सद्दाम हुसैन आखिर पकड़ा कैसे गया? पढ़िए उसके अंतिम दिनों की कहानी
1980 के दशक में सद्दाम हुसैन का शासन अपने चरम पर था लेकिन कुछ ही साल में हालत ऐसी हो गई कि वह भागा-भागा फिरा और आखिर में उसे पकड़कर फांसी दे दी गई।

सद्दाम हुसैन की कहानी, Photo Credit: Khabargaon
साल 1980 का दशक। इराक़ में सद्दाम हुसैन का शासन अपने चरम पर था। एक रोज़, देश के महत्वपूर्ण मंत्रालयों के डायरेक्टर-जनरलों को सुबह 8 बजे एक अनजान जगह पर इकट्ठा होने का हुक्म मिलता है। जब वह वहां पहुंचते हैं, तो उन्हें काली खिड़कियों वाली एक बस में बिठा दिया जाता है। बस उन्हें बग़दाद की सड़कों पर घुमाती है, फिर उन्हें दूसरी बस में शिफ़्ट किया जाता है, फिर तीसरी। यह सिलसिला घंटों चलता है। आख़िरकार, उन्हें शहर के बाहरी इलाके के एक महल में ले जाया जाता है। तलाशी होती है, जेबें खाली करवाई जाती हैं, सामान ज़ब्त कर लिया जाता है। फिर बस बदलती है, एक और महल आता है, फिर तलाशी होती है और इस बार उन्हें अपने हाथ कीटाणुनाशक से धोने पड़ते हैं। उन्हें एक बड़े हॉल में बिठाया जाता है। तीन घंटे बीत जाते हैं। दोपहर ढल चुकी है, न खाने को कुछ मिला है, न पीने को, न ही टॉयलेट जाने की इजाज़त। डर का आलम यह कि कोई कुछ पूछने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाता।
यह वाक़या सद्दाम हुसैन के उस डर, उस पैरानोइया (Paranoia) की एक झलक है, जो उस शख़्स की पहचान बन गया था, जिसने लगभग साढ़े तीन दशक तक इराक़ पर लोहे की मुट्ठी से राज किया। एक ऐसा शासक जो अपने ही साये से डरता था, जिसके दर्जनों महल थे, सैकड़ों बॉडीगार्ड थे और अनगिनत राज़ थे लेकिन आख़िरकार, यही डर, यही छिपने की आदत उसके पतन का कारण बनी। कैसे दुनिया का एक सबसे ताक़तवर तानाशाह एक छोटे से, ज़मीन के नीचे बने गड्ढे में छिपा मिला? कैसे उसे पकड़ा गया?
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डर का साम्राज्य
सद्दाम हुसैन। तिकरित के एक छोटे से गांव में पैदा हुआ यह लड़का इराक़ का राष्ट्रपति बना और फिर ख़ुद को एक ऐसे क़िले में बंद कर लिया, जहां शक और डर का राज था। सद्दाम का शासन सिर्फ़ ताक़त पर नहीं, बल्कि डर के नेटवर्क पर टिका था। मुखबिरों का जाल, ख़ुफ़िया पुलिस का कहर और विरोध की हर आवाज़ को कुचलने की बेरहमी लेकिन इस क्रूर शासक के अंदर एक गहरा डर भी पल रहा था – अपनी जान का डर, अपनों से धोखे का डर। यह डर समय के साथ सनक में बदल गया। सद्दाम को हर किसी पर शक था, अपने क़रीबी सहयोगियों पर भी। नतीजा? उसने ख़ुद को दुनिया से लगभग काट लिया। वह हर कुछ दिनों में अपना ठिकाना बदल लेता था। उसके दर्जनों आलीशान महल थे, जो इराक़ के कोने-कोने में फैले थे। उत्तरी कुर्दिस्तान के सिर्फ़ 50 किलोमीटर के दायरे में ही उसके 15 से ज़्यादा महल होने की बात कही जाती है! यह महल सिर्फ़ रहने की जगह नहीं थे, बल्कि अभेद्य क़िले थे। इनकी दीवारें मिसाइल हमले झेलने के लिए मज़बूत बनाई गई थीं और वह मीटिंग, जिसका ज़िक्र हमने शुरू में किया था? वह सद्दाम के इसी Paranoia का सबूत थी। उन अधिकारियों को घंटों भूखा-प्यासा रखकर, बसों में घुमाकर, बार-बार तलाशी लेकर सद्दाम सिर्फ़ यह जताना चाहता था कि बॉस कौन है। उसे डर था कि कहीं कोई उसकी हत्या की साज़िश न रच रहा हो, कहीं कोई जानकारी लीक न कर दे। मीटिंग के अंत में उसने उन अधिकारियों को हज़ारों डॉलर क़ीमत के इराक़ी दीनार इनाम में दिए और एक शानदार दावत भी दी – मानो यह बताने के लिए कि वफ़ादारी का इनाम मिलेगा।
दावत में क्या था? मेमने की टांगों और चिकन के साथ केक और जेली परोस दिए गए थे, जैसे किसी ने परवाह ही न की हो। भूखे अधिकारियों ने फिर भी सब खा लिया लेकिन जब उन्हें वापस छोड़ा गया तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि उन्हें कहां-कहां घुमाया गया था। यह था सद्दाम का तरीक़ा – डर और इनाम के ज़रिए नियंत्रण रखना। सद्दाम को ज़हर दिए जाने का भी बहुत डर था। उसके खाने की हर चीज़ पहले किसी और द्वारा चखी जाती थी। उसने अपने जैसे दिखने वाले कई हमशक्लों (Body Doubles) को भी रखा था। ये हमशक्ल सद्दाम की तरह चलने, बोलने और हाव-भाव दिखाने की महीनों ट्रेनिंग लेते थे लेकिन जब वक़्त पलटा तो ये सारे इंतज़ाम नाकाफ़ी साबित हुए।
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तानाशाह का ग़ायब होना
साल 2003, दुनिया की निगाहें इराक़ पर टिकी थीं। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने इराक़ पर हमला किया। वजह बताई गई – इराक़ के पास Weapons of Mass Destruction - WMD हैं, जो दुनिया के लिए ख़तरा हैं। हालांकि, बाद में ये दावे खोखले साबित हुए। सद्दाम हुसैन को 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया गया कि वह इराक़ छोड़ दे, वरना हमला होगा। सद्दाम ने अल्टीमेटम ठुकरा दिया। वह इराक़ी टीवी पर पूरी सैन्य वर्दी में नज़र आया, खाड़ी युद्ध के बाद पहली बार। उसने इराक़ियों से कहा, "ईश्वर की इच्छा से, जीत तुम्हारी होगी और तुम्हारा दुश्मन पीछे हटेगा।"
हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के पास एक तुरुप का इक्का था। 19 मार्च, 2003 की दोपहर, अल्टीमेटम ख़त्म होने से कुछ घंटे पहले, CIA डायरेक्टर जॉर्ज टेनेट ने बुश को एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट दी। रिपोर्ट के मुताबिक, सद्दाम अपने दोनों बेटों – उदय और क़ुसे – और कुछ मुख्य सहयोगियों के साथ बग़दाद के विला कंपाउंड के नीचे बने बंकर में मौजूद था। यह एक सुनहरा मौक़ा था। अगर ख़ुफ़िया जानकारी सही थी, तो एक सटीक मिसाइल हमला सद्दाम और उसके पूरे नेतृत्व को ख़त्म कर सकता था। बुश ने आदेश दिया – "Let's do it"। जैसे ही 48 घंटे की समय सीमा समाप्त हुई, हमला शुरू हो गया। बग़दाद में एयर-रेड सायरन बजने लगे।
स्थानीय समयानुसार सुबह 3:38 बजे, दो F-117 स्टेल्थ बॉम्बर विमानों ने कुवैत से उड़ान भरी। हर विमान पर दो हज़ार पाउंड वज़न के दो बंकर-बस्टर बम लदे थे। सुबह होने से ठीक पहले, लगभग 5:36 बजे, इन बमवर्षकों ने बग़दाद के दक्षिण में उस संदिग्ध ठिकाने पर चारों बम गिरा दिए। हमला इतना ज़बरदस्त था कि पूरा कॉम्प्लेक्स तबाह हो गया। ज़मीनी एजेंटों ने बताया कि इतनी तबाही के बाद अंदर किसी का बचना नामुमकिन था। सैटेलाइट तस्वीरों में घटनास्थल की ओर जाती एम्बुलेंसों की क़तारें दिखीं, जिससे अंदाज़ा लगाया गया कि ज़रूर कोई बड़ा नेता अंदर फंसा है। ब्रिटिश ख़ुफ़िया एजेंसियों को मिली-जुली ख़बरें मिलीं – किसी ने कहा सद्दाम मारा गया, किसी ने कहा वह बुरी तरह ज़ख़्मी है और उसे खून चढ़ाना पड़ रहा है और शायद उसके बेटे भी मारे गए हैं। यहां तक कहा गया कि सद्दाम के एक कमांडर का संदेश इंटरसेप्ट किया गया है, जिसमें वह रूस से सद्दाम के इलाज के लिए सर्जन भेजने की गुहार लगा रहा है।
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असलियत कुछ और थी। उसी दिन बाद में, इराक़ी टीवी पर सद्दाम हुसैन का एक वीडियो टेप प्रसारित हुआ। वह थका हुआ लग रहा था, मोटे फ्रेम का चश्मा पहने हुए था। सद्दाम बच कैसे गया? इसका श्रेय जाता है उन बंकरों के नेटवर्क को, जो उसने 1980 के दशक में ईरान युद्ध के दौरान जर्मन और इराक़ी इंजीनियरों की मदद से बनवाए थे। कुछ बंकर तो कार्ल एस्सर नाम के इंजीनियर ने डिज़ाइन किए थे, जिसकी दादी ने हिटलर के आख़िरी बंकर को डिज़ाइन करने में मदद की थी! बग़दाद के मुख्य बंकर की दीवारें नौ फ़ीट मोटी थीं, जो हिरोशिमा पर गिरे परमाणु बम जैसा हमला झेलने के लिए बनाई गई थीं। इन्हें भेदने के लिए एक ही जगह पर लगातार 16 टॉमहॉक मिसाइलों की ज़रूरत पड़ती। अंदर के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम ग्रेफ़ाइट बमों से सुरक्षित थे। यहां तक कि टिगरिस नदी के नीचे से गुज़रने वाली एक गुप्त सुरंग भी थी, जिसके दरवाज़े तीन टन वज़न के स्टील के थे। इनकी बदौलत सद्दाम पहले हमले में बच तो गया लेकिन मुश्किलें आगे बढ़ने वाली थीं।
पहले हमले के बाद, उसने फिर से अपना पुराना तरीक़ा अपना लिया था – एक सेफ हाउस से दूसरे में जाना, सिर्फ़ कुछ बॉडीगार्ड्स के साथ, कभी-कभी उदय या कुसे भी साथ होते थे। वह आम नागरिक कारों में सफ़र करता था और उसके सबसे क़रीबी सलाहकारों को भी पता नहीं होता था कि वह अगली रात कहां रुकेगा। तानाशाह अब भाग रहा था, छिप रहा था। उसका साम्राज्य ढह रहा था लेकिन खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ था। असली तलाश तो अब शुरू होनी थी।
शिकार की तलाश- ऑपरेशन रेड डॉन
30 मार्च को, सद्दाम एक बार फिर टीवी पर नज़र आया। अपने बेटों उदय और कुसे के साथ। वीडियो में वह दक्षिणी इराक़ में लड़ने वाले सैनिकों को पैसे और मेडल देता नज़र आ रहा था लेकिन अगले दिन जब उसे राष्ट्र के नाम संदेश देना था, तो वह ख़ुद नहीं आया। उसका भाषण सूचना मंत्री मुहम्मद सईद अल-सहाफ़ ने पढ़ा, जिसमें सद्दाम ने इराक़ियों से आत्मघाती हमले करने के लिए कहा था। 1 अप्रैल तक अमेरिकी सेना बग़दाद के बाहरी इलाके तक पहुंच चुकी थी। इस समय सद्दाम और उसके दोनों बेटे अब भी बग़दाद के अंदर थे और किसी तरह जवाबी हमले की योजना बनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन युद्ध के मैदान में हुए भारी नुक़सान के बाद, ज़्यादातर नियमित सैनिक समझ चुके थे कि यह लड़ाई हारी जा चुकी है। उन्होंने बस अपनी वर्दियां उतारीं और घर चले गए। सद्दाम के पास अब सिर्फ फिदायीन दस्ते बचे थे। अगले तीन दिनों तक, अमेरिकी सैनिक, अपाचे हेलीकॉप्टरों और A-10 विमानों की मदद से, फिदायीन के साथ लड़ते रहे।
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इसी उथल-पुथल के बीच, 7 अप्रैल को दोपहर 2 बजे, अमेरिकी कमांडरों को एक और ज़रूरी ख़ुफ़िया सूचना मिली। दावा किया गया कि सद्दाम, अपने दोनों बेटों और कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ, शहर के पॉश मंसूर ज़िले के एक रेस्टोरेंट में गया है। कमांडरों ने कार्रवाई करने का फ़ैसला किया। सूचना मिलने के 48 मिनट बाद, बग़दाद के ऊपर मंडरा रहे B-1 बॉम्बर के पायलट को हमले का आदेश दिया गया। 10 मिनट बाद, रेस्टोरेंट पर 2000 पाउंड के चार बंकर-बस्टर बम गिरे। शुरू में CIA को यक़ीन था कि इस बार सद्दाम जरूर मारा गया होगा लेकिन जल्द ही पता चला कि सद्दाम उस इमारत में था तो ज़रूर, जब ख़ुफ़िया सूचना मिली थी लेकिन वह और उसके साथी बम गिरने से ठीक पहले वहां से निकल चुके थे।
सद्दाम एक और जानलेवा हमले से बच निकला था लेकिन अब उसका 35 साल का आतंक का राज़ तेज़ी से ख़त्म हो रहा था। अगले ही दिन, 8 अप्रैल को अमेरिकी सेना ने सद्दाम के मुख्य राष्ट्रपति महल पर क़ब्ज़ा कर लिया। 9 अप्रैल को अमेरिकी सैनिकों ने पैलेस्टाइन होटल (जहां दुनिया भर का मीडिया ठहरा हुआ था) के ठीक बाहर लगी सद्दाम की एक विशाल ब्रोंज़ की मूर्ति गिरा दी। एक अमेरिकी मरीन ने जोश में सद्दाम के सिर पर अमेरिकी झंडा डाल दिया लेकिन फिर उसे इराक़ी झंडा इस्तेमाल करने को कहा गया। असली सवाल अभी भी बाकी था। सद्दाम हुसैन कहां गया?
अप्रैल 2003 के मध्य में, सैन्य कमांडरों ने घोषणा की कि मुख्य अभियान पूरा हो गया है। राष्ट्रपति बुश ने दावा किया कि उनके पास "कुछ सबूत" हैं कि सद्दाम मर चुका है। हालांकि, वह इसे साबित नहीं कर पा रहे थे। असलियत में सद्दाम मरा नहीं था। वह छिप गया था। युद्ध से पहले ही उसने अपने छिपने के इंतज़ाम कर लिए थे। उसने अपने वफ़ादार लोगों को 1.3 बिलियन डॉलर, प्रोटेक्शन मनी के तौर पर दिए थे, इस उम्मीद में कि हारने पर वह उसकी मदद करेंगे। बग़दाद में उसके कई सेफ़ हाउस थे और सैकड़ों ठिकाने देश भर में फैले थे, खासकर तिकरित के आसपास के इलाके में, जो उसका होम टाउन था और जहां उसे अपने क़बीले के लोगों का पूरा समर्थन हासिल था।
9 अप्रैल को उसे अधमिया मस्जिद के पास आख़िरी बार देखा गया। इसके तुरंत बाद उसने आख़िरी योजना पर काम करना शुरू कर दिया। यह योजना थी छुपने की। डर का वह आलम था कि इस प्लान की खबर उसके बेटों को तक नहीं थी। सद्दाम को सिर्फ़ अपनी और अपने नज़दीकी परिवार की फ़िक्र थी। युद्ध से पहले ही उसने अपनी पत्नियों और बेटियों को सुरक्षित रखने के लिए देश से बाहर भेज दिया था। साजिदा (पहली पत्नी) और उसकी दो अलग रह रही बहुओं को दमिश्क (सीरिया) भेजा गया, जबकि समीरा (दूसरी पत्नी) और उनके बेटे अली को बेरूत (लेबनान) भेजा गया। सद्दाम के शासन के पतन के बाद, दर्जनों रिश्तेदार और वरिष्ठ बाथ अधिकारी सीरिया और जॉर्डन भाग गए। बाथ पार्टी के बाक़ी सदस्यों के पास सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नहीं था।
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इन लोगों को पकड़ने के लिए पेंटागन ने ताश के पत्तों की एक गड्डी जारी की, जिसके हर पत्ते पर 55 मोस्ट वांटेड अधिकारियों में से एक की तस्वीर थी। सद्दाम हुसैन हुकुम का इक्का (Ace of Spades) था। उसके बेटे उदय और क़ुसय क्रमशः हुकुम और चिड़ी के बादशाह (King of Spades and Clubs) थे। जून महीने में अमेरिकी एजेंट्स ने फिदायीन और पूर्व इराक़ी ख़ुफ़िया अधिकारियों के बीच कुछ मेसेज इंटरसेप्ट किए। जिससे संकेत मिला कि सद्दाम अब भी ज़िंदा है। इत्तेफाक से कुछ दिन बाद ही, 4 जुलाई, जब अमेरिका का इंडिपेंडेंस डे होता है, सद्दाम ने ख़ुद ज़िंदा होने का पक्का सबूत दे दिया।
अल-जज़ीरा पर प्रसारित एक ऑडियो टेप में, उसने WMD न मिलने पर नाटो का मज़ाक उड़ाया। साथ ही दावा किया कि वह अभी भी इराक़ में ही है। सद्दाम का लगातार संदेश भेजना बुश प्रशासन के लिए बड़ी शर्मिंदगी का सबब बन रहा था। वाशिंगटन ने घोषणा की कि सद्दाम की गिरफ़्तारी या मौत का सबूत देने वाली जानकारी के लिए 25 मिलियन डॉलर का इनाम दिया जाएगा। उसके बेटों, उदय और कुसे की गिरफ़्तारी के लिए 15-15 मिलियन डॉलर का इनाम रखा गया।
21 जुलाई की सुबह अमेरिकी फोर्सेस को वह कामयाबी मिली जिसका उन्हें इंतज़ार था। उन्हें ख़बर मिली कि उदय और कुसे एक विला में ठहरे हुए हैं। बाद में पता चला कि विला के मालिक ने ही, जिसका सद्दाम के परिवार से पुराना झगड़ा था, 30 मिलियन डॉलर के इनाम के लालच में उन्हें धोखा दिया था। स्पेशल फ़ोर्स ने विला को घेर लिया। अरबी इंटरप्रेटर ने लाउडस्पीकर पर आत्मसमर्पण करने को कहा। कोई जवाब नहीं मिला। सैनिकों ने दरवाज़ा तोड़ा लेकिन अंदर घुसते ही उन पर गोलियां चलने लगीं। भीषण लड़ाई हुई। अमेरिकी कमांडरों ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी – एंटी-टैंक मिसाइलें, भारी मशीनगनें, अपाचे हेलीकॉप्टर, A-10 टैंकबस्टर विमान। तीन घंटे से ज़्यादा चली लड़ाई के बाद विला के अंदर मौजूद चारों लोग मारे गए – उदय, कुसे, एक बॉडीगार्ड और कुसे का 14 साल का बेटा मुस्तफ़ा।
इस घटना के कुछ दिन बाद सद्दाम का एक और टेप जारी हुआ, जिसमें उसने अपने बेटों को "इराक़ के शहीद" बताया। बेटों के मारे जाने के बाद, सद्दाम को पकड़ने की मुहिम और तेज़ हो गई लेकिन महीनों बीत गए, कई नाकाम छापे मारे गए और सद्दाम का कोई सुराग नहीं मिला। ख़ुफ़िया तंत्र विफल हो रहा था। इसी बीच, एक अमेरिकी स्टाफ सार्जेंट, एरिक मैडॉक्स, ने एक अलग रास्ता अपनाया। मैडॉक्स ने महसूस किया कि मोस्ट वांटेड लिस्ट के लोग पुराने शासन के प्रतीक थे, जिनकी ताक़त सद्दाम से थी लेकिन अब सद्दाम को उनकी ज़रूरत नहीं थी, उसे उन लोगों की ज़रूरत थी जो उसे छिपा सकें - उसके बॉडीगार्ड्स।
मकड़ी का जाला
सद्दाम के पास सुरक्षा के तीन घेरे हुआ करते थे। सबसे बाहरी गार्ड महलों जैसी जगहों पर तैनात थे। दूसरे स्तर के गार्ड सद्दाम के पहुंचने से पहले जगहों को सुरक्षित करते थे और सबसे अंदरूनी घेरा था 'हमाया' (Hamaya) बॉडीगार्ड्स- जो हर पल सद्दाम के साथ रहते थे। मैडॉक्स का सिद्धांत था कि यही हमाया गार्ड्स अब सद्दाम को छिपा रहे हैं। मैडॉक्स ने अपनी जांच सद्दाम के होम टाउन तिकरित से शुरू की। यह शहर अल-मुसलित (Al-Muslit) परिवार का गढ़ था। सद्दाम के ज़्यादातर बॉडीगार्ड्स इसी परिवार से थे। पूछताछ के दौरान, एक नाम बार-बार सामने आया - मुहम्मद इब्राहिम उमर अल-मुसलित।
मुहम्मद इब्राहिम सद्दाम के सबसे भरोसेमंद बॉडीगार्ड्स में से एक था और वही अमेरिकी कब्ज़े के ख़िलाफ़ पूरे प्रतिरोध का नेतृत्व कर रहा था। वह अलग-अलग इलाकों में हमले करवा रहा था और उनके लिए फ़ंडिंग का इंतज़ाम कर रहा था। मैडॉक्स को यक़ीन हो गया कि अगर मुहम्मद इब्राहिम प्रतिरोध चला रहा है, तो उसे ज़रूर पता होगा कि सद्दाम कहां छिपा है। मुहम्मद इब्राहिम अब मुख्य निशाना बन गया। उसे पकड़ने के लिए, मैडॉक्स ने मुहम्मद के बेटे, मुसलित से पूछताछ की। मुसलित से पूछताछ में ज़्यादा कुछ हाथ नहीं लगा, सिवाय एक छोटी सी बात के - कि वह अक्सर अपने पिता के साथ समारा शहर में अपने तालाब पर मछली पकड़ने जाता था।
यह जानकारी छोटी लग सकती थी लेकिन मैडॉक्स को सद्दाम के एक पूर्व हाउसकीपर से हुई पूछताछ याद आई, जिसने बताया था कि सद्दाम को 'मसगौफ़' (Masgouf) नाम की मछली बहुत पसंद थी। अचानक यह सुराग बहुत महत्वपूर्ण लगने लगा। मैडॉक्स को यक़ीन हो गया कि मुहम्मद इब्राहिम ही उन्हें सद्दाम तक ले जाएगा। अमेरिकी सेना ने मछली फार्म पर छापा मारा लेकिन मुहम्मद वहां नहीं मिला। वहां मिले दो मछुआरों से पूछताछ में पता चला कि उनमें से एक किसी इराक़ी लेफ्टिनेंट का चचेरा भाई था और उनका एक चाचा बग़दाद में रहता था। शायद मुहम्मद वहीं छिपा हो? यह कड़ी कमज़ोर लग रही थी लेकिन कोई और रास्ता नहीं था। बग़दाद में उस चाचा के घर पर छापा मारने का फ़ैसला हुआ और हैरानी की बात ये कि वहां, बग़दाद के बीचों-बीच, अमेरिकी सेना को उनका निशाना मिल गया - मुहम्मद इब्राहिम उमर अल-मुसलित पकड़ा गया।
मैडॉक्स ने ख़ुद उससे पूछताछ की। उसे और उसके परिवार को सुरक्षा का आश्वासन दिया गया और आख़िरकार, मुहम्मद इब्राहिम टूट गया। उसने बताया कि सद्दाम अद-दौर (Ad-Dawr) नाम के एक छोटे से गांव में छिपा है। 13 दिसंबर, 2003 की रात। ऑपरेशन रेड डॉन (Operation Red Dawn) लॉन्च किया गया। निशाना था अद-दौर गांव में एक फार्महाउस, जिसका मालिक सद्दाम का पूर्व बॉडीगार्ड था। यह गांव तिकरित से सिर्फ़ आठ मील दक्षिण में, टिगरिस नदी के किनारे था। आगे क्या हुआ, उससे पहले सद्दाम से जुड़ी एक कहानी सुनाते हैं आपको। मौजू इसलिए है जहां सद्दाम पकड़ा गया, ये कहनी उसी जगह से रिलेटेड है और इसी कहानी को प्रोपेगेंडा बनाकर सद्दाम ने इराक़ में अपना भौकाल क़ायम किया था।
अक्टूबर 1959 की बात है। इराक़ में तब जनरल अब्दुल करीम कासिम का शासन था। और युवा सद्दाम बाथ पार्टी का सदस्य था। जो जनरल क़ासिम को सत्ता से हटाना चाहती थी। ऐसे में एक रोज़ जनरल पर हमले का प्लान बनाया गया। सद्दाम और उसके साथी इस काम कोअंजाम देने वाले थे। जनरल की गाड़ी एक शाम सड़कों से गुज़र रही थी। सब अपनी जगह तैयार थे पर सद्दाम से रहा नहीं गया। उसने अपने कोट के नीचे से जल्दी में गोली चला दी। बस, फिर क्या था! जनरल के बॉडीगार्ड सतर्क हो गए। चारों तरफ गोलियां चलने लगीं। सद्दाम के पैर में एक गोली लगी। जनरल भी घायल हुआ पर बच गया। सद्दाम की टीम का एक साथी वहीं ढेर हो गया। इस हमले के बाद बगदाद में रहना सद्दाम के लिए मौत को न्योता देना था। उसे भागना था, और फौरन।
नदी में कूद गया था सद्दाम हुसैन
अब यहां से शुरू होती है वह कहानी, जिसे बाद में कई रंगों में सजाया-संवारा गया। कहते हैं, सद्दाम का पैर बुरी तरह घायल था। खून बह रहा था। किसी डॉक्टर के पास जाना खतरनाक था। एक साथी ने उस्तरे से उसके पैर को चीरा और कैंची से गोली निकाली। घायल पैर लेकर सद्दाम ने शहर छोड़ने का फैसला किया। कहते हैं, उसे एक घुड़सवार मिला। दस दीनार में उसने वह घोड़ा खरीद लिया। फिर टिग्रिस नदी के किनारे-किनारे तिकरित की ओर बढ़ने लगा। चौथे दिन उसे कस्टम वाले मिल गए। मशीनगनों से उसे घेर लिया। पर सद्दाम भी कम न था। उसने तो हाथ उठाकर उन्हें धमकाना शुरू कर दिया। कहने लगा, "मैं बेदुइन (बंजारा) हूं, मुझे कोई दस्तावेज नहीं चाहिए। अपने कमांडर को बुलाओ!"
बड़ी मुश्किल से वह वहां से निकला। फिर टिग्रिस नदी पार करनी थी। एक नाविक मिला, पर वह कर्फ्यू की वजह से नाव चलाने से मना कर दिया। अब क्या करे सद्दाम? कहानी के अनुसार, उसने अपना चाकू दांतों के बीच दबाया और रात के अंधेरे में ठंडी नदी में कूद गया। "बिल्कुल फिल्मों की तरह था," उसने बाद में एक इंटरव्यू में कहा, "बल्कि उससे भी बदतर। मेरे कपड़े गीले थे, पैर में चोट थी और कई दिनों से ठीक से खाना भी नहीं मिला था।"
नदी पार करके वह एक घर पहुंचा। दरवाजा एक औरत ने खोला। उसने सद्दाम को चोर समझा पर सद्दाम ने उस परिवार को राजी कर लिया कि वे उसे शरण दें। अगले दिन वह अपने गांव अल-औजा पहुंचा और फिर अपने बाथिस्ट साथियों के साथ सीरिया भाग गया। सच्चाई शायद इतनी रोमांचक नहीं थी। बाकी साजिशकर्ता, जैसे अब्दुल करीम अल-शैखली, बस ट्रेन से मोसुल गए और फिर सीरिया पहुंच गए। घोड़े पर सफर, नदी में तैरना - यह सब सद्दाम को एक नायक के रूप में दिखाने के लिए गढ़ा गया था।
बहरहाल, वापस मेन कहानी पर लौटें तो जिस जगह सद्दाम ने बताया कि वह नदी में कूदा था। दिसम्बर 2003 में अमेरिकी फौज उस इलाके को चारों तरफ़ से घेर चुकी थी। रात के अंधेरे में, नाइट-विज़न गॉगल्स पहने सैनिक संतरे के बागों और सूरजमुखी के खेतों से होते हुए आगे बढ़े। उनके पास टैंक, तोपें, हेलीकॉप्टर और ड्रोन थे। जैसे ही सैनिक फार्महाउस के पास पहुंचे, दो आदमी AK-47 लेकर भागे। उन्हें तुरंत पकड़ लिया गया। फिर सैनिक उस एक-मंज़िला झोपड़ीनुमा इमारत पर टूट पड़े। अंदर एक गंदा सा कमरा था जिसमें सिर्फ़ एक गद्दा बिछा था। बगल में एक साधारण सी रसोई थी जिसमें नल और ठंडा पानी था। पहली नज़र में यह किसी भगोड़े तानाशाह का ठिकाना नहीं लग रहा था लेकिन फिर सैनिकों को सुराग मिले – गद्दे पर प्लास्टिक में लिपटी नई टी-शर्ट और जुराबें और फ़र्श पर एक पुराना हरा मेटल का सूटकेस, जिसमें 100-100 डॉलर के नोटों की गड्डियों में 750,000 डॉलर भरे थे।
कमरे के बाहर, कुछ स्पेशल फ़ोर्स के जवानों ने ज़मीन पर बिछे एक कालीन जैसी चीज़ पर ध्यान दिया। नीचे एक ढक्कन था, जो पहली नज़र में ज़मीन से जुड़ा हुआ लग रहा था लेकिन जब उन्होंने उसे हटाने की कोशिश की तो वह आसानी से उठ गया – वह स्टायरोफ़ोम का बना था, जिसे गंदगी और पत्तियों से ढक दिया गया था! नीचे एक आठ फ़ीट गहरा, संकरा गड्ढा था – इतना बड़ा कि बस एक आदमी लेट सके। यह ज़मीन के नीचे बना एक छोटा सा बंकर था। अंदर हवा के लिए एक पंखा और वेंट पाइप लगा था। इसे 'स्पाइडर होल' (Spider Hole) कहा गया - मकड़ी का जाला, जिसमें दुनिया का मोस्ट वांटेड शख़्स छिपा बैठा था।
सैनिकों ने अंदर ग्रेनेड फेंकने की तैयारी की, ताकि कोई ख़तरा न रहे लेकिन तभी, गड्ढे से दो हाथ ऊपर उठे और फिर बाहर निकला एक बिखरे बालों और बढ़ी हुई सफ़ेद-काली दाढ़ी वाला बूढ़ा, थका हुआ आदमी। उसने अपने हाथ हवा में उठाए और अमेरिकी अफ़सर से बुदबुदाया: "मेरा नाम सद्दाम हुसैन है। मैं इराक़ का राष्ट्रपति हूं और मैं बातचीत करना चाहता हूँ।" अमेरिकी अफ़सर का जवाब सपाट था: "राष्ट्रपति बुश ने अपना सलाम भेजा है।" गिरफ़्तारी के समय, सद्दाम के पास सिर्फ़ एक रिवॉल्वर थी। वह शख़्स, जिसने दशकों तक अपने देशवासियों और हाल ही में अपने परिवार को भी देश के लिए 'शहीद' होने का आह्वान किया था, उसने ख़ुद आख़िरी क़ुर्बानी देना ज़रूरी नहीं समझा।
क़ैद से फांसी तक
अद-दौर के 'स्पाइडर होल' से निकलने के बाद, सद्दाम हुसैन क़ैदी बन चुका था। अमेरिकी सेना की हिरासत में, उससे पूछताछ शुरू हुई। सद्दाम अंग्रेज़ी बोल सकता था लेकिन उसने ज़िद पकड़ ली कि वह सिर्फ़ अरबी में ही बात करेगा। CIA ने अरबी बोलने वाले इंटरप्रेटर मुहैया कराए। जुलाई 2004 में, सद्दाम को इराक़ की नई अंतरिम सरकार को सौंप दिया गया। सद्दाम को बग़दाद एयरपोर्ट के पास एक हाई-सिक्योरिटी अमेरिकी कंपाउंड 'कैंप क्रॉपर' में रखा गया – विडंबना यह कि यह उसके ही एक पूर्व महल के मैदान में बना था। ज़्यादातर समय वह 15x15 फ़ीट की कोठरी में रहा। सफ़ाई का उसे जुनून था – कपड़े ख़ुद सिंक में धोता, हर खाने के बाद हाथ और बर्तन बेबी वाइप्स से साफ़ करता। उसका पसंदीदा नाश्ता था 'रेज़न ब्रैन क्रंच' सीरियल। व्यायाम के समय वह जेल के अहाते में उगाए छोटे से बगीचे की देखभाल करता। उसका एकमात्र शौक़ था क्यूबन सिगार, जो जॉर्डन में उसकी बेटियाँ रेड क्रॉस पार्सल के ज़रिए भिजवाती थीं।
जुलाई 2004 में उसे इराक़ी स्पेशल ट्रिब्यूनल के सामने पेश किया गया। HVD-1 (High Value Detainee One) कोडनेम वाले सद्दाम को बख्तरबंद बस में अल-फ़ॉ महल स्थित कोर्टरूम लाया गया, जहां कभी वह विदेशी मेहमानों की मेज़बानी करता था। उसने पिनस्ट्राइप जैकेट और चमकीले काले जूते पहने थे, पहले से दुबला और फ़िट लग रहा था। पूछताछ शुरू हुई। नाम पूछने पर जवाब दिया, "मैं इराक़ का राष्ट्रपति हूँ।" जज ने टोका तो बोला, "मैं गणतंत्र का राष्ट्रपति हूं, मुक़दमा चलाने के लिए आप मेरा पद नहीं छीन सकते।" उसने जज को अमेरिकी कठपुतली बताया और कहा, "यह सब बुश का चुनावी ड्रामा है। असली अपराधी बुश है।" जब जज ने कुवैत पर हमले का ज़िक्र किया, तो वह भड़क गया।
सद्दाम पर 148 शिया विरोधियों की हत्या का केस चला। उसे मौत की सज़ा सुनाई। 30 दिसंबर, 2006 की सुबह, तड़के 3 बजे उसे जगाकर बताया गया कि कुछ घंटों में फांसी दी जाएगी। वह मायूस हुआ, ख़ामोशी से नहाया और तैयार हुआ। उसने क़ैदियों के कपड़े नहीं, बल्कि सफ़ेद शर्ट और गहरा कोट पहना। हाथ में क़ुरान थी, जिसे उसने बाद में एक दोस्त को देने को कहा।
उसे बग़दाद के पास 'कैंप जस्टिस' कहे जाने वाले इराक़ी कंपाउंड के एक कंक्रीट चैंबर में ले जाया गया। नक़ाबपोश जल्लादों ने उसे तख्ते पर चढ़ाया। जब जल्लाद उसके सिर पर काला कपड़ा डालने लगा, तो सद्दाम ने मना कर दिया – वह बिना ढके मरना चाहता था। गले में फंदा डाला गया तो वह मुस्कुराया और चिल्लाया, "क्या तुम इसे बहादुरी समझते हो?" भीड़ से आवाज़ आई, "जहन्नुम में जाओ!" सद्दाम ने जवाब दिया, "क्या वह जहन्नुम इराक़ है?" इसके बाद सद्दाम को फांसी दे दी गई। साथ ही इराक़ में सद्दाम युद्ध का अंत हो गया।
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