क्या भारत साइबर फ्रॉड की राजधानी बनता जा रहा है, क्या कहते हैं आंकड़े?
भारत में पिछले सालों में साइबर फ्रॉड के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। इंटरनेट का ऐक्सेस और तेजी से बढ़ते डिजिटलीकरण के साथ साइबर सिक्युरिटी को लेकर कम जागरुकता इसका कारण है।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated
भारत को आज दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। UPI, मोबाइल बैंकिंग, ऑनलाइन शॉपिंग और डिजिटल सेवाओं ने आम भारतीय के जीवन को आसान बना दिया है। चाय की दुकान से लेकर मल्टीनेशनल कंपनी तक, हर लेनदेन अब डिजिटल तरीके से हो रहा है, लेकिन इसी डिजिटल सुविधा के साथ एक और अर्थव्यवस्था भी तेज़ी से पनप रही है। वह है साइबर फ्रॉड और डिजिटल अपराध की अर्थव्यवस्था। हाल के वर्षों में भारत में ऑनलाइन ठगी, फर्जी कॉल, निवेश घोटाले, UPI फ्रॉड और ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसे मामलों की बाढ़ आ गई है, जिनका असर सिर्फ़ व्यक्तिगत पीड़ितों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे वित्तीय तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहा है।
सरकारी पोर्टलों पर दर्ज साइबर अपराधों की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है और हर साल हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। यह समस्या अब केवल ‘कुछ लोगों की लापरवाही’ या ‘टेक्नोलॉजी का साइड इफेक्ट’ नहीं रही, बल्कि एक संगठित, बहु-राज्यीय और कई मामलों में अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क द्वारा संचालित अपराध उद्योग का रूप ले चुकी है। कॉल सेंटर-जैसी संरचनाएं, म्यूल बैंक अकाउंट्स, फर्जी ऐप्स और सोशल इंजीनियरिंग के जरिए साइबर फ्रॉड आज एक पूरा इकोसिस्टम बन चुका है।
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इसी पृष्ठभूमि में यह सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या भारत, अपनी विशाल डिजिटल आबादी और तेज़ ऑनलाइन अपनाने की रफ्तार के कारण, दुनिया का ‘साइबर फ्रॉड कैपिटल’ बनता जा रहा है? या फिर यह केवल बेहतर रिपोर्टिंग और बढ़ती जागरूकता का परिणाम है? इस लेख में खबरगांव साइबर फ्रॉड के बढ़ते आंकड़ों, इसके पीछे की अर्थव्यवस्था और अमेरिका, यूरोप व एशिया के अन्य देशों से तुलना करते हुए इस जटिल सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करेगा।
क्या कहती है रिपोर्ट?
सरकार और अपराध के बारे में बताने वाली रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में साइबर फ्रॉड की संख्या और इससे होने वाले आर्थिक नुकसान में भारी वृद्धि हुई है। सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक 2022 में 10.29 लाख के मुकाबले 2024 में भारत में लगभग 36.4 लाख डिजिटल/फायनेंशियल फ्रॉड की रिपोर्टें दर्ज हुईं और इससे 22,845.73 करोड़ रुपये से भी अधिक का नुकसान हुआ। देखा जाए तो यह करीब तीन गुना था।
नेशनल क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP) पर अकेले 2024 में 22.7 लाख से अधिक साइबर अपराध मामले दर्ज किए गए, जो 2023 के 15.9 लाख से 42% ज़्यादा हैं। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि साइबर फ्रॉड अब सिर्फ़ बढ़ते इंटरनेट का साइड इफेक्ट नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित और व्यापक अपराधिक समस्या बन चुका है।
बीते कुछ दिनों में हुए साइबर फ्रॉड की बात करें तो हम देखते हैं कि गुजरात में 2025 के पहले नौ महीनों में 1,011 करोड़ रुपये से अधिक की साइबर फ्रॉड की रिपोर्ट दर्ज हुई। वहीं कर्नाटक में 2023–25 के बीच कुल 5,474 करोड़ रुपये से ज़्यादा का नुकसान हो चुका है, जिसमें ही 2025 में रोज़ाना औसतन 6 करोड़ रुपये के नुकसान की खबर आई। ओडिशा में अकेले 16 महीनों में लगभग 222 करोड़ रुपये का साइबर फ्रॉड सामने आया। ये स्थानीय फ़िगर्स बताते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर साइबर फ्रॉड रोज़मर्रा की घटना बन चुका है।
क्या है वजह?
कम साइबर लिटरेसी
भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ता 2015 के बाद तेजी से बढ़े हैं, लेकिन उनमें से बहुत कम लोग साइबर सिक्युरिटी समझते हैं। सरकारी रिपोर्ट बताती हैं कि लगभग 85% साइबर फ्रॉड मामलों में ह्यूमन एरर जैसे OTP साझा करना, संदिग्ध लिंक पर क्लिक करना मुख्य कारण है।
डिजिटलीकरण
UPI, ऑनलाइन बैंकिंग और डिजिटल लेन-देन भारत में लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। अब डिजिटल लेनदेन की बढ़ती संख्या के साथ साइबर लिटरेसी की कमी इसे और बढ़ा देती है।
इंटरनेशनल साइबर फ़्रॉड नेटवर्क
कई फ्रॉड रैकेट विदेशों से ऑपरेट होते हैं, जैसे साउथ-ईस्ट एशिया के गिरोह, जो फ्रॉड का पूरा सेंटर चलाते हैं और पीड़ितों को फ़ुल-टाइम फर्जी कॉल सेंटरों में काम करने के लिए मजबूर करते हैं। यह 'डिजिटल अररेस्ट' जैसे स्कैम्स का हिस्सा हैं, जिसमें फ्रॉड्स पुलिस/सरकारी अधिकारी बनकर धमकी देकर पैसे निकालते हैं।
क्या है दुनिया की स्थिति?
जब हम वैश्विक स्तर की बात करें तो दुनिया के अन्य देश भी इससे अछूते नहीं है। FBI की रिपोर्ट के अनुसार 2024 में साइबर क्राइम के कारण नुकसान लगभग 16.6 बिलियन डॉलर यानी कि लगभग 1,35,000 करोड़ रुपये दर्ज किए गए। हालांकि, भारत अकेला नहीं है विश्व साइबर क्राइम इंडेक्स के अनुसार रूस, यूक्रेन, चीन, अमेरिका और कई यूरोपीय देशों को बड़े स्तर पर साइबर हमले झेलने पड़ते हैं और ये आमतौर पर अटैक वॉल्यूम की दृष्टि से शीर्ष पर हैं।
सिंगापुर जैसे छोटे, तकनीकी रूप से उन्नत देश भी साइबर स्कैम्स के मामले दर्ज कर रहे हैं। लगभग 46,000+ मामलों के साथ 2023 में और वहां के नागरिकों ने सैकड़ों मिलियन डॉलर का नुकसान देखा है।
इसके अलावा भारत में रिपोर्टेड साइबर फ्रॉड की संख्या अब लाखों में है, जबकि कुछ उन्नत देशों में साइबर हमले डेटा चोरी या ब्रीच के रूप में रिकॉर्ड होते हैं और उनका वित्तीय नुकसान अलग तरह से मापा जाता है। इसलिए देशों की तुलना करते समय डेटा सोर्स और मापा गया मापदंड अलग हो सकता है।
फिर भारत कहां पर?
तो क्या यह कहना ठीक है कि 'भारत दुनिया का साइबर फ्रॉड कैपिटल है'। यह बात ठीक है कि भारत में तेजी से साइबर फ्रॉड के मामले बढ़े हैं, लेकिन इसका एक कारण यह है कि भारत में फ्रॉड की रिपोर्टिंग तेजी से बढ़ी है, जिससे संख्या अधिक दिखती है। ऐसा नहीं है कि दुनिया के दूसरे देश इससे अछूते हैं। अमेरिका जैसे बड़े डिजिटल अर्थव्यवस्था वाले देश भी महत्वपूर्ण वित्तीय क्षति झेलते हैं। कुछ अन्य देशों जैसे रूस, चीन, यूक्रेन आदि को अटैक वॉल्यूम के पैमाने पर अत्यधिक खतरा है।
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लेकिन यह तय है कि भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था जितनी तेजी से बढ़ी है, साइबर फ्रॉड उतनी ही तेज़ गति से बढ़ा है और यह न केवल घटना की संख्या के संदर्भ में, बल्कि आर्थिक नुकसान और जनता की संवेदनशीलता के लिहाज़ से भी चिंता का विषय है।
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