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कर्नाटक: 15 साल पुराने 1 करोड़ वाहन, 2 साल में 5 हजार ही स्क्रैप हुए

कर्नाटक में पिछले दो साल में महज पांच हजार ही गाड़ियां स्क्रैप के लिए लाई गई हैं। यह गाड़ियां भी सरकारी विभाग की हैं।

scrapped car

प्रतीकात्मक तस्वीर। Photo Credit- Social Media

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके लिए राज्य सरकार सड़कों से पुराने वाहनों को हटाकर उन्हें स्क्रैप यानी नष्ट करने के प्रयास कर रही है। हालांकि, पुराने वाहनों को स्क्रैप करने का काम सरकार बहुत ही धीमी गति से कर रही है। दरअसल, 15 साल से ज्यादा पुरानी गाड़ियों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के मुताबिक शुरू की गई यह नीति रफ्तार नहीं पकड़ पाई है, पिछले दो सालों में केवल 0.07 प्रतिशत ऐसे वाहनों को ही स्क्रैप किया गया है।

 

राज्य से सबसे ज्यादा पुराने वाहनों को हटाने की चुनौती राजधानी बेंगलुरु में है। बेंगलुरु में 15 साल से ज्यादा पुराने वाहनों की संख्या 34 लाख तक पहुंच गई है। बेंगलुरु मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक, कुल पुराने वाहनों में से 21 लाख दोपहिया, 7 लाख कारें और 6 लाख अन्य वाहन शामिल हैं। इन गाड़ियों के बेंगलुरु में जमावड़े से शहर पुराने वाहनों का केंद्र बन गया है।

 

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कर्नाटक में 1 करोड़ पुराने वाहन

जानकारी के मुताबिक, कर्नाटक में लगभग 1 करोड़ प्राइवेट और सरकारी वाहन हैं, जिनकी उम्र 15 साल से ज्यादा है। सरकारी वाहनों को स्क्रैप करना अनिवार्य है लेकिन प्राइवेट निजी वाहन मालिक किसी भी आदेश से बंधे नहीं हैं।

5,000 वाहन ही स्कैप हुए

रिपोर्ट में कहा गया है कि नीति के लचीलेपन से इसका पालन ठीक से नहीं हो पा रहा है। देवनहल्ली और कोराटागेरे (तुमकुरु) में रजिस्टर्ड वाहन स्क्रैपिंग सुविधाएं स्थापित की गई हैं लेकिन इन केंद्रों ने अब तक केवल लगभग 5,000 वाहनों को ही स्कैप किया है। स्क्रैप की गई गाड़ियों में भी ज्यादातर सरकारी वाहन हैं।

 

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कई प्रोत्साहन योजनाएं शुरू

कर्नाटक सरकार ने वाहन मालिकों को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की हैं। इस योजनाओं में गैर-परिवहन वाहनों के लिए 25 प्रतिशत तक की रोड टैक्स छूट और नए वाहनों की खरीद पर नकद छूट शामिल है। मगर, इन प्रोत्साहनों के बावजूद भी बाहन मालिक अपने पुराने वाहनों को स्क्रैप के लिए नहीं दे रहे हैं।

 

वहीं, पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया है कि नियमों को अपनाने में सुस्ती एक बड़ी समस्या है, जो जागरूकता की कमी और नियमों के सख्त ना होने से जुड़ी हैं।

 

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