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Operation Nemesis: जब मोसाद स्टाइल में मारे गए थे तुर्क नेता

अर्मेनियाई नरसंहार के बदले के रूप में हुए ऑपरेशन नेमेसिस ने तुर्क लोगों पर जोरदार हमला किया था। तुर्क के लोगों को चुन-चुनकर बुरी तरह मारा गया था।

Operation Nemesis

ऑपरेशन नेमेसिस की कहानी, Photo Credit: Khabargaon

साल था 1921। मार्च की 15 तारीख। बर्लिन शहर अपनी रोज़ की रफ़्तार पकड़ रहा था। सुबह का वक़्त था और सड़कों पर हल्की चहल-पहल शुरू हो चुकी थी। इन्हीं सड़कों पर टहल रहा था एक भारी-भरकम, अधेड़ उम्र का आदमी, ओवरकोट पहने और हाथ में छड़ी लिए हुए।  ये शख्स था तलात पाशा (Talat Pasha), ऑटोमन साम्राज्य का पूर्व गृह मंत्री, जो जर्मनी में एक नई पहचान के साथ जी रहा था। इस बात से बेख़बर कि उसका अतीत किसी साये की तरह उसका पीछा कर रहा है।

 

इस अतीत का नाम था- सोगोमोन टेहलिरियन (Soghomon Tehlirian)। टेहलिरियन ने बड़ी खामोशी से सड़क पार की और तलात के करीब पहुंच गया। एक पल के लिए दोनों आमने-सामने आए। कहते हैं, तलात को एक बार शक हुआ, शायद उसने टेहलिरियन को पहचान लिया था लेकिन अगले ही पल टेहलिरियन आगे बढ़ गया। जैसे ही तलात कुछ कदम और आगे बढ़ा, टेहलिरियन तेज़ी से पलटा, अपनी जेब से पिस्तौल निकाली और तलात की गर्दन पर निशाना साध दिया। एक गोली चली और ऑटोमन साम्राज्य का एक ताकतवर स्तंभ, बर्लिन की सड़क पर बेजान पड़ा था।

 

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यह शुरुआत थी एक बदले की। बदला 15 लाख लोगों के नरसंहार का। जिस तलात पाशा की हत्या हुई, उसने कभी सोगोमोन टेहलिरियन जैसे लाखों अर्मेनियाई लोगों की मौत का फरमान जारी किया था। पाशा की हत्या के बाद जब सोगोमोन टेहलिरियन को पकड़ा गया, तो भीड़ की तरफ मुड़कर उसने कहा, "मैं अर्मेनियाई हूँ, वह तुर्क। तुम जर्मनों को इससे क्या?"

Chapter 1: बैकग्राउंड

 

ऑपरेशन नेमेसिस की जड़ें उस खौफनाक त्रासदी में छिपी थीं जिसे आज दुनिया अर्मेनियाई नरसंहार के नाम से जानती है। अलिफ़ लैला के पिछले एपिसोड में हमने आपको बताया था। ऑटोमन साम्राज्य के अंतिम दिनों में, युवा तुर्क (Young Turks) सरकार ने अपने ही देश के लाखों अर्मेनियाई नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था। यह कोई अचानक भड़की हिंसा नहीं थी, बल्कि एक सोची-समझी, योजनाबद्ध कार्रवाई थी जिसका मकसद एक पूरी कौम को उनकी सरजमीं से मिटा देना था। निर्वासन के नाम पर मौत के लंबे काफिले निकाले गए, लोगों को उनके घरों से बेदखल कर सीरिया के तपते रेगिस्तानों में भूखे-प्यासे मरने के लिए छोड़ दिया गया। लाखों लोग मारे गए। न्याय के नाम पर फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद इस्तांबुल में कुछ दिखावटी मुकदमे चले लेकिन हुआ क्या? नरसंहार के मुख्य कर्ताधर्ता – तलात पाशा (Talat Pasha), अनवर पाशा (Enver Pasha) और जेमाल पाशा (Djemal Pasha) जैसे बड़े नाम – या तो देश से फरार हो गए या फिर उन्हें मामूली सजाएं देकर छोड़ दिया गया। न्याय के नाम पर हुए इस मजाक ने अर्मेनियाई समुदाय के भीतर गुस्से और हताशा की एक ऐसी आग भड़का दी, जिसे बुझाना नामुमकिन था। जब दुनिया ने आंखें मूंद लीं तो कुछ लोगों ने इंसाफ अपने हाथों में लेने की ठानी।

 

 

यहीं से जन्म हुआ 'ऑपरेशन नेमेसिस' का। जिसे तैयार किया था अर्मेनियाई क्रांतिकारी संघ (Armenian Revolutionary Federation) ARF ने। ARF का गठन 1890 में हुआ था और इसका शुरुआती मकसद ऑटोमन साम्राज्य में अर्मेनियाई लोगों के अधिकारों की रक्षा करना और सुधारों की मांग करना था। बाद में, नरसंहार और न्याय न मिलने की स्थिति में इसका एक धड़ा हिंसक बदले की ओर मुड़ गया। मकसद बिलकुल साफ था – अर्मेनियाई नरसंहार के मुख्य दोषियों को ढूंढना और उन्हें उनके किए की सज़ा देना। यह कोई सरकारी ऑपरेशन नहीं था, न ही इसके पीछे किसी बड़ी ताकत का हाथ था। एरिक बोगोसियन (Eric Bogosian) अपनी किताब "ऑपरेशन नेमेसिस" में लिखते हैं, "यह कुछ जुनूनी लोगों का मिशन था, जो मानते थे कि वे इतिहास का कर्ज चुका रहे हैं।" उन्होंने गुनहगारों की एक फेहरिस्त तैयार की और इसी के साथ शुरू हुई बदले की वह कहानी, जिसने दुनिया भर की खुफिया एजेंसियों को हैरत में डाल दिया।

 

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Chapter 2: पहला निशाना

 

ऑपरेशन नेमेसिस का पहला और सबसे बड़ा निशाना था तलात पाशा। बोगोसियन अपनी किताब में बताते हैं- “तलात शारीरिक रूप से काफी रोबदार था और उसकी कलाइयां आम आदमी से दोगुनी मोटी थीं।” यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि वह मूल रूप से तुर्क नहीं बल्कि पोमाक (Pomak) यानी बल्गेरियाई मुस्लिम था। तलात पाशा को "नंबर एक" निशाना इसलिए बनाया गया क्योंकि वह सिर्फ एक मंत्री नहीं था, बल्कि नरसंहार का मुख्य वास्तुकार माना जाता था। उसने व्यक्तिगत रूप से निर्वासन और हत्याओं के आदेश दिए थे लेकिन सवाल यह था कि उसे ढूंढा कैसे जाए? युद्ध के बाद तलात जर्मनी में छिप गया था और "अली सालिह बे" (Ali Salih Bey) के नकली नाम से बर्लिन में रह रहा था। उसे ढूंढ निकालना भूसे के ढेर में सुई तलाशने जैसा था।

 

एक अर्मेनियाई जासूस को तलात का पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई। उसने अपना नाम बदला और खुद को एक अमीर तुर्क व्यापारी "मेहमद अली" (Mehmed Ali) बताकर बर्लिन के तुर्क समुदाय में घुलमिल गया। नेमेसिस के जासूसों ने तलात की आदतों, जैसे उसकी सुबह की सैर, पर कई दिनों तक नज़र रखी एक मौका ऐसा भी आया जब तलात की तस्वीर पर से उसकी घनी मूंछें खुरचकर देखी गईं ताकि बिना मूंछों वाले "अली सालिह बे" से उसका मिलान कर सके। अंत में जब पक्का हो गया कि अली सालिह बे ही तलात पाशा है, उसे मारने की जिम्मेदारी दी गई सोगोमोन टेहलिरियन (Soghomon Tehlirian) नाम के एक लड़के को।

 

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15 मार्च, 1921, जैसा शुरुआत में बताया तलात पाशा रोज़ की तरह सुबह टहलने निकला। टेहलिरियन साये की तरह उसके पीछे लग गया और मौक़ा पाते ही तलात पाशा को ढेर कर दिया। यह बदले की शुरुआत थी लेकिन इस हत्या का एक और मकसद था। जो कोर्ट रूम में पूरा होना था। योजना के मुताबिक, टेहलिरियन ने भागने की कोई खास कोशिश नहीं की और थोड़ी ही देर में उसे पकड़ लिया गया। अब शुरू होना था इतिहास का एक और अहम अध्याय – बर्लिन मुकदमा। यह सिर्फ हत्या का मुकदमा नहीं था। यह एक तरह से अर्मेनियाई नरसंहार पर दुनिया की अदालत में पहली सुनवाई थी। न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अख़बार इसे प्रमुखता से कवर कर रहे थे।

 

बचाव पक्ष की रणनीति बिल्कुल साफ थी – टेहलिरियन को एक ऐसे शख्स के तौर पर पेश करना जिसने अपने परिवार पर हुए ज़ुल्मों का बदला लिया हो। टेहलिरियन ने अदालत में बताया कि कैसे उसने अपनी आंखों के सामने अपने पूरे परिवार को मरते देखा। यह कहानी असल में झूठ थी। असल में, टेहलिरियन विश्व युद्ध के दौरान ऑटोमन सेना के खिलाफ लड़ा था और नरसंहार के वक्त वह तुर्की में मौजूद भी नहीं था लेकिन कहानी गढ़ी गई ताकि टेहलिरियन को मुकदमे के दौरान दुनिया की सहानुभूति मिल सके।

 

इस मामले में जर्मन सरकार भी टेहलिरियन का पक्ष ले रही थी। दरअसल, जर्मन सरकार भी चाहती थी कि तुर्कों को नरसंहार का दोषी ठहराया जाए ताकि पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की अपनी भूमिका से ध्यान हटाया जा सके। इस दौरान मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और जर्मन सेनाध्यक्षों की अदालत में गवाही करवाई गई। ताकि नरसंहार में तुर्कों का रोल दुनिया के सामने आए। नतीजा वही हुआ जिसकी उम्मीद की जा रही थी। कुछ ही घंटों की बहस के बाद जूरी ने सोगोमोन टेहलिरियन को 'नॉट गिल्टी' यानी निर्दोष करार दिया। यह फैसला दुनिया भर के अख़बारों की सुर्खियां बन गया। ऑपरेशन नेमेसिस का पहला बड़ा निशाना ढेर हो चुका था।

Chapter 3: ग्रैंड वजीर 

 

तलात पाशा की हत्या और सोगोमोन टेहलिरियन के बरी होने की खबर ने दुनिया भर में सनसनी फैला दी थी। अर्मेनियाई समुदाय के लिए यह न्याय की एक बड़ी जीत थी लेकिन ऑपरेशन नेमेसिस का काम अभी ख़त्म नहीं हुआ था। उनकी लिस्ट में अभी कई और बड़े नाम बाकी थे। इनमें से एक था साईद हलीम पाशा (Said Halim Pasha), युद्ध के दौरान ऑटोमन साम्राज्य का ग्रैंड वजीर, यानी प्रधानमंत्री। युद्ध के बाद वह रोम में ऐशो-आराम की ज़िंदगी जी रहा था। दिसंबर 1921 में नेमेसिस के एक एजेंट अर्शाविर शिरागियान (Arshavir Shiragian), ने रोम में साईद हलीम पाशा को उसके विला के बाहर गोली मार दी।

 

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इसके बाद नंबर आया दो और तुर्कों का। अप्रैल 1922, बर्लिन एक बार फिर ऑपरेशन नेमेसिस का अखाड़ा बना। इस बार निशाने पर थे दो और बड़े नाम – डॉ. बेहाएद्दीन शाकिर (Dr. Behaeddin Shakir) और जेमाल आज़मी (Djemal Azmi), ये दोनों "स्पेशल ऑर्गनाइजेशन" के कर्ताधर्ता थे, वही संगठन जिसने नरसंहार को ज़मीनी स्तर पर अंजाम दिया था। डॉ. बेहाएद्दीन शाकिर और जेमाल आज़मी को बर्लिन की एक व्यस्त सड़क पर, एक साथ मारा गया। यह एक बेहद जोखिम भरा हमला था, जिसने तुर्क भगोड़ों के खेमे में दहशत फैला दी।

एक और बड़ा नाम जो नेमेसिस की लिस्ट में था, वह था जेमाल पाशा (Djemal Pasha)। तलात और अनवर के साथ, जेमाल पाशा भी ऑटोमन साम्राज्य के उन तीन सबसे ताकतवर नेताओं में से एक था, जिन्होंने नरसंहार की योजना बनाई और उसे लागू करवाया था। 


जुलाई 1922 में, जॉर्जिया की राजधानी तिफ़लिस (Tiflis) में, नेमेसिस के कुछ एजेंट ने जेमाल पाशा और उसके दो अंगरक्षकों को गोलियों से भून डाला। 

Chapter 4: ऑपरेशन समाप्त कैसे हुआ?

 

इस तरह ऑपरेशन नेमेसिस कुछ सालों तक चलता रहा। एक-एक करके कई और तुर्क नेताओं को उनके अंजाम तक पहुंचाया गया लेकिन हर ऑपरेशन के साथ जोखिम बढ़ता जा रहा था। यूरोप की पुलिस और खुफिया एजेंसियां सतर्क हो चुकी थीं। उन्हें शक होने लगा था कि ये हत्याएं किसी एक व्यक्ति का काम नहीं, बल्कि एक संगठित समूह की कार्रवाई है। धीरे-धीरे ऑपरेशन नेमेसिस अपनी रफ़्तार खोने लगा। इसकी कई वजहें थीं।
 
अर्मेनियाई क्रांतिकारी संघ (ARF) के भीतर ही इस ऑपरेशन को लेकर गहरे मतभेद पैदा हो गए थे। कुछ नेताओं का मानना था कि अब बदले की कार्रवाई रोक देनी चाहिए। उनका कहना था कि मुख्य दोषियों को सज़ा दी जा चुकी है और अब सारा ध्यान नवजात अर्मेनियाई गणराज्य को मजबूत करने पर लगाना चाहिए, जो उस समय खुद कई बाहरी और भीतरी मुश्किलों से जूझ रहा था।

 

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इसके अलावा, दुनिया का राजनीतिक नक्शा भी तेज़ी से बदल रहा था। तुर्की में मुस्तफा कमाल अतातुर्क (Mustafa Kemal Atatürk) के नेतृत्व में एक नई, ताकतवर राष्ट्रवादी सरकार उभर चुकी थी। दुनिया की बड़ी ताकतें, इस नई तुर्की सरकार के साथ अपने रिश्ते सुधारने में लग गई थीं। ऐसे माहौल में, ऑपरेशन नेमेसिस जैसी कार्रवाइयां अर्मेनिया के लिए और ज़्यादा मुश्किलें खड़ी कर सकती थीं। कुछ कट्टरपंथी नेता ऑपरेशन जारी रखना चाहते थे लेकिन आखिरकार ARF के आलाकमान ने इसे बंद करने का फैसला कर लिया। कहा यह भी गया कि ऑपरेशन चलाने के लिए अब पैसे भी कम पड़ने लगे थे। 

ऑपरेशन नेमेसिस के गुमनाम नायकों का क्या हुआ? 

 

उनमें से कइयों ने अपनी बाकी ज़िंदगी विदेश में गुजारी। सोगोमोन टेहलिरियन ने बाद में शादी कर ली और सर्बिया में जाकर बस गया, जहां उसने कॉफी का कारोबार शुरू किया। जब टेहलिरियन सर्बिया में कॉफी का कारोबार कर रहा था तो वह स्थानीय शूटिंग क्लब का सदस्य भी था और कभी-कभी पुलिस चीफ के साथ निशानेबाजी का अभ्यास करता था। हालांकि, वह शिकार करने से मना कर देता था क्योंकि उसके अनुसार वह किसी जीवित प्राणी को नहीं मार सकता था। अर्शाविर शिरागियान (Arshavir Shiragian) अमेरिका चला गया और वहां एक सफल कारोबारी बना। इन लोगों ने इतिहास के पन्नों पर अपना नाम भले ही बड़े अक्षरों में न लिखवाया हो लेकिन अपने लोगों के दिलों में वे हमेशा हीरो बने रहे। 

 

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इस पूरी कहानी का अंत एक अर्मेनियाई कवि पारुइर सेवाक की कुछ लाइनों से करते हैं, जिन्होंने लिखा, "हम संख्या में कम जरूर हैं, लेकिन हम अर्मेनियाई हैं।" ऑपरेशन नेमेसिस इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जो दिखाता है कि जब न्याय व्यवस्था विफल हो जाती है, तो इंसान अपने तरीके से इंसाफ हासिल करने की कोशिश करता है। यह कहानी है दर्द, बदले और एक कौम की कभी न ख़त्म होने वाली याददाश्त की।

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