संजय सिंह, पटनाः विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई। पिछले चुनाव में कांग्रेस के 19 विधायक थे। इस बार यानी कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विधायकों की संख्या घटकर 6 रह गई है। चुनाव परिणाम आने के बाद प्रदेश स्तर तक कांग्रेस का अंतर्कलह जगजाहिर हो गया। पार्टी के 43 बागी नेताओं ने हार के लिए प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरू और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके खिलाफ बगावत की बिगुल फूंक दी।
यह विवाद इतना बढ़ गया कि इस मामले में केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा। नए विधानसभा का पहला सत्र बीत जाने के बावजूद कांग्रेस ने अब तक अपने विधायक दल का नेता नही चुना है। प्रदेश नेतृत्व भी इस डर से परहेज कर रहा है कि कोई नया विवाद नहीं उपजे। अब आला कमान पर ही निर्णय लेने की जिम्मेवारी सौंप दी गई है।
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नही बनी एक राय
विधानसभा चुनाव के बाद टिकट वितरण को लेकर कांग्रेस में घमासान मचा रहा। नई सरकार का गठन भी हो गया। विधानसभा का पहला सत्र भी समाप्त हो गया, लेकिन विधायकों और राज्य स्तरीय नेताओं के बीच कांग्रेस विधायक दल का नेता चुने जाने पर सहमति नही बन सकी।
प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरू और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने विधायकों की बुलाई गई बैठक में समझाने बुझाने का पूरा प्रयास किया, लेकिन विधायक इन दोनों नेताओं की बातों पर सहमत नहीं हो पाए। कांग्रेस इस बार के विधानसभा चुनाव में 6 विधायकों को ही चुनाव जिता पाई। इनमें से तीन पहली बार चुनाव जीते हैं। वाल्मीकि नगर से सुरेन्द्र प्रसाद और चनपटिया से अभिषेक रंजन तथा फारबिसगंज से मनोज विश्वास पहली बार विधायक बने हैं। इन लोगों के पास विधानसभा के कार्यों के अनुभव की कमी है। परिणामस्वरूप कांग्रेस नए विधायकों पर दांव लगाना नहीं चाहती है।
तीन नेताओं के बीच टक्कर
कटिहार जिले के मनिहारी विधानसभा क्षेत्र से मनोहर सिंह लगातार चौथी बार विधायक चुने गए हैं। वह विधायक बनने के पूर्व आईपीएस अधिकारी भी थे। वह खरबार (आदिवासी) समुदाय से आते हैं। इस समुदाय की आबादी बिहार में बहुत कम है। ऐसी स्थिति में उन्हें विधायक दल का नेता चुना जाता है तो इसका कितना प्रभाव अन्य मतदाताओं पर पड़ेगा, इस पर पार्टी के नेता विचार कर रहे हैं।
इधर अब्दुर्रहमान तीसरी बार अररिया से विधायक बने हैं। मुस्लिम समुदाय के बीच इनकी अच्छी पकड़ भी है। इन्हें विधानसभा के कार्यों का अनुभव भी है। तीसरी दावेदारी किशनगंज के विधायक कमरुल हौदा की है। कमरुल हौदा का राजनीतिक पृष्ठभूमि एआईएमआईएम की है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस आलाकमान इन्हें विधायक दल का नेता बनाने पर काफी सोच विचार कर रही है। विधायक दल का नेता नहीं रहने के कारण पार्टी के विधायकों को एकजुट रखने में परेशानी भी हो रही है। पार्टी के विधायक विधानसभा में एकजुट होकर मुद्दे को भी नहीं उठा पा रहे हैं।
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बोले प्रदेश अध्यक्ष
प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम का कहना है कि पार्टी को विधायक दल का नेता चुने जाने की कोई हड़बड़ी नहीं है। इस मामले में राष्ट्रीय नेतृत्व को फैसला लेना है। विधानसभा के अगले सत्र के पहले विधायक दल का नेता चुन लिया जाएगा।