हर 3 घंटे में 1 मर्डर! अवैध हथियार बन रहे बिहार में क्राइम की अहम वजह
बिहार की नीतीश सरकार कानून व्यवस्था पर घिरती नजर आ रही है। मर्डर की खुलेआम हो रही घटनाओं ने सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे में जानते हैं कि बिहार में क्राइम बढ़ने की वजह क्या है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
कभी अस्पताल में घुसकर किसी की हत्या... तो कभी घर के बाहर किसी को गोली मार दी गई.. कुछ दिन से बिहार में अपराध के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं। गुरुवार को ही पटना के पारस अस्पताल में पैरोल पर बाहर आए अपराधी चंदन मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी गई। कुछ दिन पहले ही पटना में एक कारोबारी गोपाल खेमका की हत्या उनके घर के बाहर कर दी गई थी।
इन सबसे बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए हैं। विपक्षी नेता आरोप लगा रहे हैं कि बिहार में अब कोई सुरक्षित नहीं हैं। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बिहार को 'क्राइम कैपिटल' बताया था।
हत्या और गोलीबारी की बढ़ती घटनाओं के बीच बिहार के एडीजी (हेडक्वार्टर) कुंदन कृष्णन ने कहा कि मई से जुलाई के बीच ज्यादा हत्या होती हैं, क्योंकि खेतीहर मजदूर बेरोजगार रहते हैं, इसलिए झड़पें बढ़ जाती हैं। उन्होंने कहा, 'बिहार में फसल के दो सीजन होते हैं। अप्रैल से जुलाई के बीच कोई सीजन नहीं होता, इसलिए इस दौरान ज्यादातर खेतीहर मजदूर बेरोजगार होते हैं। लिहाजा, जमीन से जुड़ी झड़पें बढ़ जाती हैं।'
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क्या ऐसा सच में होता है?
एडीजी कुंदन कृष्णन के इस बयान पर जमकर बवाल हुआ। गुरुवार को उन्होंने न्यूज एजेंसी PTI से कहा, 'मैंने जो कुछ भी कहा है, वह आंकड़ों पर आधारित है। आंकड़े बताते हैं कि इस साल में मई से जुलाई के बीच हिंसक अपराधों में तेजी देखी जाती है।' उन्होंने बताया कि इस साल अप्रैल में हत्या के 217 और मई में 284 मामले दर्ज किए गए थे।
उन्होंने पिछले 3 साल में अप्रैल से जुलाई के बीच दर्ज होने वाले हत्या के मामलों के आंकड़े गिनाए। उन्होंने बताया कि 2024 में अप्रैल में हत्या के 231, मई में 254, जून में 292 और जुलाई में 279 मामले सामने आए थे। अगस्त में 249 मामले दर्ज किए गए थे।
एडीजी ने बताया कि 2023 में अप्रैल के महीने में हत्या के 215, मई में 279, जून में 278 और जुलाई में 270 केस दर्ज हुए थे। अगस्त में यह कम होकर 250 पर आ गए थे। इसी तरह 2022 में अप्रैल में 256, मई में 301, जून में 297 और जुलाई में 262 मामले सामने आए थे। अगस्त में इनमें गिरावट आई थी और 257 केस दर्ज किए गए थे।
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हर 3 घंटे में एक मर्डर!
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि अपराध के मामलों में बिहार टॉप-5 राज्यों में आता है। न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, बिहार के क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (SCRB) का डेटा बताता है कि इस साल जनवरी से जून के बीच 1,376 हत्याएं हुईं हैं। यानी हर महीने औसतन 229 मर्डर केस दर्ज किए गए हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो हर दिन औसतन 7 और हर तीन घंटे में 1 मर्डर होता है।
SCRB का डेटा बताता है कि बिहार में 2024 में हत्या के 2,786 मामले सामने आए थे। इससे पहले 2023 में 2,863 मामले सामने आए थे। इसका भी अगर औसतन निकाला जाए तो हर दिन 7 हत्याएं होती हैं।
PTI से बात करते हुए डीजीपी विनय कुमार ने कहा, 'ज्यादातर हत्याओं के पीछे जमीन और संपत्ति से जुड़े विवाद अहम कारण हैं। ऐसे मामलों में पुलिस की भूमिका सीमित होती है, क्योंकि यह अपराध होने के बाद शुरू होती है। उन्होंने बताया कि अवैध हथियारों तक पहुंच के कारण अपराध बढ़े हैं।
वहीं, एडीजी कुंदन कृष्णन ने कहा, 'बिहार बहुत बड़ी आबादी वाला राज्य है, जहां 60% से ज्यादा आबादी 30 साल से कम उम्र की है और बेरोजगार है। ऐसे में कानून व्यवस्था संवेदनशील होना स्वाभाविक है।'
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बिहार में अपराध बढ़ने की वजह क्या?
पिछले महीने ही SCRB और बिहार पुलिस की एक स्टडी सामने आई थी। यह स्टडी 2015 से 2024 के बीच के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई थी। इसमें सामने आया था कि अवैध हथियार और गोला-बारूद के चलते बिहार में अपराध बढ़े हैं। रिपोर्ट में बताया गया था कि बिहार में अवैध हथियारों और फर्जी लाइसेंस का नेटवर्क फैलता जा रहा है, जो अपराध बढ़ा रहा है।
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि 2015 से 2024 के दौरान 10 साल में हर साल आर्म्स ऐक्ट के तहत औसतन 2,913 केस दर्ज किए गए हैं। इस दौरान सालाना औसतन 3,628 अवैध हथियार और 17,239 गोला-बारूद बरामद किए गए हैं। इसमें कहा गया था कि मर्डर, किडनैपिंग, फिरौती, डकैती, लूटपाट और बैंक डकैती जैसे हिंसक अपराधों को अंजाम देने के लिए इन अवैध हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है।
आर्म्स ऐक्ट के तहत पटना में सालाना औसतन 322, बेगूसराय में 168, मुजफ्फरपुर में 158, नालंदा में 118 और वैशाली जिले में 118 केस दर्ज किए गए थे। इन 10 सालों में देसी हथियारों की रिकवरी भी दोगुनी हो गई। 2015 में 2,356 देसी पिस्तौल जब्त की गई थीं। वहीं 2024 में 4,981 देसी पिस्तौल रिकवर की गई थीं। और तो और इसी दौरान गोला-बारूद और कारतूस की बरामदगी भी दोगुना से ज्यादा बढ़ी। 2015 में पुलिस ने 9,449 गोला-बारूद और कारतूस बरामद किए थे, जिनकी संख्या 2024 में बढ़कर 23,451 हो गई।
एडीजी कुंदन कृष्णन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि स्टडी में हथियारों और गोला-बारूद या कारतूसों की अवैध खरीद के लिए जाली दस्तावेजों के दुरुपयोग का पैटर्न सामने आया है। उन्होंने बताया था, 'लाइसेंस और आईडी कार्ड्स की जालसाजी का भी पता चला है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और नागालैंड जैसे राज्यों में लाइसेंसी डीलरों से जाली लाइसेंस और आईडी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर धोखाधड़ी से हथियार खरीदे जा रहे हैं।'
उन्होंने यह भी बताया था कि इस बात के सबूत हैं कि कुछ लाइसेंसी दुकानें अपने स्टोर में नकली हथियार रखती हैं और असली हथियारों को अवैध रूप से बेच रहीं हैं।
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