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महाकुंभ में हर्षा रिछारिया पर क्यों होने लगा मंथन, क्या कहते हैं संत?

महाकुंभ 2025 के लिए प्रयागराज आई हर्षा रिछारिया वैसे तो सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं लेकिन इन दिनों इस बात पर चर्चा हो रही है कि वह साध्वी हैं या नहीं।

Harsha Richharia

हर्षा रिछारिया, Photo Credit: Harsha Richharia FB

कोई बोला साध्वी तो किसी ने कहा शिष्या वहीं कुछ ने बताया माडल, एक्टर और सोशल मीडिया की इनफ्लुएंसर। एक लड़की हर्षा रिछारिया जो अपने आप को गुरु आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशनंद महाराज की शिष्या बताती हैं, इन दिनों खूब ट्रेंड है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जबरदस्त तरीके से जारी है। अचरज की बात है कि जहां महाकुंभ में धर्म अध्यात्म और भारतीय संस्कृति सनातन की चर्चा होनी चाहिए वहां एक लड़की को लेकर महाकुंभ क्षेत्र में संत भी दोफाड़ हो गए हैं। कई श्रीमहंत, संत हर्षा रिछारिया को महामंडलेश्वर कैलाशनंद की शिष्या मानते हुए उसे उसका अधिकार और सम्मान दिलाने के लिए उठ खड़े हुए हैं।

 

वहीं कुछ बड़े महामंडलेश्वर, साधु-संत हर्षा रिछारिया को साध्वी तो दूर शिष्या तक मानने को तैयार नहीं है। हर्षा रिछारिया को मेला क्षेत्र से बाहर करने और जिस श्रीमहंत ने उन्हें आश्रय दिया अपनी छावनी प्रवेश यात्रा में रथ पर बैठाया उन पर भी पंचों से कार्रवाई करने की मांग कर डाली है। सोशल मीडिया हो या महाकुंभ नगर क्षेत्र जहां एक ओर हर्षा रिछारिया के समर्थक हैं। वहीं लगातार इस बात का विरोध भी हो रहा है।

 

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ऐसे में हर्षा रिछारिया की स्थिति भी असहज हो गई है। उन्होंने एक्स पर अपनी पीड़ा पोस्ट कर दी है और लिखा भी है कि वह जल्दी ही मेला क्षेत्र छोड़ने का निर्णय ले सकती हैं। हर्षा रिछारिया ने इंस्टाग्राम पेज पर एक वीडियो अपलोड किया है जिसमें वह रोते हुए दिख रही हैं। रोते हुए हर्षा ने कहा, 'शर्म आनी चाहिए, एक लड़की जो धर्म से जुड़ने के लिए यहां आई थी, धर्म को जानने आई थी, सनातन संस्कृति को जानने यहां आई थी। आपने उसे इस लायक भी नहीं छोड़ा, जो पूरे कुंभ में रुक पाए। वह कुंभ जो हमारे जीवन में एक बार आएगा। आपने तो कुंभ एक इंसान से छीन लिया। जिसने भी ऐसा किया उसे पाप लगेगा।'

 

साध्वी हैं कि नहीं?

 

दरअसल हर्षा रिछारिया भोपाल मध्यप्रदेश की रहने वाली हैं। कुछ सालों से वह ऋषिकेश उत्तराखंड में रह रही थीं। इकतीस वर्षीय हर्षा रिछारिया ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर खुद को एंकर, मेकअप आर्टिस्ट, सोशल एक्टिविस्ट, सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर और ट्रैवल ब्लॉगर बताया है लेकिन उनका कहना है कि उनकी भेषभूषा आजकल एक साध्वी जैसी ही है। महामंडलेश्वर कैलाशनंद महाराज की शिष्या हैं। महाकुंभ में वह निरंजनी अखाड़े से जुड़ी हुई हैं। इस अखाड़े से नागा साधु संयासिनी भी रहते हैं। वह एक शिष्या के रूप में यहां रह रही हैं। उन्होंने अपने गुरु आचार्य से गुरु दीक्षा ली है लेकिन वह साध्वी नहीं है। 

 

इससे पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह कह रही थी कि वह 2 साल पहले साध्वी बनी हैं। उसी वीडियो को लेकर कुछ अन्य लोगों ने भी वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर यह कहते हुए वायरल कर दिया कि महामंडलेश्वर कैलाश आनंद के निरंजनी अखाड़े में रह रही साध्वी हर्षा रिछारिया प्रयागराज महाकुंभ की सबसे सुंदर साध्वी हैं। फिर सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें, वीडियो वायरल होने लगे। 

 

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इसी बीच सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे लोग जो पहले से ही हर्षाचारिया को एक एक्टर मॉडल और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर के रूप में जानते थे उन लोगों ने उनकी हकीकत बयां करना शुरू कर दिया। मामला इस पर आकर अटक गया कि हर्षा रिछारिया साध्वी नहीं हैं और उन्होंने साध्वी होने ढोंग किया। फिर भी गले में रुद्राक्ष और फूलों की माला, माथे पर तिलक और साध्वी के कपड़ों में संगम नगरी में ही नहीं पूरे सोशल मीडिया मीडिया पर हर्षा रिछारिया (Harsha Richhariya) छा गई हैं।

 

क्या कहते हैं संत-महात्मा?

 

इस मामले पर बयानबाजी भी शुरू है श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने कहा, 'हर्षा रिछारिया निरंजनी अखाड़े के एक महामंडलेश्वर से दीक्षा लेने आई थीं। वह एक मॉडल हैं और सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं। उन्होंने रामनामी वस्त्र पहना हुआ था। हमारी परंपरा है कि जब भी सनातन का कोई आयोजन होता है, तो हमारे युवा भगवा वस्त्र पहनते हैं। यह कोई अपराध नहीं हैं। हमारे यहां परंपरा है कि एक दिन, पांच दिन, सात दिन के लिए साधु होते हैं। युवती ने निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर से मंत्र दीक्षा ली थी लेकिन वह संन्यासिन नहीं बनी हैं। रथ पर बैठी थी तो गुरु शिष्य परंपरा में रथ पर गुरु के साथ रथ पर बैठने गलत नहीं हैं।'

 

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इसी मामले पर काली सेना के प्रमुख स्वामी आनंद स्वरूप ने उनके आचरण पर आपत्ति जताते हुए कहा, 'कुंभ का आयोजन ज्ञान और अध्यात्म के प्रसार के लिए किया जाता है और इसका उपयोग मॉडलों द्वारा प्रचार कार्यक्रम के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।' फेसबुक पर हिंदी में लिखे पोस्ट में स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा, 'महाकुंभ जैसे पवित्र और दिव्य आयोजन में धर्म, संस्कृति और परंपरा की रक्षा हमारा सर्वोच्च कर्तव्य है। भगवा वस्त्र, जो त्याग, तपस्या और सनातन धर्म की परम मर्यादा का प्रतीक है, उसका सम्मान हर सनातनी का धर्म है। भगवा धारण करना मात्र वस्त्र धारण करना नहीं, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि, संयम और धर्म के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक है। आज जब कुछ लोग इन पवित्र परंपराओं की मर्यादा को भंग करने का प्रयास करते हैं, तो यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि इन अनादि परंपराओं की रक्षा के लिए एकजुट हों।' 

 

वहीं इसके बाद ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सवाल उठाते हुए कहा था, 'महाकुंभ में चेहरे की सुंदरता नहीं बल्कि हृदय की सुंदरता देख जाना चाहिए था। जो अभी यह नहीं तय कर पाया है कि संन्यास की दीक्षा लेनी है या शादी करनी है, उसे संत महात्माओं के शाही रथ पर जगह दिया जाना उचित नहीं है। श्रद्धालु के तौर पर शामिल होती तब भी ठीक था, लेकिन भगवा कपड़े में शाही रथ पर बिठाना पूरी तरह गलत है। सनातन के प्रति समर्पण होना जरूरी होता है।' इसके साथ ही महिला साध्वी और श्री महंत ने भी इस बात का विरोध किया है।

 

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