जंगल में आग लगना एक विनाशकारी घटना मानी जाती है, खासकर जब वह इंसानी बस्तियों के करीब पहुंच जाती है। इससे न सिर्फ इंसानों को बल्कि जंगल में रहने वाले हजारों जानवरों को परेशानियों को सामना करना पड़ता है। उत्तराखंड में गर्मियों के बढ़ते तापमान के साथ जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ रही हैं। अब तक 130 हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। इसी तरह 24 अप्रैल 2025 को अरुणाचल प्रदेश के वेस्ट कामेंग जिले के डिरांग कस्बे के पास स्थित नदिपार जंगल में भीषण आग लगी।
डिरांग कस्बे के जंगलों में लगी आग तेज हवाओं के वजह तेजी से फैली और ज़िमथुंग गांव को खतरे में डाल दिया। प्रशासन ने तत्परता से लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया और कई एजेंसियों के सहयोग से आग को उसी दिन शाम तक काबू में ले लिया गया। इस घटना में किसी की जान नहीं गई और न ही संपत्ति का नुकसान हुआ। अब सवाल यह उठता है कि जब जंगल जलते हैं तो वहां के पेड़-पौधे और जीव-जंतु क्या पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं? क्या फिर से जीवन संभव है? आइए जानते हैं-
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जंगल की आग: सिर्फ परेशानी नहीं
जंगल की आग इंसानों के लिए एक बड़ी मुसीबत होती है वनस्पति मामलों के जानकारों का कहना है कि प्रकृति के नजरिए से यह पूरी तरह से समस्याओं से भरा नहीं होता है। कई बार यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया होती है, जो जंगल की साफ-सफाई और नए सिरे से जीवन को शुरू करने में मदद करती है। कई पेड़-पौधे और जीव-जंतु ऐसी परिस्थितियों के लिए तैयार रहते हैं।
आग के बाद पेड़-पौधों का विकास
जब जंगल में आग लगती है तो पहले तो यह लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया। हालांकि आग लगने के बाद की मिट्टी बहुत उपजाऊ हो जाती है। जलते हुए पौधों की राख जमीन को प्राकृतिक रूप से खाद देती है। इससे नई घास, झाड़ियां और पौधे जल्दी उगते हैं।
कुछ पेड़ जैसे साल और चीड़ के बीज तभी अंकुरित होते हैं जब उनके ऊपर की परत आग से हट जाए। इसी वजह से कई पौधों का जीवन जंगल की आग पर निर्भर होता है। जंगल में पहले से गिरे सूखे पत्ते और लकड़ियां जलकर खत्म हो जाती हैं, जिससे सूरज की रोशनी सीधे जमीन तक पहुंचती है और नई वनस्पतियों के उगने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
जानवरों की भूमिका
जंगल में आग के बाद कई जीव-जंतु भी अहम भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, ब्लैक-बैक्ड वुडपेकर नामक एक विशेष प्रकार की चिड़िया जली हुई लकड़ियों में कीड़े खोजती है। यह पक्षी पेड़ों में खोखले स्थान बनाता है जहां वह अंडे देता है। इन खोखलों में बाद में दूसरे पक्षी, छोटे जानवर और कीट भी रहते हैं, जो जंगल के पुनर्जीवन में सहायक होते हैं।
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इन पक्षियों और छोटे जीवों के कारण बीज फैलते हैं, कीटों की संख्या संतुलित रहती है और पौधे सुरक्षित रूप से उग पाते हैं। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में पाइरोडायवर्सिटी कहा जाता है, जो बताती है कि आग के बाद पैदा होने वाली विविधता कैसे कई जीवों को जीवन देती है।
इंसानों की भूमिका
वनस्पति क्षेत्र से जुड़े जानकार समय-समय पर बताते हैं कि अब जब जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ रही हैं, तो इंसानों की भूमिका और भी जरूरी हो जाती है। हमें जंगलों की निगरानी करनी चाहिए, सूखे पत्तों और लकड़ियों को समय-समय पर साफ करना चाहिए और स्थानीय लोगों को आग से निपटने की जानकारी देनी चाहिए। साथ ही, हमें ऐसे पशु-पक्षियों की रक्षा करनी चाहिए जो जंगल के पुनरुत्थान में मदद करते हैं।