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बिहार में अपनी राह खुद बनाना चाहती है कांग्रेस, पर पार्टी में फूट पड़ रही

बिहार में कांग्रेस अब अकेले चलना चाहती है, लेकिन इसी पर विचार करने के लिए जब सदाकर आश्रम में बैठक हुई तो कई नेता अनुपस्थित रहे।

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राहुल गांधी । Photo Credit: PTI

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संजय सिंह, पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में सब कुछ ठीक-ठाक नही चल रहा है। प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता आरजेडी का पिछलग्गू बना रहना चाहते हैं। जबकि प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम पार्टी को स्वतंत्र राह पर ले जाने के मूड में हैं। जानकारी के अनुसार पिछले दिनों हार की समीक्षा के लिए पटना स्थित सदाकत आश्रम में पार्टी नेताओं और जिला एवं राज्य स्तर के संगठन से जुड़े नेताओं की बैठक हुई। 

 

बैठक में मौजूद नेताओं का कहना था कि लगातार आरजेडी के साथ रहने के कारण कांग्रेस की वैचारिक और संगठनात्मक पहचान धूमिल हुई है। जनता में कांग्रेस की अलग छवि तभी बनेगी जब पार्टी अपनी राजनीतिक लड़ाई खुद लड़ेगी। चुनाव के लिए मजबूत प्रत्याशी तभी तैयार होंगे। बैठक में 14 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित रैली में बिहार से ज्यादा से ज्यादा लोगों को ले जाने का संकल्प लिया गया।

 

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रैली के बाद पार्टी ने सदन से सड़क तक संघर्ष करने का रोड मैप तैयार करने का निर्णय लिया है। पार्टी सूत्रों ने बताया कि गुटबाजी से अब तक कांग्रेस उबर नहीं पाई है। यही कारण है कि बिहार विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन ढीला रहा। इससे पूरे प्रदेश में पार्टी की छवि खराब हुई। आरजेडी पर निर्भरता भी पार्टी को डुबोने का बड़ा कारण बनी। जब तक व्यापक पैमाने पर पार्टी संगठन में फेरबदल नहीं किया जाता है, तब तक पूरे प्रदेश में कांग्रेस की छवि नही चमकेगी। पार्टी को हर हाल में स्वतंत्र राह पर चलना ही पड़ेगा।

15 जिला अध्यक्षों को नोटिस

विधानसभा चुनाव में करारी हार के वावजूद कांग्रेस स्तरीय जिला नेता गंभीर नहीं हैं। हार के कारणों की समीक्षा के लिए प्रदेश अध्यक्ष द्वारा बुलाई गई बैठक में 15 जिला अध्यक्ष उपस्थित नहीं हुए। इन जिलाध्यक्षों को अनिवार्य रूप से बैठक में भाग लेने की सूचना पहले ही भेज दी गई थी। 

 

पार्टी सूत्रों ने बताया कि चुनाव से कुछ दिनों पूर्व आला कमान ने प्रदेश अध्यक्ष के पद से डाक्टर अखिलेश सिंह को हटाकर यह पद राजेश राम को दे दिया था। शीर्ष नेतृत्व की सोच थी कि राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से दलित वोट का झुकाव कांग्रेस की ओर होगा। पर चुनाव में ऐसा कुछ हुआ नहीं। टिकट बंटवारे को लेकर भी प्रदेश अध्यक्ष अपने ही पार्टी के विरोधियों के निशाने पर आ गए। उन पर टिकट बेचने का आरोप भी लगा। 

 

पूर्व में जिला स्तरीय कमिटी जो बनाई गई थी वह अखिलेश सिंह ने बनाई थी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में वर्तमान अध्यक्ष राजेश राम के हारने से उनकी राजनीतिक हैसियत भी कम हुई है। पार्टी में गुटबाजी के कारण जिला स्तर पर भी उनकी बातें संगठन के लोग नहीं सुनते हैं। यही कारण है कि बुलाई गई बैठक से 15 जिला अध्यक्ष गायब रहे। गायब जिला अध्यक्षों को कारण बताओ नोटिस थमाने की तैयारी की जा रही है।

थम नहीं रहा है सांसद व विधायक का विवाद

भागलपुर के जेडीयू सांसद अजय मंडल और बिहपुर के बीजेपी विधायक इंजीनियर शैलेन्द्र के बीच भी तल्खी कम होने का नाम नहीं ले रही है। विधानसभा चुनाव के दौरान दोनोंं के बीच दूरी बढ़ी थी। दोनोंं एक दूसरे को घेरने के चक्कर में लगे रहते हैं। जानकारी के अनुसार सांसद अजय मंडल ने कल अपने फेसबुक पोस्ट पर राज्य सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए एक पोस्ट डाला। 

 

उक्त पोस्ट पर विधायक ने लिखा कि एक तो निपट गया अब आपकी बारी है। विधायक के इस पोस्ट से सियासी भूचाल आ गया। मालूम हो कि सांसद और विधायक के बीच विवाद विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ। सांसद अपने रिश्तेदार को जेडीयू का टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया। गुस्साए सांसद ने अपना त्यागपत्र मुख्यमंत्री को भेज दिया। सांसद यहीं नहीं रुके। उन्होंने विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी से मिलकर अपने रिश्तेदार (भांजी) को बिहपुर से विधानसभा का टिकट दिलवा दिया। इसी विधानसभा क्षेत्र से इंजीनियर शैलेन्द्र भी बीजेपी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे।

 

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सांसद गुपचुप तरीके से अपने रिश्तेदार को चुनाव जिताने के लिए प्रचार करने लगे। हालांकि चुनाव में जीत बीजेपी प्रत्याशी की हुई, लेकिन सांसद और विधायक के बीच दूरी बढ़ती चली गई। सांसद ने इस मामले में पूछने पर बताया कि मैं इस मामले में कोई कॉमेंट नहीं करूंगा। वक्त आने पर बताऊंगा।

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