चीन और पाकिस्तान तो साथ ही थे, अब अफगानिस्तान का तालिबान भी इनके साथ आ गया है। बीजिंग में हाल ही में चीन के विदेश मंत्री वांग यी, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार और अफगानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के बीच बैठक हुई थी। बैठक में तय हुआ कि अब चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को अफगानिस्तान तक बढ़ाया जाएगा। 


चीन लंबे समय से तालिबान सरकार को CPEC में आने के लिए राजी करने में जुटा था। अफगानिस्तान का चीन के इस प्रोजेक्ट में शामिल होना भारत के लिए एक झटका माना जा रहा है। अफगानिस्तान ने यह फैसला तब लिया है, जब 16 मई को ही भारत के विदेश मंत्री जयशंकर और मुत्ताकी के बीच फोन पर बात हुई थी। अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में आने के बाद भारत और तालिबान सरकार के बीच यह पहली हाईलेवल बातचीत थी। 


भारत के लिए यह इसलिए भी बड़ा झटका है, क्योंकि वह हमेशा से CPEC का विरोध करता रहा है। अब इसमें अफगानिस्तान के आने से पाकिस्तान और तालिबान के बीच भी रिश्ते पहले से ज्यादा बेहतर होने की गुंजाइश है।

 

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चीन-पाकिस्तान ने क्या कहा?

चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच यह छठी बैठक थी। हालांकि, कुछ समय से पाकिस्तान और तालिबान सरकार के बीच मतभेदों के कारण यह बैठक हो नहीं सकी थी। सोमवार को इशाक डार और वांग यी के बीच बैठक हुई थी। इसके बाद मंगलवार को आमिर खान मुत्ताकी भी इसमें शामिल हुए। 


चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने तीनों नेताओं के बीच हुई इस बैठक को 'अनौपचारिक' बताया है। तीनों नेताओं के बीच हुई इस बैठक की एक तस्वीर भी सामने आई है, जिसमें तीनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े दिख रहे हैं। तस्वीर को X पर शेयर करते हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार ने लिखा, 'पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और विकास के लिए एक साथ खड़े हैं।'

 


वहीं, चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि 'चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की संप्रभुता, सुरक्षा और गरिमा की रक्षा करने में साथ है।'

 

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यह CPEC क्या है?

सितंबर 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब कजाखस्तान के दौरे पर थे, तब उन्होंने 'वन बेल्ट, वन रोड' प्रोजेक्ट का ऐलान किया था। बाद में 'वन बेल्ट, वन रोड' का नाम बदलकर 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' रख दिया गया था। 


इसे जिनपिंग का 'ड्रीम प्रोजेक्ट' कहा जाता है। इसके जरिए चीन पूरी दुनिया को सड़क और समुद्री रास्ते से जोड़ने की तैयारी कर रहा है। इस प्रोजेक्ट के तहत, चीन दुनियाभर में 6 इकोनॉमिक कॉरिडोर बना रहा है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) इन्हीं में से एक हैं। 


तीन हजार किलोमीटर लंबा यह कॉरिडोर चीन के काशगर से शुरू होता है और पाकिस्तान के ग्वादर पर खत्म होता है। चीन ने CPEC के लिए 62 अरब डॉलर लगाए हैं। इस प्रोजेक्ट को 2015 में शुरू किया गया था। इस कॉरिडोर में हाईवे, रेलवे लाइन, पाइपलाइन और ऑप्टिकल केबल का नेटवर्क तैयार किया जा रहा है।


ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2024 तक CPEC के फेज 1 के तहत 25.2 अरब डॉलर के 38 प्रोजेक्ट पूरे हो चुके थे। वहीं, 26.8 अरब डॉलर के 26 प्रोजेक्ट पाइपलाइन में थे, जिन्हें फेज-2 में कवर किया जाएगा। 

 

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तीनों के लिए यह कितना अहम?

  • चीन के लिएः CPEC को अफगानिस्तान तक बढ़ाने से चीन की पहुंच मध्य एशिया तक हो जाएगी। इसके साथ ही अफगानिस्तान में खनिज और तेल जैसे प्राकृतिक संसाधनों तक भी पहुंच हो जाएगी। 
  • पाकिस्तान के लिएः अफगानिस्तान से रिश्ते सुधरने की उम्मीद है। पाकिस्तान बार-बार अफगान सरकार पर तहरीक-ए-तालिबान (TTP) पर कार्रवाई करने को कह रहा है, अब ऐसा होने की उम्मीद भी है। सीमा पर शांति की उम्मीद भी है।
  • अफगानिस्तान के लिएः तालिबान सरकार की आर्थिक हालत बहुत खराब है। CPEC में आने से चीन का निवेश बढ़ जाएगा, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था बढ़ेगी। चीन का साथ मिलने से तालिबान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती मिलने की उम्मीद भी है।

अफगानिस्तान की मजबूरी या जरूरत?

अफगानिस्तान वैसे तो 2017 से ही चीन BRI का हिस्सा है। इसके बाद लंबे समय से ही उसे CPEC में शामिल करने की बात चल रही थी। साल 2023 में तालिबान सरकार और शिनजियांग सेंट्रल एशिया पेट्रोलियम एंड गैस (CAPEIC) के बीच एक सौदा हुआ था। यह सौदा अमू दरिया तेल को लेकर था। 25 साल के लिए हुए इस सौदे में CAPEIC अफगानिस्तान में 54 करोड़ डॉलर का निवेश करेगा। इस सौदे ने CPEC में अफगानिस्तान के शामिल होने का रास्ता और साफ कर दिया।


हालांकि, अफगानिस्तान का इसमें शामिल होना उसकी मजबूरी और जरूरत दोनों हैं। दरअसल, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था बदहाल हो चुकी है। युद्ध और प्रतिबंधों के चलते विदेशी सहायता बहुत ज्यादा नहीं मिल पाती है। 

 


इसके अलावा, 2022 में तालिबान ने अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसने इसकी अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुंचाया। अब तालिबान सरकार अफगानिस्तान इसे पटरी पर लाना चाहती है और इसके लिए जरूरी है पैसा। यह पैसा इसे चीन से मिलेगा। CPEC में आने से अफगानिस्तान में निवेश बढ़ेगा। यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ेगा।


CPEC में आने की एक वजह यह भी है कि तालिबान सरकार को अभी तक किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है। CPEC में आने से चीन और पाकिस्तान का साथ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मिल सकता है, जिससे उसे मान्यता मिलने में मदद मिल सकती है।

 

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भारत पर क्या होगा इसका असर?

भारत शुरू से ही चीन के BRI का विरोध कर रहा है। भारत CPEC का भी विरोध करता है। वह इसलिए क्योंकि CPEC का रास्ता PoK से होकर भी गुजरता है। भारत का कहना है कि उसकी मर्जी के बिना PoK में चीन कुछ नहीं बना सकता। हालांकि, चीन मानने वालों में से नहीं है। 


चीन तेजी से CPEC पर काम कर रहा है। वह भी तब जब बलूचिस्तान में CPEC पर काम करने वाले चीनी इंजीनियरों पर लगातार हमले हो रहे हैं। बताया जाता है कि अपने लोगों की सुरक्षा के लिए बलूचिस्तान में कुछ चीनी सैनिक तैनात भी हैं। इसके अलावा, चीन ग्वादर पोर्ट के पास भी अपना मिलिट्री बेस बनाना चाहता है। पाकिस्तान के साथ उसकी बात चल रही थी। हालांकि, बदले में पाकिस्तान की मांग थी कि चीन मिलिट्री बेस तभी बना सकता है, जब वह उसे नई परमाणु तकनीक तैयार करने में मदद करे, ताकि भारत का मुकाबला किया जा सके। चीन ने पाकिस्तान की इस मांग को ठुकरा दिया था।


भारत के लिए अब चिंता की बात यह है कि वह चीन से घिरता जा रहा है। भारत के सभी पड़ोसियों पर चीन का प्रभाव है। नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव पहले से ही BRI के सदस्य हैं। भूटान भी चीन की तरफ झुका रहता है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने जिस तरह से अफगानिस्तान की तालिबान सरकार से बात की थी, उससे लग रहा था कि दोनों के रिश्ते मजबूत हो सकते हैं। हालांकि, अब अफगानिस्तान का भी CPEC से जुड़ना भारत की उम्मीदों को चोट पहुंचाता है। 


भारत को डर है कि CPEC के विस्तार से पाकिस्तान और तालिबान के बीच सहयोग बढ़ेगा, जिससे अफगानिस्तान का उपयोग भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों के लिए हो सकता है। अतीत में अफगानिस्तान जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों का गढ़ रहा है। चीन और पाकिस्तान की मदद से यह भारत में आतंकवाद को बढ़ावा दे सकते हैं।


चीन ने BRI के जरिए भारत के सभी पड़ोसियों तक अपनी पहुंच बना ली है। हर जगह उसकी मौजूदगी है। एक तरह से चीन ने भारत को घेर लिया है। ऐसे में भारत अपने पड़ोसियों को साथ रखने के लिए अरबों डॉलर का निवेश करता है। हर साल पड़ोसियों को आर्थिक मदद भी देता है, ताकि वहां अपनी मौजूदगी बढ़ा सके। पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान को छोड़कर भारत ने अपने सभी पड़ोसियों- बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव्स और म्यांमार को अरबों डॉलर की मदद दी है।


हालांकि, चीन एक सोची-समझी रणनीति के तहत भारत के पड़ोसियों पर दांव लगा रहा है, ताकि दक्षिण एशिया में अपना दबदबा बना सके। पिछले साल भारत के विदेश मंत्रालय ने साफ किया था कि जो भी देश CPEC में शामिल होगा, वह भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करेगा।