही है। भारत के 40 पर्सेंट डेटा सेंटर अभी मुंबई में हैं और 20 पर्सेंट डेटा सेंटर चेन्नई में हैं। इसकी बड़ी वजह है कि समुद्र के नीचे बिछे इंटरनेट केबल्स के लिए ये शहर लैंडिंग पोर्ट का काम करते हैं। आने वाले शहर में आंध्र प्रदेश जैसे राज्य भी डेटा सेंटर खोलने जा रहे हैं जिनसे उनके प्राकृतिक संसाधनों पर भी दबाव पड़ने वाला है।

 

S&P ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में डेटा सेंटर बढ़ने से देश में बिजली की मांग तेजी से बढ़ेगी। 2024 में भारत में जितनी बिजली की खपत हुई उसमें से डेटा सेंटर्स ने कुल 0.8 प्रतिशत बिजली का इस्तेमाल किया। S&P की रिपोर्ट कहती है कि 2030 तक डेटा सेंटर्स की हिस्सेदारी 2.6 प्रतिशत यानी 3 गुना से भी ज्यादा बढ़ जाएगी। यही रिपोर्ट कहती है कि भारत में बिजली की मांग हर साल 5.3 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी लेकिन डेटा सेंटर्स के लिए यह मांग हर साल 28 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी।

 

कमोबेश ऐसा ही हाल पानी के लिए भी होने वाला है। S&P की रिपोर्ट कहती है कि 1 मेगावॉट लोड वाले डेटा सेंटर को ठंडा रखने के लिए एक साल में 25.5 मिलियन लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। ऐसे में अगर भारत के छोटे शहरों में इस क्षमता के डेटा सेंटर लगाए जाते हैं और सरकार की ओर से सहयोग नहीं मिलता है तो उन्हें चलाना ही मुश्किल हो सकता है। मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि साल 2021 में भारत के प्रति व्यक्ति के लिए पानी की उपलब्धता 1486 क्यूबिक मीटर थी। अनुमान है कि 2031 तक पानी की उपलब्धता घटकर 1367 क्यूबिक मीटर ही रह जाएगी। ऐसे में डेटा सेंटर के लिए पानी कहां से आएगा यह बड़ा सवाल भारत के सामने है। 


भारत के लिए कितने जरूरी हैं डेटा सेंटर?

इंटरनेट एंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) और रिसर्च फर्म Kantar की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल के आखिर तक भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 90 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी। IAMAI की ही रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में भारत में 35 करोड़ लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे। IAMAI की 2015 की रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 1 करोड़ से 10 करोड़ पहुंचने में एक दशक का समय लग गया था जबकि 10 करोड़ से 20 करोड़ पहुंचने में सिर्फ 3 साल लगे। 

 

अब यही संख्या 100 करोड़ को भी पार करती दिख रही है। IAMAI की यही रिपोर्ट कहती है कि भारत का एक व्यक्ति हर दिन लगभग 90 मिनट इंटरनेट का इस्तेमाल करता है। भारत सरकार के अनुमान के मुताबिक, देश के 100 करोड़ से ज्यादा लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। 

 

AI आने के बाद अब Kaspersky ने अपने एक सर्वे में पाया है कि 89% भारतीयों ने किसी न किसी AI टूल का इस्तेमाल जरूर किया है। 74 पर्सेंट लोग आम जरूरतों के लिए AI का इस्तेमाल करते हैं तो 65 पर्सेंट लोग अपने ऑफिस के काम के लिए AI का इस्तेमाल करते हैं। अब AI के इस्तेमाल का मतलब हुआ AI मॉडल्स पर बढ़ता दबाव और हर दिन कई गुना बढ़ती क्वेरी की संख्या। यह दिखाता है कि जैसे-जैसे इंटरनेट और AI का इस्तेमाल बढ़ेगा, डेटा सेंटर जरूरी होते जाएंगे।

दुनियाभर में कितनी बड़ी इकॉनमी

 

फॉर्च्यून बिजनेस इनसाइट्स की दिसंबर 2025 की रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में साल 2024 में डेटा सेंटर का मार्केट साइज 242.72 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था जो 2025 में बढ़कर 269.79 बिलियन डॉलर हो गया। अनुमान है कि 2032 तक यह लगभग दोगुना होकर 584.86 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

 

भारत की हिस्सेदारी अभी इसमें बहुत कम है। ऐनरॉक कैपिटल की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2025 तक भारत में डेटा सेंटर इंडस्ट्री लगभग 10 बिलियन डॉलर यानी 85,580 करोड़ रुपये की थी जिसमें से 10,270 करोड़ रुपये के राजस्व की कमाई हुई। अनुमान है कि आने वाले कुछ ही सालों में भारत में यह इंडस्ट्री 4 से 5 गुना बढ़ सकती है।

 

डेटा सेंटर की बाढ़ का क्या असर होगा?

 

डेटा सेंटर तकनीकी रूप से जितना हमें सक्षम बना रहे हैं, उतना ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी हो रहा है। सितंबर 2025 में आई मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट बताती है कि AI वाले डेटा सेंटर्स के लिए बिजली बनाने और उन्हें ठंडा रखने के लिए साल 2028 तक 1068 बिलियन लीटर पानी की जरूरत होगी। यह 2024 में खर्च हुए पानी से 11 गुना ज्यादा है। अब जाहिर सी बात है कि इतने पानी की जरूरत पूरी करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जमकर होगा। 

 

इसी तरह बिजली की भी भरपूर जरूरत होगी। गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि साल 2030 तक बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए 720 बिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। अब जाहिर सी बात है कि इतना खर्च अगर कंपनियां करेंगी तो ग्राहकों पर भी इसका असर जरूर पड़ेगा। इसी के चलते गोल्डमैन सैक्स ने एक अनुमान यह भी लगाया है कि 2030 तक बिजली की कीमतें 15 से 40 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं।

 

पानी के खर्च पर गूगल की रिपोर्ट कहती है कि प्रति क्वेरी लगभग 5 बूंदें खर्च होती हैं। हर AI टूल पर दुनियाभर के लोग हर दिन औसतन 200 से 300 करोड़ क्वेरी करते हैं। अब अगर 5 बूंद को इससे गुणा कर दें तो पानी की यही मात्रा बहुत ज्यादा हो जाती है।

 

लिंकन इंस्टिट्यूट ऑफ लैंड पॉलिसी की रिपोर्ट बताती है कि एक छोटा डेटा सेंटर भी प्रति दिन इतना पानी ले रहा है जितने में 50 हजार लोगों का एक दिन का काम चल सकता है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का कहना है कि आपके फोन पर चलने वाले वीडियो को प्रोसेस करने और आपके काम के डॉक्यूमेंट्स को सहेजने वाले ये डेटा सेंटर 10 से 25 हजार घरों में खर्च होने वाली बिजली के बराबर खर्च कर डालते हैं। यही वजह है कि अमेरिका के जिन इलाकों में डेटा सेंटर तेजी से उग आए हैं, वहां पर पानी की कमी होती जा रही है। वर्जीनिया शहर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

 

 


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