भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि राम मंदिर निर्माण के लिए रामलला को सौंप दी। मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। इसमें अयोध्या के धन्नीपुर गांव में मिली जमीन के लेआउट प्लान को खारिज कर दिया गया। आरटीआई के माध्यम से मिले जवाब में अयोध्या विकास प्राधिकरण (ADA) ने इसकी जानकारी दी। ADA ने बताया कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि कई सरकारी विभागों ने जरूरी अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी नहीं किए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद और अन्य सुविधाओं के निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित करने का आदेश दिया था। इसके बाद, 3 अगस्त 2020 को तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट अनुज कुमार झा ने अयोध्या शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर सोहावल तहसील के धन्नीपुर गांव की भूमि को ट्रस्ट को ट्रांसफर कर दिया था।
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पत्रकार ओम प्रकाश सिंह की दायर आरटीआई के जवाब में एडीए ने यह भी पुष्टि की है कि मस्जिद ट्रस्ट ने परियोजना के लिए आवेदन और जांच शुल्क के रूप में करीब 4 लाख रुपये जमा कर दिए गए हैं।
लेआउट प्लान खारिज होने पर ट्रस्ट की आपत्ति
लेआउट प्लान खारिज होने पर मस्जिद ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद के लिए जमीन का आवंटन किया था और उत्तर प्रदेश सरकार ने जमीन का टुकड़ा आवंटित किया। मैं यह समझ नहीं पा रहा हूं कि सरकारी विभागों ने NOC क्यों नहीं दिया। एडीए ने मस्जिद की योजना को क्यों खारिज कर दिया।' अतहर हुसैन ने बताया कि दमकल विभाग ने जगह को लेकर चिंता जताई थी। उनका कहना था कि मस्जिद तक जाने वाली सड़क कम से कम 12 मीटर चौड़ी होनी चाहिए जबकि रोड केवल 6 मीटर चौड़ी और मस्जिद का मेन गेट केवल 4 मीटर चौड़ा है।
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NOC के बारे में कोई सूचना नहीं
ट्रस्ट सचिव ने कहा कि उन्हें किसी भी अन्य विभाग के NOC के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। उन्होंने कहा, 'दमकल विभाग की आपत्ति के अलावा, मुझे किसी अन्य विभाग की आपत्ति के बारे में कोई जानकारी नहीं है।' ट्रस्ट सचिव ने कहा कि अब जब आरटीआई के जवाब से स्थिति स्पष्ट हो गई है तो इसके लिए हम आगे की कार्रवाई पर निर्णय लेने पर जरूर विचार करेंगे।