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किसी को 'छपरी' बोलने से पहले जान लीजिए शब्द का मतलब और इसकी कहानी

किसी के लंबे बालों को लेकर तो किसी के कपड़ों को लेकर, सोशल मीडिया पर किसी को छपरी बोल देना बेहद आसान है लेकिन क्या आप इस शब्द का असली मतलब जानते हैं?

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छपरी शब्द की कहानी, Photo Credit: Khabargaon

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक शब्द-‘छपरी’ खूब इस्तेमाल में आता है।। एक शब्द जिसके इर्द-गिर्द इंस्टाग्राम पर रील्स स्क्रॉल करते हुए हर दिन आप कई पोस्ट देखते होंगे। आदिपुरुष फिल्म के कैरेक्टर्स और कई क्रिकेटर्स को तक ट्रोल करते हुए उनके नाम के साथ छपरी लेबल चस्पा किया गया। क्या कभी आपने सोचा कि इस छपरी शब्द का मतलब क्या है? जातिगत पहचान से इस शब्द का रिलेशन है? यह शब्द कैसे सोशल मीडिया पर इस्तेमाल की जाने वाली ट्रोल की भाषा का की-वर्ड बन गया? 
 
दो मामलों से शुरुआत करते हैं। दिसंबर, 2022, भारत और बांग्लादेश के बीच दो मैचों की टेस्ट सीरीज खेली जा रही थी। दूसरे मैच के दौरान भारतीय टीम के एक खिलाड़ी ने अपने साथी खिलाड़ी को छपरी कहा क्योंकि उसने फील्डिंग करते हुए एक गेंद छोड़ दी थी। ESPN CricInfo पर 23 जनवरी, 2023 को छपी सिद्धार्थ मोंगा की रिपोर्ट से जानकारी मिलती है कि यह बात स्टंप माइक से सुनी गई थी। दूसरा मामला डॉली चायवाला से जुड़ा है। यूट्यूबर कैरीमिनाटी ने अपने एक रोस्ट वीडियो में डॉली चायवाला को रोस्ट करते हुए छपरी कह दिया। ऐसा ही तब हुआ जब फिल्म आदिपुरुष रिलीज़ हुई। आदिपुरुष में दिखाए गए रावण के किरदार की फोटो शेयर करते हुए लोगों ने लिखा कि “यह रावण नहीं छपरी जैसा दिख रहा है।”
 
 
ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक। किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सर्च बार में जाइए और छपरी की-वर्ड डालिए… और आपके सामने हजारों की संख्या में ऐसे पोस्ट दिख जाएंगे जहां किसी न किसी को छपरी लिखा-कहा जा रहा होगा। क्या है इस छपरी शब्द का मतलब? हमने यह सवाल भाषाविद् डॉ. सुरेश पंत से पूछा। डॉ। पंत बताते हैं, 'छपरी एक प्रकार का अपशब्द है जो मुंबइया सिनेमा से होता हुआ आया है। यह है एक स्लैंग। सामान्यत: कोई ऐसा व्यक्ति जो शिष्ट-सभ्य की कॉमन परिभाषा में फिट न होता हो और फैशन, भाषा, रहन-सहन के आम नियमों का उल्लंघन करता हो, उसे छपरी कहा जाता है।'

छपरी शब्द की कहानी क्या है?

 
ब्लॉगस्पॉट पर 21 मई, 2011 को 'द पुनेरी लिंगो' के टाइटल से छपा एक ब्लॉग मिलता है। जिसमें पुणे के स्थानीय स्लैंग के बारे में जानकारी मिलती है। इस आर्टिकल में 'छपरी' स्लैंग का भी ज़िक्र है। छपरी का मतलब ऐसे व्यक्ति से बताया गया है जिसका कोई स्टैंडर्ड ना हो लेकिन क्या यह महज एक लोकल स्लैंग है जो अपनी लोकैलिटी से बाहर निकलकर लार्ज स्केल पर इस्तेमाल किया जाने लगा है? क्या इसका किसी जाति-समुदाय से भी संबंध हैं?
 
 
बेसिकली ‘छपरी’ छप्परबंद शब्द से निकला है। भारत में छप्परबंद एक समुदाय है जो महाराष्ट्र, कर्नाटक और ओडिशा के कुछ जगहों पर रहते हैं। छप्परबंद समुदाय के बारे में विकीसोर्स पर एडगर थर्स्टन के एक आर्टिकल में 1902 की मद्रास पुलिस गैजेट की रिपोर्ट और 1907 में छपी क्रिमिनल ट्राइब्स ऑफ इंडिया के हवाले से जानकारी मिलती है कि छप्परबंद, पेशे से छत बनाने वाला समुदाय है। जो मूल रूप से पंजाब के बाशिंदे थे। 1687-88 में कर्नाटक पर मुगल आक्रमण के दौरान इस समुदाय के लोग मुगल सेना के लिए झोपड़ी बनाने चले गए। ऐसी जानकारी मिलती है कि ये लोग 1714 तक मुगल सेना के साथ औरंगाबाद, अहमदनगर और श्रीरंगपट्टम तक गए। 1720 में जब बीजापुर मराठा पेशवाओं के हाथों में चला गया तो छप्परबंद समुदाय के लोग ठीक उसी काम के लिए पेशवा की सेना में शामिल हो गए और अंग्रेजों के भारत में राज स्थापित करने तक बने रहे।
 
 
झोपड़ी बनाने की घटती मांग को देखकर ये समुदाय उत्तर भारत की ओर बढ़ गया लेकिन समुदाय के कुछ लोग वहीं रहे और एक नया पेशा अपनाया - 'चापना’। चापना यानी नकली सिक्के बनाने का काम। नकली सिक्के बनाने की वजह से अंग्रेजों ने इस समुदाय को बॉर्न क्रिमिनल्स कहा। ब्रिटिश सरकार ने भारत पर शासन करते हुए क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट- 1871 में छप्परबंद कम्यूनिटी के लोगों को अपराधी घोषित किया था। क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट- 1871 के तहत कई खानाबदोश समुदायों को अंग्रेजी सरकार ने क्रिमिनल घोषित कर दिया था और उन पर लगातार निगरानी रखी गई।
 
फिलहाल छप्परबंद समुदाय डी-नोटिफाइड ट्राइब्स के तहत आता है। डी-नोटिफाइड ट्राइब्स का क्या मतलब है, इसे भी समझ लीजिए। क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट- 1871 के तहत ब्रिटिश सरकार ने जिन समुदायों को अपराधी घोषित कर दिया था, उन समुदायों को आजादी के बाद डी-नोटिफाइड ट्राइब्स की लिस्ट में रखा गया। अब इस कम्यूनिटी के लोग महाराष्ट्र के सोलापुर और पुणे में रहते हैं। कर्नाटक और ओडिशा के गंजम में भी इनकी मौजूदगी बताई जाती है।
 
भले ही छपरी शब्द के इस्तेमाल का ट्रेंड 2-3 साल पुराना हो लेकिन पिछड़ी जाति को गाली की तरह इस्तेमाल किए जाने का इतिहास काफी पुराना है। यह सिर्फ कास्ट की बात नहीं है। छपरी शब्द को नीचा दिखाने के सेंस में इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए इसका संबंध क्लास डिवाइड से भी है। इसे समझने के लिए छपरी वर्ड की टाइमलाइन पर एक नज़र डालते हैं।
 

सोशल मीडिया और छपरी शब्द

 
2020 में जब भारत सरकार ने टिक-टॉक को देश में बैन किया तब टिक-टॉक वीडियोज़ का ट्रेंड अपने चरम पर थे। मिस्टर फैजु, लकी डांसर, आवेज़ दरबार, अवनीत कौर, जन्नत जुबैर तब तक टिक-टॉक स्टार बन चुके थे। ये क्रिएटर्स अपने वीडियोज़ में डांस करते थे। कुछ-कुछ एक्टिंग करते थे। टिक-टॉक के बैन होने के बाद इंस्टाग्राम वह ठिकाना बना जहां बड़े स्केल पर क्रिएटर्स ने कंटेंट बनाना शुरू किया। 2020-21 के इसी टाइमफ्रेम में हमें छपरी वर्ड ट्रेंड में आता दिखता है। गूगल एनालिटिक्स भी इसकी पुष्टि करता है। गूगल ट्रेंड के ट्रैक रिकॉर्ड से पता चलता है कि 2021 के आख़िरी महीनों में छपरी शब्द अचानक से ट्रेंड में आ गया।
 
समझा जा सकता है यह वही वक्त था जब यह वर्ड धीरे-धीरे सोशल मीडिया की ट्रोल वाली शब्दावली से निकलकर आम बोलचाल की डिक्शनरी में शामिल होने लगा था और फिर समाज के तयशुदा स्टाइल से अलहदा दिख रहे लोगों के साथ छपरी होने का टैग चस्पा किया जाने लगा। सिर पर जो ये बाल हैं वे कितनी लंबी और किस डिज़ाइन में होंगे उसकी एक सामाजिक मान्यता है लेकिन एक हिस्से से पूरे बाल गायब करा दिए जाएं और दूसरी ओर से बाल कनपट्टी के कुछ नीचे तक आ रहे हों, तिस पर भी बाल के रंग अपने नेचुरल ब्लैक के बजाए रेड, ब्राउन, ग्रीन या ब्लू कलर के करवा लिए जाएं तो यह स्टाइल समाज के उस तय पैमाने से अलग हो जाता है। कपड़े पहनने का एक ढंग अनकहे तौर पर समाज ने सेट कर रखा है। जिसमें रंगों के चुनाव से लेकर शर्ट के बटन बंद होने तक की बातें हैं लेकिन कोई शर्ट का बटन खोले घूम रहा हो तो बहुत देर इंतज़ार नहीं करना होगा ये सुनने के लिए कि उस आदमी को कोई छपरी का टैग दे जाए।
 
बहस जब स्टाइलशीट पर शुरू हुई है तो इसका एक छोर ये भी है कि वही घुटने के पास फटी जीन्स किसी को कूल डूड तो किसी को छपरी कैसे बना देती है? अपमानित करने के अंदाज में छपरी कहे जाने के इस ट्रेंड पर बैकफायर भी देखने को मिलता है। जिन्हें छपरी कहकर नीचा दिखाया गया पलटकर उन्हीं में से कुछ लोगों ने प्राउड छपरी भी कहा। और इसका बीड़ा उठाया एमिवे बंटाय और एमसी स्टैन जैसे रैपर्स ने। एमसी स्टैन का एक गाना है 'अस्तगफिरुल्लाह'। स्टैन के यूट्यूब चैनल पर इस गाने को 33 मिलियन लोग सुन चुके हैं। स्टैन इसमें लिखते हैं-
हक़ से मैं गरीब, हक़ से मैं गंजेड़ी
हक़ से मैं छपरी, उसका रीजन था बस्ती।
 
एमिवे बंटाय ने तो क्लासी छपरी के नाम से एक गाना ही निकाल दिया। इस गाने को उनके ही यूट्यूब चैनल पर क़रीब ढाई मिलियन लोग सुन चुके हैं। बंटाय इस गाने में लिखते हैं-
ये बोलते थे मेरी नहीं चलेगी स्लैंग
क्योंकि ये रस्ते की बोली है
ये छपरी है...
छपरी आज बन गएला क्लासी है।
 
छपरी वर्ड को धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे पता चलता है कि ये क्लास के लेवल पर भेदभाव है। जिसमें कास्ट भी एक पहलू है। 

 

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