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दिल्ली में रेलवे क्रॉसिंग के पास रहने वाले लोगों की कैसी है जिंदगी?

भारत में रेलवे स्टेशन के पास मौजूद पटरियों के किनारे लाखों लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं। इनकी जिंदगी कितनी मुश्किल भरी होती है आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में...

railway line in india

पटरियों के किनारे खड़े बस्ती के लोग। Photo Credit 'Khabargaon'

भारतीय रेल देश की लाइफलाइन है। भारत में रेल के जरिए हर साल करोड़ों लोग यात्राएं करते हैं। भारतीय रेलवे यात्रियों को उनके मंजिल तक पहुंचाती है जहां जाकर वह तरक्की की इबारत लिखते हैं। साथ ही रेलवे सामानों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाकर देश की तरक्की में योगदान देती है। भाप के इंजन से लेकर मौजूदा वक्त के आधुनिक रेल इंजन और कोच का इतिहास काफी शानदार रहा है।

 

देश में रेलवे ट्रैक की कुल लंबाई 108,706 किलोमीटर है। वहीं, कुल रेलवे रूट 63,028 किलोमीटर है। इन रेल की पटरियों पर रोजाना 2.40 करोड़ यात्री ट्रेनों से सफर करते हैं। भारत में हर दिन लगभग 22,593 ट्रेनें संचालित होती हैं। इनमें 13,452 यात्री ट्रेनें हैं, जो करीब 7,325 स्टेशनों को कवर करती हैं। इन स्टेशनों के बीच सैकड़ों जिले, हजारों गांव, खेल-खलिहान बाजार फल-फूल रहे हैं। 

 

पटरियों के किनारे रहते हैं परिवार

 

साथ ही रेलवे की पटरियों पर हजारों रेलवे क्रॉसिंग और पटरियां हैं, जिलके किनारे लाखों लोग अस्थायी मकान बनाकर अपना जीवन यापन करते हैं। यह परिवार सालों से पटरियों के किनारे रहते हैं, जो पलायन करके यहां आते हैं। अक्सर ये परिवार रेलवे स्टेशनों और बाजारों के पास रहते हैं और वहीं छोटा-मोटी काम करके पेट पालते हैं।  

 

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अकेले राजधानी दिल्ली में ही रेल पटरियों और क्रॉसिंग के पास लाखों लोग झुग्गियां और अस्थायी मकान बनाकर अपना और परिवार का जीवन बसर करते हैं। उत्तर रेलवे के अंतर्गत आने वाले दिल्ली के सराय रोहिल्ला स्टेशन के पास बसी दया बस्ती में ही पांच हजार झुग्गियां हैं, जहां करीब 20 हजार लोग रहते हैं। ऐसे ही ओखला, तुगलकाबाद, आश्रम आदि रेलवे क्रॉसिंगों के पास हजारों लोग रहते हैं।

 

'खबरगांव' की रिपोर्ट में जानें कैसी है लोगों कि जिंदगी

 

आपने कभी इन झुग्गियों में रहने वाले लोगों के बारे में सोचा है कि ये किस तरह से रहते हैं? पटरियों के किनारे रहते हुए उन्हें किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, वह कैसे काम-धंधा करके अपना और अपने परिवार को पेट पालते हैं? 'खबरगांव' इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि रेलवे पटरियों के पास रहने वाले लोगों की जिंदगी कैसी है...


खबरगांव दिल्ली के रेल पटरियों के किनारे रहने वाले लोगों की स्थिती के बारे में जानने के लिए 'ओखला रेलवे स्टेशन' के पास मौजूद दयाल सिंह कॉलोनी, नई दिल्ली- 10065 ईश्वर नगर मोड़ बस्ती में गया। यहां हजारों की संख्या में लोग अपने परिवारों के साथ रहते हैं। यह लोग आम लोगों की ही तरह छोटी-मोटी नौकरी करते हैं या फिर रेलवे स्टेशन और पास की ओखला सब्जी मंडी में दुकान लगाते हैं।

 

गंदगी का अंबार देखने को मिला

 

यहां जाने पर रास्ते और आसपास में गंदगी का अंबार देखने को मिला। गंदगी ऐसी कि वहां से कोई भी बिना नाक पर हाथ लगाए गुजर नहीं सकता। बालकिशुन दयाल सिंह कॉलोनी के निवासी हैं। वह रेल की पटरी के किनारे बसी अस्थायी कॉलोनी में साल 2002 से रहे हैं। बालकिशुन उत्तप प्रदेश के आजमगढ़ जिले के रहने वाले हैं। 23 साल पहले वह अपना और अपने परिवार के बेहतर भविष्य की तलाश में यहां आए थे।

 

उन्होंने बहुत निराश होकर कहा, 'इन झुग्गियों में हम किसी तरह से सिर्फ जीवन का गुजारा कर रहे हैं।  यहां रहकर ना कोई सुखमय जीवन है, ना ही आगे बढ़ने का कोई मौका और ना ही कोई भविष्य है। हम यहां झुग्गी-झोपड़ी बनाकर किसी तरह से गुजारा कर रहे हैं।'

 

बालकिशुन ने यहां की हकीकत बताते हुए कहा कि इतने सालों से दयाल सिंह कॉलोनी में रहते हुए कई लोग प्राइवेट कंपनियों में छोटा-मोटा काम करते हैं। जिन लोगों ने कमाने के बाद थोड़ा बहुत पैसा बचाया है, उससे उन्होंने ईंट की दीवार जोड़कर छत पर टिनशेड रखवा लिया है। इनमें से कुछ लोगों ने अपनी छत पर पत्थर और पटिया डाल लिया, जिससे उन्हें आलीशान छत तो नहीं लेकिन सिर ढकने के लिए थोड़ा बेहतर आशियाना जरूर मिल गया है।   

 

दयाल सिंह कॉलोनी में मूलभूत सुविधाए तक नहीं

 

दयाल सिंह कॉलोनी में सुविधाओं के नाम पर रेगिस्तानी धूल उड़ती हुई दिखाई देती है। यहां पानी की सुविधा नहीं है, आने-जाने के लिए रास्ता नहीं है, साफ-सफाई, शौचालय, पक्की नाली, सीवर लाइन जौसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। साथ ही यहां की एक बड़ी समस्या ये है कि लोग निश्चिंत होकर अपने घर में सो नहीं सकते, क्योंकि रेल पटरियों के किनारे शाम होते ही जेबकतरों और नशेड़ियों का डेरा हो जाता है।

 

बालकिशुन ने पटरियों के किनारे रहने वाले लोगों की दुश्वारियों के बारे में बताते हुए कहा कि यहां रात 10 बजे के बाद कोई घर से बाहर नहीं निकल सकता। उन्होंने कहा, 'रेल पटरियों के किनारे अंधेरा होते ही चोर-बदमाश और जेबकतरों का गिरोह एक्टिव हो जाता है, ये गिरोह यहां बैठकर नशा करते हैं। अगर वहां से कोई गुजर जाए तो ये लोगों के उससे मोबाइल, पैसे और कीमती सामान छीन लेते हैं, कोई इनका विरोध करता है तो वह लोगों को ब्लेड मार देते हैं।' 

 

पटरियों के आसपास अपराध का डेरा

 

कॉलोनी के आसपास में अपराध भी व्याप्त है। लोगों ने कहा कि क्राइम होने के बावजूद पुलिस कार्रवाई करने से बचती है। ये पटरियां शराब और गांजा पीने वालों का अड्डा हैं, क्योंकि यहां कभी पुलिस नहीं आती, जिसकी वजह से ये असामाजिक तत्व बगैर किसी डर के खुलेआम नशा और अपराध करते हैं। बालकिशुन की आवाज से आवाज मिलाकर वहां खड़े कई लोगों ने कहा कि उन्हें हमेशा इस बात का डर सताता है कि उन्हें पता नहीं कब यहां से हटा दिया जाएगा। यहां रहने वाले लोगों का यह भी नहीं पता कि रेल की पटरियों से हटने के बाद कहां जाएंगे!

 

बस्ती में वोट लगे वाल सभी पार्टी दल में मांग

 

हालांकि, इन पटरियों के किनारे रहने वालों के आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र बने हुए हैं। लोग हर चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं, इस आस में कि उनके कभी तो दिन बहुरेंगे। बालकिशुन ने बताया, 'सभी पार्टियों के नेता चुनाव के समय हमारे वोट लेने के लिए बस्ती में आते हैं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव का जिक्र करते हुए बताया कि चुनाव के समय यहां एक पार्टी की होर्डिंग लगी थी, जिसपर लिखा था 'जहां झुग्गी वहीं मकान'। पार्टी चुनाव जीत गई। पार्टी की होर्डिंग फट गई। नेता प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन हमारी झुग्गी की झुग्गी रह गई।'  

 

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वहां मौजूद एक शख्स ने कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में यहां रहने वाले लोगों के लिए झुग्गियों की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा था। लोगों को डर था कि अगर राजधानी में सरकार बदल गई तो इनकी झुग्गियां हटा दी जाएंगी। इसके अलावा उन्होंने कहा कि बस्ती के लोगों को पीने का पानी लेने के लिए दूर सड़क पर जाना पड़ता है। लोगों ने कहा कि दिल्ली सरकार ने पीने के पाने के लिए पानी की पाईप डलवाई है, लेकिन आज तक उसमें पानी नहीं आया। 

लोगों ने कहा कि यहां सीवर और नाली की कोई व्यवस्था नहीं है। बरसात के समय गलियों में घुटने भर तक पानी भर जाता है। सरकार से शिकायत करने के बाद भी इन लोगों की सुनवाई नहीं होती। उन्होंने बताया कि झुग्गियों की नालियां कोठियों से आने वाले बड़े सीवर लाइन में मिला दी गई हैं, लेकिन अगर नाली जाम हो गई तो बस्ती में ही पानी और गंदगी ओवरफ्लो होने लगती है। 

 

'सुरक्षा नाम की कोई चीज नहीं'

 

दयाल सिंह कॉलोनी में यहां रहने वाले राजकुमार ने रेल के पटरियों के किनारे रहने के अनुभव के बारे में बताया कि यहां सुरक्षा नाम की कोई चीज नहीं है। यहां गंदगी का अंबार लगा रहता है। यहां की कभी सफाई नहीं होती, जिसकी वजह से यहां मच्छर पैदा हो जाते हैं। यह मच्छर बिमारियों का कारण बनते हैं। 

 

उन्होंने कहा कि यहां सभी राजनीतिक पार्टियां वोट लेने के लिए आती हैं। चुनाव के समय नेता बस्ती की फोटो लेकर जाते हैं और वादा करके जाते हैं कि इन झुग्गियों का कायापलट कर देंगे, लेकिन इसके बाद वह फिर कभी मुड़कर नहीं देखते। राजकुमार ने बताया कि यहां एक हजार से ऊपर झुग्गियां हैं, जिनमें हजारों लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं। 

 

राजकुमार ने बताया कि यहां रहना किसी जोखिम से कम नहीं है। पटरियों पर दिनरात ट्रेनें आती-जाती हैं। इन पटरियों को पार करने में आए दिन किसी ना किसी की ट्रेन से कटकर मौत हो जाती है। मरने वालों में राहगीरों से लेकर कॉलोनी के निवासी होते हैं। कुल मिलाकर रेलवे पटरियों के किनारे रहने वालों के लिए जिंदगी जीना आसान नहीं है। 

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