उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स ने 120 करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश किया है। टोल प्लाजा से टैक्स वसूलने के आरोप में तीन कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है। यह मामला मिर्जापुर के अतरैला टोल प्लाजा का है जहां एक सॉफ्टवेयर की मदद से यह घोटाला किया जा रहा था जिससे NHAI को करोड़ों का नुकसान हुआ है। दरअसल, जालसाज टोल बूथ पर NHAI के सॉफ्टवेयर के साथ-साथ एक अन्य सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर घपला कर रहे थे।
टोल टैक्स घोटाले में कितनी होती थी कमाई?
टोल टैक्स घोटाले का मुख्य आरोपी आलोक सिंह है। जौनपुर के निवासी आलोक ने ही एक सॉफ्टवेयर तैयार किया था जिसके माध्यम से सभी घपला किया जाता था। उसका सॉफ्टवेयर उत्तर प्रदेश सहित देश के 42 टोल प्लाजा में चल रहा है।
आलोक ने पुलिस को बताया कि उसने एएनवाई नाम का एक सॉफ्टवेयर तैयार किया जिसमें टोल संंबंधी सभी जानकारी थी। इसे फोन और लैपटॉप से चलाया जाता था। आरोपी ने बताया कि एक टोल से एक दिन में सॉफ्टवेयर के डेटाबेस के अनुसार 40 से 50 हजार रुपये की अवैध कमाई होती थी। दो साल में ऑफलाइन और ऑनलाइन 120 करोड़ की ठगी की गई थी।
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ऐसे लगाते थे चूना
आलोक ने बताया कि देश के सभी टोल प्लाजा पर फास्ट टैग अनिवार्य है। ऐसे में जो वाहन बिना फास्ट टैग के होते हैं उसमें पेनल्टी वसूला जाता है। इसके लिए टोल के किसी लेन पर इस सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल कर दिया जाता था और इस दौरान जो भी गाड़ी बिना फास्टटैग की होती थी उसको पास कराकर फर्जी रसीद काटकर दोगुना पैसा वसूला जाता था। यह पैसा कंपनी, ठेकेदार और टोल प्लाजा के कर्मचारियों में बंट जाता था। एसटीएफ ने छापेमारी में पांच मोबाइल , दो लैपटॉप, एक प्रिंटर और भारी मात्रा में कैश बरामद किया है।
NHAI ने 3 दिन में रिकॉर्ड मांगा
अतरैला टोल प्लाजा पर एसटीएफ की कार्रवाई के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) यह पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि उसके कितने टोल प्लाजा पर ऐसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल हाे रहा है। NHAI के रीजनल ऑफिसर संजीव कुमार शर्मा ने जांच के आदेश दिए हैं। 3 दिन के अंदर रिपोर्ट मांगी है।