बिहार के गयाजी जिले की इमामगंज विधानसभा जीतने में कांग्रेस को 10 साल लग गए थे। कांग्रेस ने यहां अपना पहला चुनाव साल 1967 में जीता था। लंबे समय तक अवध नारायण चौधरी के नाम से चर्चित रही यह सीट देखते ही देखते जीतन राम मांझी के परिवार का गढ़ बन गई है। झारखंड की सीमा पर बसे इस विधानसभा क्षेत्र से खुद जीतन राम मांझी यहां से दो बार विधायक बन चुके हैं। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस विधानसभा सीट पर इस बार रोचक लड़ाई होने की उम्मीद है क्योंकि 2024 के उपचुनाव में यहां जनसुराज पार्टी ने अच्छे-खासे वोट हासिल किए थे।
गयाजी जिले का यह विधानसभा क्षेत्र औरंगाबाद जिले की सीमा पर बसा हुआ है। गयाजी जिले की ही कुटुंबा, औरंगाबादा, रफीगंज और शेरघाटी विधानसभा सीटें भी इससे सटी हुई हैं। लंबे समय तक नक्सल प्रभावित रहे इस क्षेत्र में पुलिस स्टेशन खोले जाने के बाद से अब यहां नक्सल प्रभाव कम हो गया है। इस विधानसभा को कोइरी का नैहर कहा जाता है क्योंकि यहां कोइरी जाति की आबादी अच्छी-खासी है। कोइरी के अलावा मांझी, यादव और मुसलमान भी यहां अच्छी-खासी संख्या में हैं। दलितों की अच्छी-खासी संख्या के चलते ही यह सीट साल 1967 में आरक्षित कर दी गई थी।
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इस क्षेत्र में बालू का उठाव बड़ी समस्या है। बालू उठाव यानी नदी में बालू की मात्रा ज्यादा होना। इससे नदियों का जल स्तर कम हो जाता है और सिंचाई में भी दिक्कत आने लगती है। यही वजह है कि कई इलाकों में मांग होती है कि जनप्रतिनिधि इस समस्या का समाधान करें। विधानसभा क्षेत्र आज भी काफी पिछड़ा हुआ है और कई इलाके ऐसे हैं जिनके लोगों को पंचायत मुख्यालय तक जाने के लिए भी 80 किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ता है। क्षेत्र में स्कूल और कॉलेजों की स्थिति बहुत खराब है और रोजगार के मामले में भी यह विधानसभा क्षेत्र पिछड़ा हुआ है।
मौजूदा समीकरण
गया लोकसभा क्षेत्र में आने वाली इमामगंज विधानसभा पिछले तीन चुनाव में जीतन राम मांझी का गढ़ बन गई है। उनकी बहू ही मौजूदा विधायक हैं तो स्वाभाविक है कि HAM ही इस सीट पर चुनाव लड़ेगी और दीपा मांझी या मांझी परिवार का कोई और शख्स इस सीट से चुनाव लड़ेगा। मांझी परिवार की सक्रियता के चलते इस सीट पर बीजेपी या जेडीयू के नेता बहुत कम ही सक्रिय हैं।
2024 का उपचुनाव हारे रोशन कुमार मांझी अभी उम्मीद नहीं हारे हैं और वह आरजेडी की ओर से मैदान में सक्रिय हैं। प्रदेश के कद्दावर नेता और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष रहे उदय नारायण चौधरी सक्रिय जरूर हैं लेकिन यह तय नहीं है कि वह चुनाव लड़ेंगे या नहीं।
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2024 के उपचुनाव में इस सीट पर जन सुराज के उम्मीदवार रहे जितेंद्र पासवान को 37,103 वोट मिले थे और इस नई पार्टी ने सबको चौंका दिया था। इसी को ध्यान में रखते हुए जन सुराज ने अपनी पहली ही लिस्ट में यहां से प्रत्याशी के नाम का एलान कर दिया है। इस बार जितेंद्र पासवान की जगह युवा नेता डॉ. अजीत कुमार को टिकट दे दिया है अजीत कुमार वही डॉक्टर हैं जो अपने क्षेत्र में मुफ्त में भी इलाज करते रहते हैं।
2020 में क्या हुआ था?
2015 में इस सीट से जीते जीतन राम मांझी 2020 में भी अपनी ही पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़े। वह एनडीए का हिस्सा थे तो यहां से जनता दल यूनाइटेड या बीजेपी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। हालांकि, चिराग पासवान की LJP ने शोभा सिन्हा को टिकट दे दिया था। आरजेडी ने उन्हीं उदय नारायण चौधरी को टिकट दिया जो इसी सीट से 5 बार विधायक रह चुके थे। दरअसल, जेडीयू से अलग होने के बाद जब जीतन राम मांझी ने अपनी पार्टी HAM बनाई तो उन्होंने उदय नारायण चौधरी को ही चुनाव हराया था।
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बाद में उदय नारायण चौधरी आरजेडी में शामिल हो गए। 2015 के बाद 2020 में भी जीतन राम मांझी भारी पड़े। उन्हें 78,762 वोट मिले और उदय नारायण चौधरी को 62,728 वोट मिले। 2024 में जीतन राम मांझी लोकसभा का चुनाव लड़कर गया के सांसद और फिर केंद्रीय मंत्री बने। 2024 में ही इस सीट पर उपचुनाव हुए और जीतन राम मांझी ने अपनी बहू यानी संतोष सुमन की पत्नी दीपा मांझी को चुनाव में उतारा। आरजेडी ने इस बार उदय नारायण चौधरी के बजाय रोशन कुमार मांझी को उम्मीदवार बनाया लेकिन नतीजे फिर वही रहे और दीपा मांझी आसानी से चुनाव जीत गईं।
विधायक का परिचय
मौजूदा विधायक दीपा मांझी की सबसे अहम पहचान यही है कि वह पूर्व सीएम और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (HAM) के मुखिया जीतन राम मांझी की बहू और उनके बेटे संतोष सुमन की पत्नी हैं। MA तक पढ़ी दीपा मांझी 2024 में विधानसभा का चुनाव जीतने से पहले भी राजनीति में सक्रिय रही हैं। वह जिला परिषद की सदस्य रही हैं। एक बार वह जिला परिषद अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ीं लेकिन 3 वोट से यह चुनाव हार गईं।
2024 के चुनावी हलफनामे में दीपा मांझी ने बताया था कि उनकी कुल संपत्ति 3.37 करोड़ रुपये है और उनके खिलाफ एक भी मुकदमा दर्ज नहीं है।
विधानसभा का इतिहास
लंबे समय तक उदय नारायण चौधरी की विधानसभा रही इमामगंज से वह कुल पांच बार विधानसभा का चुनाव जीते हैं। 2015 में उदय नारायण चौधरी को हराकर जीतन राम मांझी ने इसे अपना गढ़ बना लिया। इसी सीट से श्रीचंद सिंह और ईश्वर दास भी दो-दो बार विधानसभा चुनाव जीते हैं। इस सीट पर आरजेडी एक भी बार चुनाव नहीं जीत पाई है।
1957-अंबिका प्रसाद सिंह-निर्दलीय
1962-अंबिका प्रसाद सिंह-स्वतंत्र पार्टी
1967-डी राम- कांग्रेस
1969-ईश्वर दास- संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1972-अवधेशेश्वर राम-कांग्रेस
1977-श्रीचंद सिंह-कांग्रेस
1980-श्रीचंद सिंह-कांग्रेस
1985-उदय नारायण चौधरी-जनता दल
1990-रामस्वरूप पासवान-समता पार्टी
1995-उदय नारायण चौधरी-समता पार्टी
2000-उदय नारायण चौधरी-JDU
2005-उदय नारायण चौधरी-JDU
2005-उदय नारायण चौधरी-JDU
2010-जीतन राम मांझी-HAM
2015-जीतन राम मांझी-HAM
2020-दीपा मांझी-HAM
