बिहार में साल 1967 और 1969 के विधानसभा चुनावों में बिहार ने अस्थिर सरकारें देखीं। किसी भी पार्टी को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला इसलिए बार-बार मुख्यमंत्री बने। किसी मुख्यमंत्री का कार्यकाल 7 दिन रहा, किसी को 50 दिनों का कार्यकाल मिला। बार-बार बदलती सरकारों से ऊबे लोगों ने साल 1972 में बड़ा फैसला लिया। 5 मार्च 2020 को वोटिंग हुई और कांग्रेस पार्टी को प्रचंड बहुमत मिली।
बिहार में तब तक केदार पांडेय का कद ऊंचा हो गया। कांग्रेस की विधायक दल की बैठक में यह तय किया गया कि केदार पाडें के हाथ में ही सत्ता रहेगी। केदार पांडेय ने 19 मार्च 1972 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बिहार में बीते एक दशक में किसी का कार्यकाल 1 साल 105 दिनों तक वह मुख्यमंत्री रहे। उन्हें 2 जुलाई 1973 को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
यह भी पढ़ें: बिहार चुनाव 1952: पहले चुनाव में कांग्रेस का जलवा, श्रीकृष्ण बने CM
जब बहुमत थी तो विदाई क्यों हुई?
कांग्रेस गुटबाजी से जूझ रही थी। कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत रही कि जब भी शीर्ष नेतृत्व किसी नेता को कमान सौंपता, दूसरा गुट विरोध पर उतर जाता। 1973 में भी यही हुआ। पार्टी के भीतर चल रही खींचतान और गुटबंदी से वह नाराज थे। कुछ मंत्रियों के प्रदर्शन खराब थे, इस्तीफा चाह रहे थे। केदार पांडे का गुट और ललित नारायण मिश्र का गुट एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करने लगा। बैठकों में भी अनबन सामने आ रही थी। विवाद इस हद तक बढ़ा कि उन्होंने इस्तीफा देना पड़ा।
यह भी पढ़ें: 1969: एक चुनाव, 5 मुख्यमंत्री, हर बार गिरी सरकार
जब बिहार को मिला पहला मुस्लिम मुख्यमंत्री
2 जुलाई 1973 को ही अब्दुल गफूर ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जिन विधायकों को केदार पांडे हटाना चाहते थे, उनके इस्तीफा देते ही वे मंत्रिमंडल से बाहर हो गए। नई सरकार बनी तो मंत्रिमंडल में कई पुराने चेहरे नजर नहीं आए। अब्दुल गफूर बिहार के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री बने।पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने यह तय किया कि केदार पांडे की जगह अब्दुल गफूर को ही सत्ता सौंपी जाए। यह बिहार के लिए चौंकाने वाला था लेकिन उनके नाम पर सहमति बन गईं। इंदिरा गांधी ने भी इस फैसले का समर्थन किया। नए राजनीतिक समझौते में दोनों गुट उनके नाम पर सहमत हो गए। उनका कार्यकाल 2 जुलाई 1973 से 11 अप्रैल 1975 तक चला। अब्दुल गफूर स्वतंत्रता सेनानी भी थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के तौर पर लंबे वक्त तक राज्य में सक्रिय रहे।
यह भी पढ़ें: बिहार विधानसभा चुनाव 1967: एक चुनाव 3 मुख्यमंत्री, बार-बार गिरी सरकार
अब्दुल गफूर की विदाई क्यों हुई?
अब्दुल गफूर ने जब बिहार की कमान संभाली तो देश और राज्य में जेपी आंदोलन की लहर थी। साल 1974 में जेपी आंदोलन के चलते राज्य में बड़े पैमाने पर अशांति फैली। जगह-जगह प्रदर्शन हुए और राजनीति संकट की स्थिति पैदा हो गई। प्रशासन संभालने में अब्दुल गफूर फेल हो गए। आंदोलन को पुलिस बलों ने बुरी तरह दबाने की कोशिश की जिसकी सार्वजनिक निंदा हुई।
यह भी पढ़ें: बिहार चुनाव 1962: कांग्रेस की हैट्रिक, विपक्ष ने दी बदलाव की आहट
छात्रों और युवाओं के प्रदर्शन की वजह से सरकार पर इस्तीफे का दबाव बढ़ने लगा। इंदिरा गांधी ने तय किया कि अब बिहार को नए चेहरे की जरूरत है, मौजूदा सीएम से परिस्थितियां नहीं संभल रही हैं। बिहार में इसी वक्त रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या हो गई। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के दबाव, पार्टी के भीतर उठे विद्रोह और लचर कानून व्यवस्था की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
जगन्नाथ मिश्रा कैसे मुख्यमंत्री बने?
बिहार को इसी साल एक तीसरा मुख्यमंत्री मिला। कांग्रेस नेता जगन्नाथ मिश्रा के हाथों में राज्य की कमान आई। वह लगातार 2 साल 19 दिनों तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहे। उनके नाम पर लंबी सहमति बनी। वह हर गुट को बैलेंस करने में सफल रहे। 11 अप्रैल को 1975 को अब्दुल गफूर के इस्तेफे के बाद वह मुख्यमंत्री बने। 3 अप्रैल 1977 तक वह अपने पद पर बने रहे।
इमरजेंसी खत्म होने के बाद देश में साल 1977 में जनता पार्टी की नई सरकार बनी। मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने। उन्होंने कांग्रेस की सरकारों पर जनता का भरोसा खोने का दावा किया और 9 राज्यों में सरकारों को बर्खास्त कर दिया। जगन्नाथ मिश्रा की भी विदाई हो गई।
यह भी पढ़ें: बिहार चुनाव 1957: फोर्ड का काम और जोरदार प्रचार, दोबारा जीती कांग्रेस
विधानसभा चुनाव 1972, एक नजर
- कुल सीटें: 318
- बहुमत का आंकड़ा: 160
- कुल वोट: 17,508,693
- वोट प्रतिशत: 52.79%
- चुनाव में उभरे बड़े दल
- इंडियन नेशनल कांग्रेस: 167
- संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी: 33
- कांग्रेस (O): 30
- भारतीय जन संघ: 25
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया: 35
