कई महीनों की बातचीत और तनाव के बीच के बाद आखिरकार अमेरिका और यूक्रेन के बीच 'मिनरल डील' को लेकर गुरुवार को बात बन गई। यूक्रेन भविष्य में अपने खनिज भंडार में से जो कुछ भी बेचेगा और उससे जो भी मुनाफा होगा, उसमें से अमेरिका अपना हिस्सा लेगा। इसी को लेकर अमेरिका ने यूक्रेन के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। दोनों देशों ने बुधवार को इस समझौते पर दस्तखत किए। इस समझौते के बाद अब अमेरिका की यूक्रेन के खनिजों तक पहुंच हो जाएगी। 

 

इस डील पर अमेरिका और यूक्रेन जनवरी से बात कर रहे थे। फरवरी में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की अमेरिका द्विपक्षीय वार्ता के लिए गए थे लेकिन वहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से तनातनी हो गई थी। इसके बाद जेलेंस्की अमेरिका का दौरा रद्द कर लौट आए थे। डील पर बातचीत अधर में लटक गई।  

 

ट्रंप और जेलेंस्की की वेटिकन में मुलाकात

हालांकि, इसके बाद भी अमेरिका और यूक्रेन के बीच हाई लेवल पर बातचीत चलती रही। हाल ही में पोप फ्रांसिस की मौत के बाद उनकी अंतिम यात्रा के दौरान वेटिकन में ट्रंप और जेलेंस्की की मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात में दोनों शीर्ष नेताओं ने 10 मिनट कर एक दूसरे से अकेले में बात की थी। इस मुलाकात को ट्रंप ने 'शानदार' बताया था।

 

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डील साइन करना यूक्रेन की मजबूरी क्यों?

 

23 फरवरी 2023 से यूक्रेन का रूस के साथ युद्ध चल रहा है। इस युद्ध में यूक्रेन का आंतरिक ढांचा बुरी तरह से तबाह हो गया है। इस जंग के बीच में यूक्रेन को पश्चिमी देशों और अमेरिकी से हथियारों के साथ में अरबों डॉलर की मदद मिलती रही है लेकिन यह युद्ध वोलोदिमीर जेलेंस्की की उम्मीद के मुताबिक कहीं ज्यादा लंबा खिंच गया है। ऐसे में जो देश यूक्रेन की तरफ मदद का हाथ बढ़ा रहे थे अब उन्होंने धीरे-धीरे अपने हाथ पीछे खिंचने शुरू कर दिए हैं।

 

 

उधर रूस, यूक्रेन के ज्यादातर हिस्सों को अपना बताकर उसपर कब्जा करना चाहता है। पुतिन की सेना ने यूक्रेन के कई हिस्सों पर कब्जा भी जमा लिया है। जब अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने कीव से अपना हाथ खिंच लिया है तो इस स्थिति में यूक्रेन के सामने अब दो ही विकल्प बचते हैं- या तो रूस के सामने सरेंडर करे या फिर अमेरिका सहित अन्य देश जो अपनी शर्तों पर बात मनवाना चाहते हैं वो मान ले।

 

'मिनरल डील' क्यों?

 

अमेरिका के साथ यह 'मिनरल डील' यूक्रेन की इसी मजबूरी के तहत मानी जा रही है। हालांकि, इस डील से दोनों देश रूस के साथ हो रहे युद्ध से यूक्रेन की आर्थिक रिकवरी को बढ़ाने के लिए सहमत हुए हैं। डील पर हस्ताक्षर करते हुए अमेरिका के ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने कहा कि यह डील दर्शाती है कि दोनों पक्ष यूक्रेन में स्थायी शांति और समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध हैं। दरअअस, यूक्रेन के लिए, यह डील अमेरिकी सैन्य सहायता तक पहुंचने के लिए जरूरी मानी जा रही है।

 

 

यूक्रेन में ग्रेफाइट, टाइटेनियम और लिथियम खनिजों के विशाल भंडार मौजूद हैं। अमेरिका की नजर यूक्रेन के इसी खनिजों पर थी। डील में अमेरिका को मिले फायदे के बाद अब डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन में अक्षय ऊर्जा (renewable energy), सैन्य प्रौद्योगिकी और औद्योगिक बुनियादी ढांचे में सहायता करेंगे।

 

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इस डील से किसे क्या मिला?

 

अमेरिका कोः इस डील से अमेरिका को यूक्रेन के रेयर अर्थ मिनरल्स यानी दुर्लभ खनिजों तक पहुंच मिल जाएगी। अब तक अमेरिका इसके लिए चीन पर निर्भर था। मगर इस डील के बाद वह यूक्रेन से यह खनिज लेगा।

 

यूक्रेन कोः रूस के साथ तीन साल से जंग लड़ रहे यूक्रेन को अब अमेरिका की मदद मिलती रहेगी। इसके साथ ही युद्ध से तबाह हो चुके यूक्रेन के पुनर्निर्माण में भी अमेरिका मदद करेगा। हालांकि, यूक्रेन सुरक्षा की गारंटी भी मांग रहा था, जिस पर सहमति नहीं बन सकी।

 

दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों पर अमेरिका की नजर

 

बता दें कि इससे पहले भी अमेरिका में चाहे जिस राष्ट्रपति की सरकार हो, सभी ने जिन भी देशों पर हमला किया या पीछे से संबंधित देश को आर्थिक/सैन्य मदद की उससे फायदा ही लिया है। अमेरिका की नजरें हमेशा से दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों पर रही हैं। इतिहास में इसके कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। आइए ऐसे ही कुछ घटनाक्रमों पर नजर डालते हैं... 

 

इराक युद्ध

 

अमेरिका ने सीधे तौर पर साल 2003 में इराक से सद्दाम हुसैन की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए जंग छेड़ दी। सद्दाम हुसैन की सरकार गिराने के बाद यह लड़ाई साल 2011 तक चली। अमेरिका की नजर हमेशा से इराक के प्राकृतिक संसाधनों पर थी। ऐसे में अमेरिका ने इराक के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा नहीं किया। अमेरिका ने इराक में तेल और प्राकृतिक संसाधनों को नियंत्रित करने के लिए एक नई सरकार स्थापित करने और तेल उद्योग को फिर से शुरू करने में मदद की। युद्ध के दौरान, अमेरिका ने इराक पर कई कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे, जिससे देश की तेल से होने वाली कमाई कबुत कम हो गई थी। 

 

इससे अमेरिका का कई फायदे मिले। हालांकि, इराक में जंग के बाद, अमेरिका ने इराक को तेल का उत्पादन और निर्यात करने की अनुमति दी, जिससे देश को आर्थिक रूप से पुनर्जीवित होने में मदद मिली। 

 

फारस की खाड़ी युद्ध (1990-1991)

 

इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया था। ऐसे में अमेरिका ने 1990-1991 में संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाली सेनाओं के साथ इराक को कुवैत से बाहर निकालने में मदद की थी। इस युद्ध में अमेरिका ने दुनिया के सामने अपने सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया था। फारस की खाड़ी युद्ध के बाद अमेरिका को एक प्रमुख सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित किया। इस जंग से दिखाया गया कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान चला सकता है और जीत हासिल कर सकता है।

 

युद्ध के बाद अमेरिका ने मध्य पूर्व एशिया में अपनी सैन्य उपस्थिति मजबूत की थी। अमेरिका ने इसके बाद सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कुवैत, बहरीन और कतर में सैन्य अड्डे स्थापित किए थे।