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इस छिपकली की लार से ट्यूमर का पता लगाना हुआ आसान

जर्नल ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध में इंसुलिनोमा ट्यूमर को पता लगाने के विषय में बड़ी बात कही गई है। आइए जानते हैं-

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गिला मॉन्स्टर (Pic Credit- Prof. Katie Hinde/ Twitter)

जिस तरह तकनीक वृद्धि हो रही है, उसी तरह चिकित्सा के क्षेत्र में गंभीर बिमारियों से लड़ने के लिए कई तरह के शोध किए जा रहे हैं। इसमें इंसुलिनोमा ट्यूमर भी एक गंभीर बीमारी है, जिसका इलाज अबतक मुश्किल लग रहा था। लेकिन जर्नल ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध ने नई उम्मीद पैदा की है। बता दें कि इस शोध में बताया गया है कि गिला मॉन्स्टर नामक एक छिपकली के लार में पाए जाने वाले एक विशेष अणु की मदद से पैंक्रियास में कुछ ट्यूमर का पता लगाना आसान हो सकता है। 

 

इंसुलिनोमा नामक ट्यूमर, जो कि कम-घातक होते हैं, इसके कारण कम ब्लड शुगर और अचानक बेहोशी जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। वर्तमान समय में इन्हें मौजूदा स्कैनिंग तकनीकों से ढूंढना मुश्किल होता है। लेकिन गिला मॉन्स्टर की लार में पाए जाने वाले प्रोटीन को एक रेडियोधर्मी ट्रेसर के रूप में उपयोग कर नई PET स्कैन तकनीक से 95% मामलों में इन ट्यूमरों का पता लगाया गया, जबकि मौजूदा PET स्कैन सिर्फ 65% मामलों में सफल होते हैं। यह शोध जर्नल ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन के अक्टूबर अंक में प्रकाशित हुआ है।

 

पैंक्रियास का मुख्य कार्य इंसुलिन बनाना होता है, जो शरीर में ब्लड शुगर स्तर को नियंत्रित करता है। यह काम बीटा कोशिकाएं करती हैं। लेकिन कभी-कभी ये कोशिकाएं गलत तरीके से काम करने लगती हैं और इंसुलिनोमा ट्यूमर का रूप ले लेती हैं। ये ट्यूमर दुर्लभ होते हैं, और प्रति वर्ष दुनिया भर में 1 से 4 लोगों में ही पाए जाते हैं, लेकिन जिन लोगों को ये होते हैं, उनके लिए ये बहुत हानिकारक हो सकते हैं।

 

कैंसर जीवविज्ञानी पीटर चॉयके कहते हैं कि "ये ट्यूमर अक्सर छोटे होते हैं, लेकिन बहुत अधिक इंसुलिन बनाते हैं, जिससे ब्लड शुगर कम हो जाता है और व्यक्ति बेहोश हो सकता है या दौरे पड़ सकते हैं,"। जब ट्यूमर का पता लगाया जाता है, तो इसे हटाने से मरीज पूरी तरह ठीक हो जाता है, लेकिन इन्हें ढूंढना कठिन होता है।

इस ट्यूमर को ढूंढना है कठिन

इन्हें ढूंढने के लिए CT और MRI स्कैन के साथ-साथ मौजूदा PET स्कैन का उपयोग किया जाता है, लेकिन ये छोटे इंसुलिनोमा ट्यूमर को पहचानने में सक्षम नहीं होते। PET स्कैन में डॉक्टर मरीजों को रेडियोधर्मी अणुओं का इंजेक्शन लगाते हैं, जो शरीर के विशिष्ट हिस्सों में इकट्ठे होते हैं और उनकी रेडियोधर्मिता का विश्लेषण कर डॉक्टर 3D छवि में कैंसर की कोशिकाओं का पता लगाते हैं।

 

गिला मॉन्स्टर, जो न्यू मैक्सिको के रेगिस्तान में पाया जाता है, की लार में पाए जाने वाला एक प्रोटीन, एक्सेंडिन-4, लैब में बनाया जाता है और मधुमेह के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह पैंक्रियास में GLP1R रिसेप्टर्स को सक्रिय करता है, जिससे इंसुलिन का उत्पादन बढ़ता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि इंसुलिनोमा में भी इन रिसेप्टर्स की अधिकता होती है, जिससे एक्सेंडिन-4 ट्यूमर का पता लगाने के लिए उपयुक्त बन गया।

 

पहले के अध्ययनों में यह दिखाया गया था कि एक्सेंडिन-4 को रेडियोधर्मी अणु के साथ जोड़कर PET स्कैन में इंसुलिनोमा का पता लगाया जा सकता है, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स होते थे। वर्तमान अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने इसे और स्थिर बनाने के लिए एक अतिरिक्त अणु जोड़ा, जिससे कम मात्रा में भी अच्छे परिणाम मिले।

इस नए ट्रेसर को 69 लोगों पर आजमाया गया, जिनके इंसुलिन के अत्यधिक उत्पादन के कारण ब्लड शुगर कम हो रहा था। इनमें से 53 मरीजों की सर्जरी कर ट्यूमर निकाला गया। नई PET स्कैन तकनीक ने 50 मामलों में सही ट्यूमर की पहचान की, जबकि मौजूदा PET स्कैन सिर्फ 35 मामलों में सफल रहा।

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