किशनगंज में सैनिक स्टेशन बनाने का विरोध क्यों, पर्दे के पीछे कौन है?
बिहार के किशनगंज में लगभग ढाई सौ एकड़ जमीन पर सैनिक स्टेशन बनाने का एलान होने के बाद से ही इसका विरोध होने लगा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, Photo Credit: Sora AI
संजय सिंह, पटना: बिहार का किशनगंज जिला सामरिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से काफी संवेदनशील है। यह बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से नजदीक है। यह क्षेत्र ड्रग्स, हथियार, पशु, सोना और कोयला तस्करी के लिए पहले से ही कुख्यात रहा है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के भारत में प्रवेश करने के लिए यह सबसे सुरक्षित और महत्वपूर्ण रास्ता माना जाता है। बीते चार दशक में इस इलाके की डेमोग्राफी भी बदली है। इस जिले में मुसलमानों की आबादी 70 प्रतिशत है। सुरक्षा के दृष्टिकोण से बीएसएफ ने एक दशक पूर्व अपना ठिकाना बनाया है। अब बहादुरगंज और कोटाधामन के शतबिट्टा और नटूआपाड़ा मौजा में सैन्य स्टेशन खोलने के लिए ढाई सौ एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना है।
जमीन अधिग्रहण होने के पूर्व ग्रामीणों को आगे बढ़ाकर इसका विरोध शुरू हो गया है। ग्रामीणों के इस विरोध को कांग्रेस और AIMIM के विधायक और नेता हवा दे रहे हैं। हालांकि, नेताओं का कहना है कि वे ग्रामीणों की मांग को सरकार तक पहुंचा रहे हैं।
क्यों हो रहा है विरोध?
किशनगंज से पड़ोसी देश नेपाल की सीमा सटी हुई है। बांग्लादेश की सीमा यहां से लगभग 20-22 किलोमीटर दूर है। चिकननेक भी यहां से नजदीक है। यही कारण है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को इस रास्ते भारत की सीमा में प्रवेश करने में आसानी होती है। कई बार राष्ट्र विरोधी तत्व भी यहां पकड़े गए हैं। घुसपैठिए यहां की आबादी में आसानी से घुल मिल जाते हैं। चार दशक के दौरान अल्पसंख्यकों की आबादी यहां 70 प्रतिशत तक पहुंच गई है। हाल ही में विधानसभा चुनाव के पहले एसआईआर में यहां के 1.45 लाख मतदाताओं का नाम वोटर लिस्ट से हटाया गया।
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बांग्लादेश की सीमा से नजदीक रहने के कारण यहां बड़े पैमाने पर पशुओं की तस्करी भी होती है। असम से आया कोयला भी इस इलाके में आसानी से खपाया जाता है। अवैध कारोबारियों के माल को इधर-उधर करने के लिए यहां कई पार्टी गिरोह के सक्रिय हैं। पार्टी गिरोह के सदस्यों को सफेदपोश नेताओं का संरक्षण भी प्राप्त है। कुछ पहले यहां एसटीएफ की टीम ने अत्याधुनिक हथियार की बड़ी खेप पकड़ी थी। इसका मुख्य सरगना बिहार के आरा का रहनेवाला था। ड्रग्स तस्करी में लगे लोग अक्सर पकड़े जाते रहते हैं। कुछ दिन पहले करोड़ों रुपये के सोने के साथ दो तस्करों को पकड़ा गया था। इनमें से एक पश्चिम बंगाल का रहनेवाला था तो दूसरा महाराष्ट्र का। अवैध कारोबार में लगे लोगों को भी इस बात का भय सता रहा है कि यदि सैन्य स्टेशन बन गया तो उनके अवैध कारोबार पर अंकुश लग जाएगा।
नीतीश से मिला था विधायकों का दल
कोचाधामन और बहादुरगंज में सैन्य स्टेशन का निर्माण ना हो इसको लेकर AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान के नेतृत्व में पांच सदस्यीय विधायकों का दल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिला था। इस दल में सर्वर आलम (कोचाधामन), मुर्शीद आलम (जोकीहाट), गुलाम सरवर (वैशा) और तौसीफ आलम (बहादुरगंज) के विधायक शामिल थे। विधायकों ने सीएम नीतीश कुमार से अनुरोध किया है कि इस इलाके के किसानों की जोत छोटी है। अगर जमीन का अधिग्रहण कर लिया जाएगा तो किसानों के समक्ष भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाएगी। इसलिए सैन्य स्टेशन का निर्माण किसी दूसरे क्षेत्र में करवाया जाय। मालूम हो कि बीएसएफ जब यहां अपना ठिकाना बना रही थी तब भी कुछ नेताओं ने विरोध किया था पर प्रशासनिक सख्ती के कारण नेताओं का विरोध ठंडा पर गया।
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गृह मंत्री की कड़ी नजर
गृह मंत्री अमित शाह की इस इलाके पर कड़ी नजर है। वह 24 सितंबर 2022 को दो दिवसीय दौरे पर यहां आए थे। उन्होंने बीएसएफ के अधिकारियों के साथ सीमा सुरक्षा को लेकर बैठक भी की थी। गृह मंत्री ने उस समय संकेत दिया था कि बांग्लादेश और नेपाल की सीमा नजदीक होने के कारण यह इलाका सुरक्षा के दृष्टिकोण से काफी संवेदनशील है। यहां सैन्य स्टेशन बनना जरूरी है। उन्होंने हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान अररिया की एक बैठक में सीमांचल की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी।
रक्षा मंत्री से मिले सांसद
किशनगंज के सांसद जावेद आजाद और किशनगंज के विधायक कमरुल हौदा बहादुगंज और कोचाधामन के किसानों से मिले। उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया कि उनकी समस्याओं से वे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को अवगत करा चुके हैं। रक्षा मंत्री ने मामले को देखने का आश्वासन दिया है। किसानों की समस्या को लेकर वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी पत्र लिखे हैं। इन नेताओं ने उम्मीद जताई है कि जल्द ही इस समस्या का समाधान निकाल दिया जाएगा। इधर किशनगंज के डीएम का कहना है कि किसानों ने उन्हें भी आवेदन दिया है, वे इस मामले को देख रहे हैं।
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