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मरीजों के इलाज में AI का इस्तेमाल सही या गलत? एक्सपर्ट ने किया अलर्ट

AI का इस्तेमाल अब हेल्थ सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि, कई एक्स्पर्ट्स ने इसके के लिए अलर्ट भी दिया है।

Image of AI in health sector

सांकेतिक चित्र(Photo Credit: AI Image)

दुनियाभर की हेल्थ सेक्टर में अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। यह तकनीक न सिर्फ इलाज को तेज और आसान बना रही है, बल्कि कई मामलों में डॉक्टरों के बराबर सटीक नतीजे भी दे रही है। फिर भी, इसके साथ कुछ गंभीर सवाल भी जुड़े हुए हैं- जैसे डेटा की गोपनीयता, तकनीकी पक्षपात और डॉक्टरों द्वारा AI पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता।

 

IIT मद्रास और ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस और टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट, फरीदाबाद के शोधकर्ताओं ने मिलकर एक AI मॉडल ‘गार्भिनी-GA2’ विकसित किया है। इसका उद्देश्य अल्ट्रासाउंड इमेज से भ्रूण की उम्र का सटीक अनुमान लगाना है।

 

इस मॉडल को गुरुग्राम के सिविल अस्पताल में आई 3,500 गर्भवती महिलाओं के स्कैन से ट्रेन किया गया। जब इसे बिना लेबल वाले नए स्कैन पर जांचा गया, तो यह सिर्फ आधा दिन की गलती से भ्रूण की उम्र बता सका – जो कि आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले हैडलॉक फार्मूला से कहीं ज्यादा सटीक है। हैडलॉक फार्मूला विदेशी (मुख्य रूप से श्वेत) आबादी पर आधारित है, जिससे भारतीय महिलाओं में 7 दिन तक की गलती हो सकती है।

 

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गर्भवती महिलाओं के लिए AI आधारित सलाह

भारत में लगभग आधी गर्भधारण की स्थितियां उच्च जोखिम वाली (High-Risk Pregnancy) होती हैं। ऐसे मामलों में मां या शिशु के बीमार या मृत्यु की आशंका ज्यादा होती है। खासकर ग्रामीण, अशिक्षित और हाशिए पर रहने वाली महिलाओं के लिए यह खतरा ज्यादा है।

 

मुंबई की एनजीओ ARMMAN ने ऐसे मामलों की निगरानी के लिए महिला स्वास्थ्यकर्मियों (ANMs) को ट्रेन करने के लिए UNICEF और कुछ राज्य सरकारों के साथ मिलकर 2021 से एक डिजिटल प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया। लेकिन प्रशिक्षकों के पास हर सवाल का उत्तर देने का समय नहीं होता। इसलिए ARMMAN ने एक AI चैटबॉट तैयार किया जो टेक्स्ट और वॉइस दोनों में सवालों के उत्तर दे सकता है। 100 ANMs पर परीक्षण के दौरान 94% ने इसे उपयोगी बताया। हालांकि, भारतीय भाषाओं और उच्चारणों में विविधता के कारण यह कभी-कभी 5% सवाल नहीं समझ पाता।

वर्चुअल ऑटोप्सी (Virtopsy)

उत्तर-पूर्व भारत के एक अस्पताल में डॉक्टर अमर ज्योति पतोवारी वर्चुअल ऑटोप्सी का प्रयोग करते हैं। इसमें शरीर को सीटी स्कैन और एमआरआई से स्कैन करके कंप्यूटर पर उसका 3D मॉडल बनाया जाता है। यह पारंपरिक ऑटोप्सी की तुलना में तेज तरीका है, जिससे मृतकों के परिवार की धार्मिक भावनाएं भी आहत नहीं होतीं।

 

हालांकि, डॉक्टर मानते हैं कि कुछ चोटें या शरीर की गंध, रंग जैसी जानकारी जो मौत के कारणों को उजागर करती हैं, वर्चुअल ऑटोप्सी में छूट सकती हैं। इसलिए इसके साथ मौखिक जानकारी और शरीर की सीधी जांच जरूरी है।

 

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डेटा सुरक्षा और AI पर ज्यादा निर्भरता: एक चेतावनी

AI के उपयोग से मरीज की जानकारी सुरक्षित रखना बहुत ज़रूरी है। कंपनियां जैसे MediBuddy निजी जानकारी छुपाने और सिर्फ ज़रूरत के मुताबिक डेटा तक सीमित पहुंच देने वाले तंत्र अपना रही हैं। वहीं, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि डॉक्टर कभी-कभी AI की सलाह पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर लेते हैं। एक शोध में देखा गया कि अगर डॉक्टरों को बताया जाए कि कोई AI मॉडल कोई निष्कर्ष दे रहा है, तो वे खुद कम सटीक हो जाते हैं, भले ही AI की जानकारी झूठी हो।

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