प्लूरल्स पार्टी से जन सुराज तक, नई पार्टियों पर बिहार को कितना भरोसा?
बिहार की राजनीति में साल 1997 से लेकर अब तक सिर्फ दो दलों के नेता ही मुख्यमंत्री बने। राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड। इस बीच में कुछ नए दल आए, जिनकी महत्वाकांक्षाएं बड़ीं रहीं लेकिन प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा।

प्रशांत किशोर और पुष्पम प्रिया चौधरी। (Photo Credit:Social Media)
बिहार की राजनीति में दो नई राजनीतिक पार्टियां चुनावी समर में उतरीं हैं। एक पार्टी के सर्वेसर्वा राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर हैं, दूसरी पार्टी की सर्वे-सर्वा पुष्पम प्रिया चौधरी हैं। द प्लूरल्स पार्टी की अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी बिहार को बदलने का दावा करती हैं, जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर भी बिहार में मूलभूत बदलाव लाने का दावा करके राजनीति में उतरे हैं। दशकों से नीतीश कुमार और लालू यादव के राजनीतिक दबदबे के बाद ऐसे कम मौके आए हैं, जब बिहार के लोगों ने किसी नए चेहरे पर भरोसा किया हो।
लालू प्रसाद यादव पहली बार 10 मार्च 1990 को बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। राबड़ी देवी पहली बार 25 जुलाई 1997 को बिहार की मुख्यमंत्री बनीं। नीतीश कुमार पहली बार 3 मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री बने। तब से लेकर अब तक वही मुख्यमंत्री बने हुए हैं। बीच में 20 मई 2014 से लेकर 22 फरवरी 2015 तक 278 दिनों के लिए जीतन राम मांझी भी मुख्यमंत्री रहे हैं। सियासी तौर पर जेडीयू और आरजेडी का ही रहा है। आइए जानते हैं बिहार की जनता, नई सियासी पार्टियों को किस तरह से अपनाती है-
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प्लूरल्स पार्टी के लिए कैसा था पहला चुनाव?
प्लूरल्स पार्टी की मुखिया पुष्पम प्रिया चौधरी ने दावा किया था कि वह बिहार में सरकार बना लेंगी, सीधे मुख्यमंत्री ही बनेंगी लेकिन उन्हें तगड़ा झटका लगा। कई उम्मीदवारों के गलत फॉर्म भरने की वजह से नामांकन खारिज हुए लेकिन 102 सीटों पर उन्होंने दमखम से चुनाव लड़ा। सोशल मीडिया पर वह खूब चर्चा में रहीं लेकिन 0.3 प्रतिशत कुल वोट पड़े। पुष्पम प्रिया चौधरी खुद 1511 वोट पा सकीं। सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
जन सुराज पार्टी के लिए पहला चुनाव?
प्रशांत किशोर ने 2 अक्तूबर 2024 को बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान से ऐलान किया था कि उनकी पार्टी 'जन सुराज' बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। 5 मई 2022 से ही प्रशांत किशोर जन सुराज की चुनावी भूमिका रच रहे हैं। उन्होंने बिहार में 3500 किलोमीटर की पदयात्रा करने की इच्छा जताई थी। उनकी यात्रा के 665 दिन हो गए हैं, 2697 गांवों की यात्रा वह चुके हैं, 235 ब्लॉक और 1391 पंचायतों का वह दौरा चुके हैं। उन्हें भी तक कुछ बड़ा हासिल नहीं हुआ है। प्रशांत किशोर की पार्टी अब तक 3 चुनावों में दावेदारी ठोक चुकी है। बिहार की 4 विधानसभा सीटों पर 13 नवंबर को उपचुनाव हुए थे। प्रशांत किशोर ने 4 सीटों पर दावेदारी ठोकी थी। नतीजा शून्य रहा। उन्होंने दावा किया था कि हर सीट पर पार्टी जीत जाएगी।
किस सीट पर कितने वोट पड़े?
इमामगंज में जनसुराज पार्टी तीसरे नंबर पर रही। जन सुराज ने जितेंद्र पासवान को टिकट दिया था। उन्हें कुल 37103 वोट पड़े थे। 16332 वोटों से हार मिली थी। दूसरे नंबर राष्ट्रीय जनता दल के रौशन कुमार थे, जिन्हें 47490 वोट पड़े थे, वहीं हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) की दीपा कुमारी ने जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल 53435 वोट पड़े थे। बेलागंज विधानसभा सीट पर भी जनसुराज पार्टी के मोहम्मद अमजद तीसरे नंबर पर रहे थे। उन्हें कुल 17285 वोट पड़े थे। दूसरे नंबर पर राष्ट्रीय जनता दल के विश्वनात कुमार सिंह थे, जिन्हें 51943 वोट पड़े थे, वहीं जनता दल यूनाइटेड की मनोरमा देवी को प्रचंड जीत मिली थी। उन्हें कुल 73334 वोट पड़े थे।
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तरारी विधानसभा सीट पर जन सुराज पार्टी 5वें पायदान पर थी। CPI (ML) (L) से राजू यादव को जीत मिली थी। उन्हें कुल 68143 वोट पड़े थे, वहीं जनसुराज पार्टी की किरण सिंह को महज 5622 वोट पड़े थे। रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी के अशोक कुमार सिंह को जीत मिली थी। उन्हें कुल 62257 वोट पड़े थे। जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह चौथे नंबर पर थे। उन्हें महज 6513 वोट मिले थे। प्रशांत किशोर को एक और झटका तिरहुत विधानपरिषद चुनाव में भी लगा। पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में भी उन्होंने अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन करारी हार हुई।
AIMIM को बिहार ने अपनाया या ठुकराया?
असदुद्दीन ओवैसी की अध्यक्षता वाली ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला साल 2015 के चुनाव में किया था। 6 सीटों पर AIMIM ने दम ठोका लेकिन जीत एक सीट पर नहीं मिली। 5 सीटों पर जमानत जब्त हुई, बस एक सीट पर ही जमानत बच सकी। इस साल AIMIM को 0.2 प्रतिशत वोट मिले। किशनगंज विधानसभा सीट से तसीरुद्दीन ही अपनी जमानत बचा सके थे। साल 2019 में बिहार को पहली सफलता मिली। किशनगंज विधानसभा पर उपचुनाव हुए तो कमरुल होदा ने जीत हासिल की। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन 5 सीटें हासिल कीं। इस साल AIMIM को कुल 1.3 प्रतिशत वोट हासिल हुए।
विकास शील इंसान पार्टी का क्या हाल रहा?
मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) भी साल 2018 में बनी थी। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में वीआईपी ने एनडीए के साथ गठबंधन में 11 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटें जीतीं, जिसमें बोचहां, ब्रह्मपुर, गौरा बौराम और अलीनगर शामिल हैं। पार्टी को लगभग 6-8 प्रतिशत वोट मिले। पार्टी के कोर वोटर मल्लाह और निषाद समुदाय के लोग रहे। मुकेश सहनी की पार्टी उत्तर बिहार में प्रभावशाली रही है। लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन शून्य रहा है। बड़ी सफलता का इंतजार है।
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा का क्या हाल रहा?
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर) (HAM-S) की स्थापना 8 मई 2015 को जीतन राम मांझी ने की थी। वह जेडीयू से नाराजगी के बाद अलग हो गए थे। साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने एनडीए के साथ गठबंधन में 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। पार्टी को लगभग 4% वोट मिले थे। यह पार्टी मुख्य रूप से दलित और महादलित समुदायों की राजनीति करती है। मांझी की पार्टी का बिहार के गया और मगध क्षेत्र में प्रभुत्व रहा है।
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