राजस्थान हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने अजमेर डिस्कॉम को बहू की सैलरी से ससुर को 20 हजार रुपए देने के आदेश दिए हैं। राजस्थान हाई कोर्ट की जोधपुर बेंच ने यह फैसला सुनाया है। जस्टिस फरजंद अली ने अनुकंपा नियुक्ति के एक केस में सुनवाई की। यह मामला अलवर के खेरली का है। 
 
जस्टिस फरजंद अली की एकल पीठ ने अजमेर डिस्कॉम को आदेश दिए कि बहू शशि कुमारी की सैलरी से हर महीने 20 हजार रुपए काटकर ससुर भगवान सिंह सैनी के बैंक खाते में जमा किए जाएं। आदेश के मुताबिक यह कटौती 1 नवंबर 2025 से प्रभावी होगी और भगवान सिंह के जीवनकाल तक जारी रहेगी।
हाई कोर्ट ने सुनवाई में क्या कहा?
इससे पहले मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने 10 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, 'जब ऐसे परिवार के एक सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति का लाभ दिया जाता है, तो यह व्यक्तिगत क्षमता में नहीं बल्कि पूरे परिवार के प्रतिनिधि के रूप में दिया जाता है। इसलिए इसके साथ अन्य जीवित आश्रितों के हितों की रक्षा करने और उनके भरण-पोषण को सुनिश्चित करने की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी आती है।'
 
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पूरा मामला क्या है?
अलवर जिले के कठूमर के खेरली के रहने वाले भगवान सिंह सैनी ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। उनका बेटा राजेश कुमार अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में तकनीकी सहायक के पद पर कार्यरत था। 15 सितंबर 2015 को सेवा के दौरान भगवान सिंह के बेटे का आकस्मिक निधन हो गया।
 
राजेश की मौत के बाद विभाग ने 21 सितंबर और 26 सितंबर 2015 को पत्र जारी कर भगवान सिंह को अनुकंपा नियुक्ति के तहत आवेदन करने का निर्देश दिया। राजेश की पत्नी शशि कुमारी ने भी अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया।
LDC के पद पर मिली नियुक्ति
बताया गया है कि राजेश कुमार की मौत के बाद विभाग ने 21 सितंबर और 26 सितंबर 2015 को पत्र जारी करके भगवान सिंह को अनुकंपा नियुक्ति के तहत आवेदन करने को कहा था। इसी दौरान राजेश की पत्नी शशि कुमारी ने भी अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कर दिया। ऐसे में भगवान सिंह ने उदारता या किन्हीं अन्य वजहों से स्वेच्छा से सिफारिश करते हुए यह अनुकंपा नियुक्ति अपकी जगह बहू को दे दी। इस सिफारिश के बाद 11 मार्च 2016 को अजमेर डिस्कॉम ने शशि कुमारी को अनुकंपा के आधार पर LDC के पद पर नियुक्त किया।
 
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वचन देने के बाद मुकरी बहू
अपनी नियुक्ति के समय शशि ने एक शपथ पत्र दिया था, जिसमें उसने कहा था कि वह अपने पति के माता-पिता के साथ रहेगी और उनका भरण-पोषण करेगी। दूसरा, वह उनके कल्याण की पूर्ण जिम्मेदारी लेगी। तीसरा, वह दूसरी शादी नहीं करेगी।
 
ससुर भगवान सिंह का आरोप है कि वह शपथ पत्र झूठा था, क्योंकि शशि कुमारी उस समय अपने माता-पिता के साथ अलग रह रही थी। खेरली कठूमर नगर पालिका के अध्यक्ष की जांच रिपोर्ट से भी यह पुष्टि हुई कि पति की मौत के मात्र 18 दिनों के भीतर ही शशि कुमारी ने ससुराल छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहने लगी।
 
जस्टिस फरजंद अली ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि शशि कुमारी को यह नियुक्ति उनकी व्यक्तिगत योग्यता, क्षमता या पात्रता के आधार पर नहीं मिली। कोई विज्ञापन नहीं निकाला गया, कोई प्रतिस्पर्धी चयन नहीं हुआ और न ही उन्होंने कोई लिखित परीक्षा या साक्षात्कार दिया। यह राज्य की ओर से एक दयापूर्ण कार्य था जो अपने दिवंगत कर्मचारियों के आश्रितों की रक्षा और सहायता के लिए किया गया।