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दिव्यांगता का फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर MBBS में लिया एडमिशन, देशभर में होगी जांच

फर्जी दिव्यांगता सर्टिफिकेट के सहारे MBBS में एडमिशन कराने वाले एक शख्स को बिहार से पकड़ा गया है। अब पूरे देश में इससे जुड़ी जांच कराई जाएगी।

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प्रतीकात्मक तस्वीर, Photo Credit: Sora AI

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संजय सिंह, पटना: बिहार के पूर्णिया मेडिकल कॉलेज में फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर नामांकन कराने के दौरान बिहार के ही सीतामढ़ी जिले का निवासी कार्तिक यादव पकड़ा गया। उसने अपना आधार कार्ड अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) के पते पर बनवा रखा था। उसके दिव्यांगता का प्रमाण पत्र गोवा मेडिकल कॉलेज की ओर से जारी किया गया है। इस कांड को उजागर करने वाले शख्स ने कार्तिक के दिव्यांगता प्रमाण पत्र की जांच आईजीएमएस पटना से कराए जाने का अनुरोध पत्र न्यायालय में दिया है। 

 

पिछले तीन वर्षों के दौरान पूर्णिया मेडिकल कॉलेज में 18 छात्रों ने दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर अपना नामांकन MBBS में करवाया है। इनमें से 16 ने कान से दिव्यांग होने का प्रमाण पत्र दिया है। इस गिरोह का मुख्य सरगना गौरव नोएडा का रहनेवाला है। डीआईजी प्रमोद मंडल का कहना है कि इस फर्जीवाड़े का तार देश के कई मेडिकल कॉलेज से जुड़ा है। ऐसी स्थिति में इसकी जांच राज्य स्तरीय निगरानी समिति से कराए जाने की वे सिफारिश करेंगे। 

 

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नोएडा का गौरव है मास्टर माइंड

 

सीतामढ़ी के कार्तिक ने पकड़े जाने के बाद पुलिस को बताया कि फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाने का काम नोएडा में बैठा गौरव करता है। गौरव ने ही उनका प्रमाण पत्र गोवा मेडिकल कॉलेज से बनवाया था। आधार कार्ड में भी अलीगढ़ का पता दर्ज कराने में उसने मदद की थी। गौरव ने पूर्णिया मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को नामांकन लेने के लिए दबाव भी बनाया था लेकिन प्राचार्य उसकी बातों को नहीं माने। संदेह होने पर उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। पुलिस ने कार्तिक से पूछताछ के दौरान कई महत्वपूर्ण तथ्य भी उगलवाए हैं। मास्टरमाइंड गौरव के पकड़े जाने के बाद इस रैकेट से जुड़े अन्य लोगों का चेहरा भी सामने आएगा। इसके लिए डीएसपी के नेतृत्व में पुलिस पदाधिकारियों की एक टीम गठित की गई है। 

देशभर के मेडिकल कॉलेजों में होगी जांच

 

फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर मेडिकल कॉलेज में MBBS में नामांकन का खेल वर्षों से चल रहा है। अकेले पूर्णिया मेडिकल कॉलेज में तीन वर्षों के दौरान 18 छात्रों ने दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर एमबीबीएस में अपना नामांकन करवाया है। इनमें से 16 ने कान से दिव्यांग होने का प्रमाण दिया है। ENT विशेषज्ञ डॉक्टर आलोक कुमार का कहना है कि कान की दिव्यांगता को पकड़ पाना आसान नहीं है इसलिए ज्यादातर लोग कान के दिव्यांग होने का प्रमाण पत्र बनवाते हैं। इससे नामांकन कराने में सुविधा होती है। 

 

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पुलिस ने अब भागलपुर, मधेपुरा, पटना, बेतिया, गया, दरभंगा, मुजफ्फरपुर और नालंदा मेडिकल कॉलेज में भी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर एमबीबीएस में लिए गए नामांकन की जांच शुरू कर दी है। पुलिस को भरोसा है कि जांच के बाद एक बड़े रैकेट का खुलासा हो पाएगा। फिलहाल, इस कांड के अनुसंधानकर्ता राजनंदनी ने कोर्ट में अनुरोध पत्र दायर कर गिरफ्तार कार्तिक की फिर से मेडिकल जांच कराने का अनुरोध किया है। 

क्या बोले अधिकारी?

 

पूर्णिया के DIG प्रमोद मंडल का कहना है, 'यह रैकेट देशव्यापी है। फिलहाल पूर्णिया पुलिस इस मामले की जांच कर रही है। इस जांच का दायरा दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। इस रैकेट का मास्टर माइंड नोएडा में रहता है। ऐसी स्थिति में राज्य के निगरानी विभाग को अपने स्तर से इस मामले की जांच करने के लिए लिखा जाएगा। पुलिस हर हाल में इस मामले की तह तक जाएगी।'

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