पालघर जिले के जोगलवाडी गांव में रहने वाले सखाराम कवर की आंखों में दर्द और लाचारी साफ झलकती है। 28 साल के इस आदिवासी मजदूर को अपनी मृत नवजात बेटी का शव 90 किलोमीटर तक बस में एक थैले में लेकर जाना पड़ा। नासिक सिविल अस्पताल ने उन्हें एंबुलेंस देने से मना कर दिया था।
सखाराम और उनकी 26 साल की पत्नी अविता कटकरी आदिवासी समुदाय से हैं। वे हाल तक ठाणे जिले के बदलापुर में एक ईंट भट्टे पर काम करते थे। तीसरे बच्चे की डिलीवरी के लिए वे तीन हफ्ते पहले अपने गांव लौटे थे। लेकिन 11 जून को अविता को प्रसव पीड़ा शुरू हुई, और उनका दुखद सफर शुरू हो गया।
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एंबुलेंस नहीं आई
सखाराम ने बताया, 'हमने सुबह से एंबुलेंस के लिए फोन किया, लेकिन कोई नहीं आया।' गांव की आशा कार्यकर्ता ने भी शुरुआत में कोई जवाब नहीं दिया। बाद में एक निजी गाड़ी से अविता को खोडाला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया।
अविता ने कहा, 'रास्ते में बच्चे की हलचल महसूस हो रही थी।' लेकिन स्वास्थ्य केंद्र पहुंचने के बाद उन्हें एक घंटे से ज्यादा इंतजार करना पड़ा। फिर उन्हें मोखाडा ग्रामीण अस्पताल भेजा गया। वहां डॉक्टरों ने उन्हें अकेले एक कमरे में रखा। सखाराम के विरोध करने पर पुलिस बुलाई गई, जिसने उनकी पिटाई की।
मोखाडा अस्पताल में बच्चे की धड़कन नहीं मिली, तो उन्हें नासिक सिविल अस्पताल भेजा गया। लेकिन वहां भी एंबुलेंस नहीं थी। 25 किलोमीटर दूर आसे गांव से एंबुलेंस मंगवाई गई। 12 जून की सुबह 1:30 बजे अविता ने एक मृत बच्ची को जन्म दिया।
थैले में लेकर गए लाश
अस्पताल ने बच्ची का शव सखाराम को सौंप दिया, लेकिन उसे गांव ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं दी। सखाराम ने बताया, 'मैं बस स्टैंड गया, 20 रुपये का थैला खरीदा, बच्ची को कपड़े में लपेटा और 90 किलोमीटर तक बस में ले गया। किसी ने नहीं पूछा कि मैं क्या ले जा रहा हूं।' उसी दिन बच्ची को गांव में दफनाया गया।
13 जून को सखाराम अपनी पत्नी को लाने नासिक लौटे। अस्पताल ने फिर एंबुलेंस देने से मना कर दिया। कमजोर अविता को भी बस से घर लौटना पड़ा। सखाराम ने कहा, 'उन्हें कोई दवा भी नहीं दी गई।'
डॉक्टर बोले- एंबुलेंस खराब थी
मोखाडा अस्पताल के डॉ. भाऊसाहेब चट्टार ने घटना की पुष्टि की। उन्होंने कहा, 'बच्चा गर्भ में ही मर चुका था। हमारी एंबुलेंस खराब थी, इसलिए आसे से मंगवाई गई। सखाराम बच्ची का शव बस से ले गया।' हालांकि, उन्होंने दावा किया कि वापसी के लिए एंबुलेंस ऑफर की गई थी, लेकिन सखाराम ने मना कर दिया। सखाराम ने इस दावे को खारिज किया। सखाराम का कहना है, 'स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही की वजह से मैंने अपनी बच्ची खो दी।'