पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा पुलिस के एक कांस्टेबल पर लगाई गई सजा को काफी हद तक कम कर दिया। यह मामला एक डॉग स्क्वॉड की कुतिया 'लाइका' के लापता होने से जुड़ा है, जहां कांस्टेबल पर आरोप था कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को समय पर सूचना नहीं दी।
यह घटना साल 2000 की है। कांस्टेबल जगमल सिंह उस समय हिसार की सीआईडी यूनिट के डॉग स्क्वॉड में हेड कांस्टेबल के रूप में तैनात थे। 19 जून 2000 की रात को लाइका गायब हो गई थी, जो पड़ोस में चल रही शादी के शोर-शराबे में खुद को बंधन से आजाद कर भाग निकली। कुतिया को एक महीने बाद, 20 जुलाई 2000 को बरामद कर लिया गया। विभागीय जांच में सिंह को कुतिया के गुम होने का जिम्मेदार नहीं ठहराया गया, लेकिन वरिष्ठ अधिकारी को तुरंत रिपोर्ट न करने के लिए दोषी माना गया।
सैलरी बढ़ाने पर लगी रोक
शुरुआत में अनुशासनात्मक अधिकारियों ने स्थायी प्रभाव से पांच साल की सैलरी बढ़ाने पर रोक लगाने की सजा दी थी, जिसे अपील पर घटाकर दो वेतन वृद्धि कर दिया गया। हालांकि, देखरेख करने वाले अन्य व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
हाई कोर्ट के जस्टिस जगमोहन बंसल ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि कांस्टेबल द्वारा समय पर सूचना न देने का कदाचार तो हुआ, लेकिन लगाई गई सजा इससे ज्यादा कठोर थी। कोर्ट ने सजा को अस्थायी प्रभाव वाली दो वेतन वृद्धि की रोक तक सीमित कर दिया। साथ ही, बकाया राशि को छह महीने में भुगतान करने का आदेश दिया और देरी होने पर 7.5 प्रतिशत सालाना ब्याज भी जोड़ा जाएगा।
पुलिस डॉग स्क्वॉड पर खर्च
पुलिस के डॉग स्क्वॉड में इस्तेमाल होने वाले कुत्ते आम पालतू कुत्तों से अलग होते हैं। ये विशेष नस्लें जैसे जर्मन शेफर्ड या बेल्जियन मैलिनोइस होती हैं, जो अपराध जांच, सर्च ऑपरेशन और सुरक्षा कार्यों के लिए प्रशिक्षित की जाती हैं। इन पर खर्च इसलिए ज्यादा होता है क्योंकि एक अच्छी नस्ल का कुत्ते का बच्चा 30,000 से 1 लाख रुपये या इससे ज्यादा का हो सकता है।
आयातित या प्रमाणित नस्लें तो इससे महंगी होती हैं। इसके साथ ही उनके विशेष ट्रेनिंग पर 50,000 रुपये से ज्यादा खर्च आता है, जिसमें हैंडलर के साथ मिलकर काम करना सिखाया जाता है। भोजन (मांस, अंडे और विशेष डाइट), स्वास्थ्य जांच, दवाइयां, पट्टा और अन्य उपकरणों पर हर महीने 5,000 से 10,000 रुपये या अधिक लग सकते हैं।
ये कुत्ते पुलिस के लिए महत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं, इसलिए उनकी देखभाल और सुरक्षा पर विभाग गंभीर रहता है। इस मामले में भी लाइका की गुमशुदगी को हल्के में नहीं लिया गया था। यह फैसला अनुपातिक सजा के सिद्धांतम को दर्शाता है, जहां गलती के मुकाबले दंड ज्यादा न हो।