बंद गले के सूट में ही क्यों दिखते हैं IAS अधिकारी? पूरी कहानी जानिए
IAS रैंक के अधिकारियों को कई बार उनके कपड़ों और वेशभूषा के लिए न सिर्फ डांट सुननी पड़ी है बल्कि उनको नोटिस तक जारी किए गए हैं। आइए इसकी पूरी कहानी जानते हैं।

IAS अफसरों के ड्रेस की कहानी, Photo Credit: Khabargaon
तारीख़ 9 मई, 2015, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ के दौरे पर थे। उनका जहाज जगदलपुर हवाई अड्डे पर उतरता है। प्रधानमंत्री के स्वागत में छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह गुलदस्ता लिए खड़े थे। जिले के आला अधिकारी भी एक लाइन में खड़े थे। रमन सिंह ने एक-एक करके सबसे पीएम का परिचय कराया। फिर बारी आई एक अधिकारी की, जिन्होंने काले रंग की पैंट और नीली शर्ट पहन रखी थी। शायद धूप तेज़ थी इसलिए साहेबान की आंखों पर चश्मा भी चढ़ा था। गहरे हरे रंग का एविएटर गॉगल। यह शख्स थे बस्तर के कलेक्टर अमित कटारिया।
बहरहाल, पीएम का स्वागत हुआ। काफिला कार्यक्रम स्थल की ओर चल पड़ा। कार्यक्रम पूरा हुआ। पीएम चल पड़े छत्तीसगढ़ से पश्चिम बंगाल के दौरे पर। लेकिन इसके 3 दिन बाद ही यानी 13 मई को एक नोटिस जारी हुई। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के नाम से बस्तर के तत्कालीन कलेक्टर अमित कटारिया के नाम। ख़ालिस सरकारी भाषा से लदी इस नोटिस में लिखा था, 'दिनांक 9 मई, 2015 को जगदलपुर में माननीय प्रधानमंत्री जी का आगमन हुआ। नियम के मुताबिक, जिला कलेक्टर के रुप में आपने उनकी अगवानी की लेकिन शासन के ध्यान में यह तथ्य आया है कि माननीय प्रधानमंत्री जी की अगवानी के दौरान आपने सही रस्मी पोशाक नहीं पहनी और धूप का चश्मा लगाकर अगवानी की। आपका यह कृत्य द ऑल इंडिया सर्विसेज (कंडक्ट) रूल्स, 1968 के क्लॉज 3 (1) के विपरीत है। आपके इस कृत्य के लिए राज्य शासन के द्वारा आपको सचेत किया जाता है कि इस प्रकार का कोई भी कृत्य भविष्य में न करें जो अखिल भारतीय सेवा अधिकारी की गरिमा के अनुरूप न हो।'
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इस नोटिस का क्या हुआ? होना क्या था! ख़बरें बनने लगीं। किसी ने कलेक्टर के दबंग लुक की आलोचना की तो किसी ने इसे बस्तर के मौसम के लिए जरूर बताया। सवाल उठने लगे कि 18वीं रैंक लाकर UPSC क्रैक करने वाले IAS, जो सिर्फ 1 रुपये सैलरी लेते हैं, जिन्होंने रायगढ़ का रूप ही बदल दिया उस IAS अफसर के चश्मा लगा लेने से नियम टूट गए? आपके भी मन में सवाल आ रहा होगा कि चश्मा लगा लेना क्या गुनाह है? अगर आपने IAS अफसरों को ध्यान से देखा होगा तो आम दिनों में तो वह सादे शर्ट-पैंट में दिखाई देते होंगे लेकिन किसी खास कार्यक्रम में वह भी खास तौर से तैयार होते हैं। कोई बंद गले का सूट पहनता है तो कोई 2 पीस कोट। ऐसा क्यों? क्या IAS अधिकारियों की वर्दी होती है? और नियमों में किस तरह की रस्मी पोशाक का जिक्र किया गया है।
मुग़ल काल और फिर अंग्रेज़ों के दौर में पोशाकों का खास महत्व हुआ करता था। खासकर एक खास पोशाक थी, बंद गला सूट। 15 अगस्त या 26 जनवरी के मौके पर IAS, IFS, IRS अफसर आपको बंद गला सूट पहने दिखाई देंगे। देखने में बहुत शाही लगता है ना? पर क्या यह उनकी कोई सरकारी यूनिफॉर्म है? जवाब है नहीं! फिर सिविल सर्विसेज के अफसर यही पोशाक क्यों पहनते हैं?
क्या है पूरी कहानी?
कहानी शुरू होती है क्वीन विक्टोरिया के दौर में। शुरुआत में इंडिया में ब्रिटिश सरकार का सीधा दखल नहीं था। ईस्ट इंडिया कम्पनी का निज़ाम चलता था। कंपनी के अफसर बंद गले वाला एक लम्बा कोट पहना करते थे। जिसकी तह घुटनों तक जाती थी। हालांकि, कोई ड्रेस कोड नहीं हुआ करता था। क्वीन विक्टोरिया ने पहली बार सुझाव दिया कि ब्रिटिश अफसरों के लिए एक ड्रेस कोड होना चाहिए। इस तरह पहली बार अधिकारियों के लिए ड्रेस कोड बना — सोने की कढ़ाई, मखमल की सजावट के साथ रेशमी पट्टी और शुतुरमुर्ग के पंख लगी पोशाक, साथ में खास टोपी, और तलवार। यह ड्रेस देखकर देसी राजा भी समझ आ जाता था कि सामने कोई मामूली आदमी नहीं, बल्कि ब्रिटिश सरकार का ताक़तवर नुमाइंदा खड़ा है। यानी साफ़ था — कपड़े सिर्फ शरीर ढकने के लिए नहीं थे, बल्कि सत्ता, रुतबे और दबदबे का प्रतीक भी थे लेकिन ये इतने महंगे थे कि सभी अफसरों को देना मुमकिन नहीं था। इसलिए सिर्फ उन अफसरों को ऐसे ड्रेसेस पहनने की इजाज़त दी गई जो भारतीय राजाओं और नवाबों से मिलने जाते थे।
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जैसे-जैसे अंग्रेज़ों का असर बढ़ा, भारत के राजा-महाराजाओं ने भी थोड़ा वेस्टर्न स्टाइल अपनाना शुरू किया। उन्होंने अपने पारंपरिक कपड़ों में कॉलर, बटन और कोट जैसा लुक जोड़ना शुरू किया। इससे जो नया लुक बना, वही आगे चलकर बंदगला सूट बना और जब अंग्रेज़ों के साथ मिलना-जुलना होता था, तब ये बंद गला सबसे फिट बैठता था- शाही भी और औपचारिक भी।
भारत में सिविल सर्विसेज़ की शुरुआत ब्रिटिश काल में ही हुई। पहले केवल ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से चुने गए ब्रिटिश अधिकारी ही इसमें भाग लेते थे लेकिन 1854 से भारतीयों के लिए भी सिविल सेवा के दरवाजे खोल दिए गए। भारतीय तो इसमें शामिल हो गए लेकिन भारतीय पारंपरीक परिधान इसमें नहीं पहुंच पाया। ऑफिशियल मीटिंग और काम-काज में भारतीय सिविल सर्वेंट्स को भी ब्रिटिशर्स के जैसे ही तय पोशाक पहनने पड़ते थे। इसकी छवि आपको भारत के पहले सिविल सर्वेंट सत्येन्द्रनाथ टैगोर की तस्वीरों में भी दिख जाएगी। वह भी बंदगले वाले सूट में तो कभी कोट और टाई में दिखते थे। सिविल अधिकारी ये बंद गला वाला सूट आज भी हर आधिकारिक सम्मलेन में पहने दिखाई देते है। हालांकि, दिलचस्प बात है कि यह ऑफिसियल ड्रेस कोड नहीं है।
IPS अफसर कनिष्क जमकार इंस्टा पर डाली गई एक पोस्ट में लिखते हैं कि बंद गला उनकी विरासत और कर्तव्य की याद दिलाता है। यह दिखाता है कि अफसर न्याय, ईमानदारी और सेवा के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, यह बात IPS के लिए कही गई लेकिन IAS, IFS और IRS अधिकारियों पर भी लागू होती है। चाहे वह बंद गला पहनें या कोट-पैंट वो बस कपड़े नहीं होते, वह एक मैसेज होते हैं कि हम जनता की सेवा में हैं, परंपरा की रक्षा में हैं।
खैर, इतिहास से वर्तमान पर लौटें तो साल 2015 में बस्तर के कलेक्टर अमित कटारिया को मिला नोटिस, ड्रेस कोड से जुड़ा इकलौता मुद्दा नहीं है। बस्तर के बाद PM मोदी दंतेवाड़ा गए। वहां रिसीव करने वाले कलेक्टर केसी देवसेनापति को ऐसा ही नोटिस मिला। अंतर बस इतना था कि देवसेनापति को भेजे गए नोटिस में चश्मे का जिक्र नहीं था लेकिन रस्मी पोशाक वाली बात सेम-टू-सेम थी। तस्वीरों में देखा गया कि केसी देवसेनापति ने सफेद शर्ट और ट्राउजर पहन रखी थी। इन दो उदाहरणों से आपको लग सकता है कि सिर्फ पीएम के सामने ही कोई ड्रेस कोड होता होगा जिसकी वजह से इन दोनों कलेक्टरों की क्लास लग गई लेकिन मामला इतना सिंपल नहीं है।
IAS आनंद किशोर के साथ क्या हुआ?
एक और उदाहरण देखिए, बात है 2022 की शुरुआती गर्मियों की। पटना हाई कोर्ट में जस्टिस पी बी बजंतरी एक मामले की सुनवाई कर रहे थे। सुनवाई के दौरान IAS आनंद किशोर को जज के सामने बुलाया गया। यह कौन हैं? बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन और बिहार के हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट बोर्ड के प्रमुख सचिव। इससे पहले कि जज साहब IAS आनंद किशोर से कुछ काम की बात कर पाते, IAS के कपड़े को देखकर भड़क उठे। IAS आनंद सफेद शर्ट और फार्मल पैंट में मास्क लगाए जज के सामने खड़े थे।
इन कपड़ों को देखकर जज साहब पूछते हैं, 'आप एक IAS अधिकारी हैं और आपको यह भी नहीं पता कि IAS को कैसे कपड़े पहनने चाहिए? IAS बनने के बाद आपने मसूरी में ट्रेनिंग नहीं अटेंड की? वहां आपको यह नहीं सिखाया गया कि कोर्ट में कैसे कपड़े पहनकर जाना चाहिए?' जज साहब का गुस्सा और चढ़ा तो बोल पड़े, 'बिहार के IAS अधिकारियों को यह क्या हो गया है, उनको यह भी नहीं पता कि जज के सामने कैसे कपड़ों में पेश हुआ जाता है।' अब जज ने इतने तीखे तेवर दिखाए तो IAS की आवाज भी लड़खड़ाने लगी। दबी आवाज में IAS आनंद ने जवाब दिया, 'लॉर्डशिप ये सामान्य कपड़े हैं जिसमें हम कोर्ट में आते हैं। हमारे लिए किसी खास तरह का कोई ड्रेस तय नहीं किया गया है।' जज साहब इस जवाब से और भड़क जाते हैं बोलते हैं, 'आप एक IAS हैं, जब भी कोर्ट में आएं तो कम से कम एक ब्लेजर जरूर पहनें, शर्ट का कॉलर वाला बटन भी बंद करें। यह कोई सिनेमा हाल नहीं है जहां जैसे मर्जी वैसे आ गए।'
जज और IAS के बीच की यह बातचीत सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी। जिससे यह बहस एक बार दोबारा गर्म होने लगी कि सिविल सेवकों का ऑफिसियल ड्रेस कोड क्या है? इस मुद्दे पर ब्यूरोक्रैट्स की राय समय-समय पर मीडिया रिपोर्ट्स में छापी गईं। मसलन इस कोर्ट वाले हंगामे के बाद The Print पर छपी Bhadra Sinha की रिपोर्ट में सरकारी अधिकारियों के हवाले से बताया गया कि अधिकारियों के सर्विस रूल्स में ऐसा कोई नियम नहीं है कि कौन-से कपड़े पहनने चाहिए लेकिन जब वे ट्रेनिंग में होते हैं, तब उन्हें एक गाइड बुक दी जाती है जिसमें लिखा होता है, 'अफसरों को साफ-सुथरे और डीसेंट कपड़े पहनने चाहिए।' यहां एक जायज सवाल आता है कि रूल बुक में तो डिसेंट शब्द का ही इस्तेमाल किया गया था लेकिन कौन से कपड़े डिसेंट माने जाएंगे? इसकी जानकारी यहां नहीं दिखी।
कुछ ऐसी ही बात, रिटायर्ड और वर्तमान में सेवा दे रहे IAS और IPS अधिकारियों के हवाले से हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में भी छापा। इस रिपोर्ट के मुताबिक, सिविल सेवा के अधिकारियों को सरकारी समारोह जैसे- गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस जैसे कार्यक्रम में काला या सफेद जोधपुरी सूट या शेरवानी और फॉर्मल जूते पहनने चाहिए। औपचारिक कार्यक्रमों में भी काला या सफेद जोधपुरी सूट, या गहरे रंग का टू-पीस या थ्री-पीस सूट पहनना सही माना जाता है। ध्यान दीजिएगा यहां भी कहा गया कि परंपरा के हिसाब से सही माना जाता है। ना कि कोई ठोस नियम बनाए गए हैं।
परंपरा वाली बात पर ही, एन. गोपालस्वामी, जो चीफ इलेक्शन कमिश्नर और होम सेक्रेटरी रह चुके हैं। उनका बयान TOI की एक रिपोर्ट में मिलता है। एन. गोपालस्वामी कहते हैं, 'अगर कोई अफसर अपने जिले में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का स्वागत कर रहा है, तो परंपरा कहती है कि उसे फॉर्मल कपड़े पहनने चाहिए, जैसे बंद गला या कोट-पैंट और टाई वाला सूट।'
कपड़ों की इस बहस में हमें सिविल सेवाओं से जुड़े एक खास नियम पर ध्यान देना होगा। आपको याद होगा हमने बताया कि PM मोदी के सामने रस्मी पोशाक न पहनने पर 2015 में दो सिविल अधिकारियों पर गाज गिरी थी। IAS कटारिया और केसी देवसेनापति। दोनों को मिले नोटिस में द ऑल इंडिया सर्वेसेज (कंडक्ट) रूल्स, 1968 के क्लॉज 3(1) का जिक्र हुआ।
क्या कहता है यह क्लॉज़?
द ऑल इंडिया सर्वेसेज (कंडक्ट) रूल्स, 1968 भारत सरकार का बनाया हुए नियमों का एक सेट है। IAS , IPS, और IFS जैसे अधिकारियों के कंडक्ट के बारे में यह नियम तय करता है। इसके क्लॉज 3(1) में लिखा गया है कि "हर अफसर को हमेशा ईमानदारी से काम करना चाहिए और ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे अफसर की या उसकी नौकरी की बदनामी हो।”
ईमानदारी और आचरण को लेकर भी बातें लिखी गईं लेकिन कहीं भी उनके ड्रेस कोड को लेकर कोई बात स्पष्ट नहीं की गई। ड्रेस कोड का जिक्र सिर्फ द इंडियन पुलिस सर्विस (यूनिफॉर्म) रूल्स, 1954 में है। वह भी सिर्फ IPS अधिकारियों के लिए। IAS अधिकारियों के लिए ऐसा कोई रूल नहीं मिलता है। खासकर उस नियम में जिसके तहत दोनों कलेक्टरों को नोटिस जारी किया गया था। इससे यह बात और भी पुख्ता हो जाती है कि परंपरा के तौर पर इस बंद गले सूट को पहना जा रहा है। कानून इस बारे में कुछ नहीं कहता।
अब एक और सवाल उठता है कि अगर ऐसा कोई नियम नहीं है तो फिर इसके लिए बाध्य क्यों किया जाता है? अंग्रेजों की बनाई पोशाक उनके वातावरण के हिसाब से ठीक है लेकिन भारतीय वातारण में जहां साल के कुछ महीनों में तीखी गर्मी पड़ती हैं वहां ऐसे बंद गले सूट पहनकर ग्राउंड पर काम करना मुश्किल है। जो कहीं न कहीं अफसरों को असहज कर सकता है और उनके काम पर भी असर डाल सकता है। ऊपर से बीते कुछ दशकों में ग्लोबल वार्मिग के चलते मौसम बेहद गर्म होता जा रहा है, ऐसे में पुरानी परंपरा को निभाना थोड़ा तकलीफ भी दे सकता है।
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पटना हाई कोर्ट वाले मामले में भी IAS आनंद किशोर ने कुछ ऐसी ही दलील दी थी। कहा था- 'गर्मी के मौसम में सूट पहनना और ग्राउंड पर काम करना असहज कर देता है।' रस्मी पोशाक न पहनने पर जब नोटिस मिला तो IAS अमित कटारिया ने भी कुछ ऐसा ही जवाब दिया। मीडिया रिपोर्ट्स में कटारिया का Whatsapp पर किया हुआ मैसेज छापा गया। जिसमें कटारिया कहते हैं, 'बस्तर में मई में बहुत गर्मी होती है, तापमान 40 डिग्री से ऊपर चला जाता है। ऐसे में घंटों तक बंद गला पहनकर काम करना मुश्किल होता है। मैं पूरी तरह फॉर्मल कपड़ों में था – नीली शर्ट, काली पैंट और काले चमड़े के जूते। कोई टी-शर्ट या चप्पल नहीं पहनी थी। मैं धूप में खड़ा था, बहुत पसीना आ रहा था, आंखें जल रही थीं। इसलिए मैंने बंद गला कोट नहीं पहना, जो मेरी कार में रखा था।'
देखा जाए तो उनका ऐसा करना स्वाभाविक भी है। जिसका समर्थन कई अफसर भी करते आए हैं। वैसै भी अधिकारियों के बयानों और रूल में लिखी गई बातों से तो यही निष्कर्ष निकालता है कि कोई खास कपड़ा पहनना रूल नहीं, सिर्फ परंपरा है। परंपरा जो ब्रिटिशर्स के दौर से आज तक चलती आ रही है। इन परंपराओं पर सवाल उठाता हुआ समाज का एक धड़ा है जो ये कहता है कि जब वर्तमान सरकार ने बीते एक दशक में कई विक्टोरियन नियमों औऱ परंपराओं को खत्म किया है तो फिर IAS अफसरों के लिए बनाई गई इन विक्टोरियन परंपराओं को क्यों नहीं सुधारा जा रहा है। इनमें भी तो समय और मौसम के हिसाब से बदलाव किए जाने चाहिए।
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