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कछुए को धीमा मत समझना! 51 दिन में तय कर लिया 1000 किलोमीटर का सफर

एक कछुआ 1 हजार किलोमीटर सफर करके ओडिशा से आंध्र प्रदेश के तट पर पहुंच गया है। इस बीच वह श्रीलंका, पुडुचेरी और तमिलनाडु के जलक्षेत्र से होकर गुजरा। कछुए की टैगिंग कर उसकी गतिविधियों की जानकारी जुटाई जा रही है।

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कछुआ, Photo credit: Ai

ओडिशा से एक ऐसी खबर आई है जिसने सबका ध्यान अपनी और खींच लिया है। ओडिशा के समुद्र तट से यात्रा शुरू करने वाले एक कछुए ने हजार किलोमीटर का सफर सिर्फ 51 दिनों में तय कर लिया है। यह कछुआ ओडिशा के तट से निकलकर आंध्र प्रदेश तट पर पहुंच गया है। यहां पहुंचने से पहले यह कछुआ श्रीलंका, पुडुचेरी और तमिलनाडु के जलक्षेत्र से होकर गुजरा। इसकी जानकारी एक अधिकारी ने शुक्रवार को दी और उन्होंने यह भी बताया कि यह कछुआ कब, कहां गया था। 


एक अधिकारी ने शुक्रवार को जानकारी दी कि एक कछुआ 1 हजार किलोमीटर सफर करके ओडिशा से आंध्र प्रदेश के तट पर पहुंच गया है। अधिकारी ने कहा, 'ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के गहिरमाथा समुद्र तट पर एक उपग्रह से जुड़े 'ट्रैकिंग' उपकरण के साथ 'टैग' किया गया एक ओलिव रिडले कछुआ 51 दिन में समुद्र में लगभग 1 हजार किलोमीटर की यात्रा करके आंध्र प्रदेश तट पर पहुंच गया है।'

 

यह कछुआ आंध्र प्रदेश के तट पर पहुंचने से पहले श्रीलंका, पुडुचेरी और तमिलनाडु के जलक्षेत्र से होकर गुजरा। अधिकारी ने बताया, 'कछुआ श्रीलंका, तमिलनाडु और पुडुचेरी के समुद्री क्षेत्र से होते हुए 51 दिन में आंध्र प्रदेश तट पर पहुंच गया। इसने करीब 1,000 किलोमीटर की दूरी तय की।'

 

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4 साल पहले टैग किया गया था


इस कछुए को 4 साल पहले ओडिशा में ट्रैकिंग उपकरण से टैग किया गया था। इस बारे में बात करते हुए मुख्य वन संरक्षक (PCCF) प्रेम शंकर झा ने बताया कि भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के नवीनतम ट्रैकिंग उपग्रह ने आंध्र प्रदेश में समुद्री जल में घूम रहे टैग किए गए कछुओं में से एक का पता लगाया है और पाया है कि वह 51 दिनों में लगभग 1,000 किलोमीटर तक का सफर कर चुका है। इसी तरह चार साल पहले ओडिशा में ट्रैकिंग उपकरण से टैग किया गया एक कछुआ 3,500 किलोमीटर की दूरी तय करके हाल ही में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के एक समुद्र तट पर अंडे देने के लिए आया था। कछुए ओडिशा के गंजम जिले में रुशिकुल्या नदी के मुहाने और पुरी में देवी नदी के मुहाने पर भी सामूहिक रूप से घोंसले बनाने के लिए आते हैं।

 

इस कछुए के सफर का पता एक ट्रैकिंग उपकरण से चला जिसे 4 साल पहले टैग किया गया था। अधिकारियों के अनुसार, हर साल लगभग 3 हजार कछुओं को ट्रैकिंग उपकरण से टैग किया जाता है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि कम से कम एक लाख कछुओं को टैग किया जाना आवश्यक है, ताकि उनके प्रजनन जीव विज्ञान, इनकी गतिविधि और विकास दर, प्रवास के रास्ते और भोजन के क्षेत्रों के बारे में बेहतर जानकारी प्राप्त की जा सके। 

 

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ओडिशा सरकार के वन विभाग ने 1999 में कछुओं की टैगिंग करना शुरू किया था और उस समय ओडिशा तट से गए कम से कम 2 कछुए  श्रीलंका तट पर देखे गए थे। बाद में कुछ कारणों से इसे रोक दिया गया था। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI)ने 2021 में कछुओं को टैग कर उनके बारे में जानकारी जुटाने की यह काम दोबारा शुरू किया। अधिकारियों के अनुसार, 2021 से 2024 के बीच गहिरमाथा और रुशिकुल्या नदी के मुहाने पर स्थित मैदानों में लगभग 12,000 कछुओं को टैग किया जा चुका है। 

 

क्यों तय की इतनी दूरी?

 

समुद्र में रहने वाले कछुए आमतौर पर भोजन की तलाश और अंडे देने के स्थानों के बीच घूमते रहते हैं। अंडे देने के लिए कछुए किसी सुरक्षित स्थान की तलाश करते हैं। आमतौर पर कछुए अंडे देने के लिए सामुहिक रूप से इकट्ठे होते हैं। नर और मादा कछुए प्रजनन क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं और बाद में आमतौर पर उन समुद्र तटों पर लौट आते हैं जहां उनका जन्म हुआ था। भोजन और प्रजनन के लिए कछुए सफर करते रहते हैं। 

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