चीन और अमेरिका के बीच नई ट्रेड वार शुरू हो चुकी है। अबकी बार रेयर अर्थ मिनरल्स इसके केंद्र में हैं। चीन ने कुल 12 प्रकार के रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर रोक लगाई है। उसके इस कदम से डोनाल्ड ट्रंप तमतमा उठे हैं। जवाब में चीनी सामान पर 100 फीसद टैरिफ का ऐलान किया है। बात इतनी बढ़ चुकी है कि ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से न मिलने तक की धमकी देने लगे हैं। अक्तूबर के आखिर में दक्षिण कोरिया में APEC शिखर सम्मेलन है। यही पर डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात प्रस्तावित है। मगर अब संकट के बादल मंडराने लगे है।
रेयर अर्थ मिनरल्स पर चीन का एकाधिकार है। अब वह इन खनिजों का इस्तेमाल एक हथियार के तौर पर कर रहा है। पहली बार 2010 में चीन ने जापान पर रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर बैन लगाया था। अब उसने अमेरिका को अपने निशाने पर लिया है। आइये जानते हैं कि रेयर अर्थ मिनरल्स पर चीन का कितना नियंत्रण हैं, अमेरिका के लिए यह झटका क्यों है, दुनिया कैसे चीन का विकल्प तैयार कर रही है, सबसे पहले जानते हैं कि चीन ने बैन क्यों लगाया?
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चीन ने क्यों लगाई रोक?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अप्रैल महीने में चीन पर भारी भरकम रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था। हालांकि बाद में दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता शुरू हुई। जिनेवा में दोनों देशों के बीच ट्रेड वार को रोकने पर सहमति बनी। अमेरिका ने भी चीनी वस्तुओं पर प्रतिबंध को घटाकर 30 फीसद कर दिया। उसके बाद से ट्रंप प्रशासन को उम्मीद थी कि रेयर अर्थ मिनरल्स पर लगी रोक को चीन हटा लेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब ट्रंप के टैरिफ के जवाब में चीन ने सात और वस्तुओं पर रोक लगा दी है।
चीन के पास रेयर अर्थ का कितना कंट्रोल?
रेयर अर्थ मिनरल्स रेयर हैं, लेकिन इतने भी नहीं। धरती की पूरी पपड़ी पर इनकी अच्छी खासी मात्रा है। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यह रेयर अर्थ मिनरल्स सोने से अधिक सुलभ है। अन्य खनिजों से इन्हें अलग करना बेहद महंगा और मुश्किल है। सभी देशों के पास तकनीक भी नहीं है। यही कारण है कि इन मिनरल्स को रेयर माना जाता है।
खनन से निकाला गया लगभग 61 फीसद रेयर अर्थ मिनरल्स चीन से आते हैं। प्रोसेसिंग के बाद दुनियाभर का 92 फीसदी रेयर अर्थ मिनरल्स का सोर्स भी चीन है। चीन के बाहर वियतनाम की एक रिफाइनरी थोड़ा बहुत उत्पादन करती थी। हालांकि टैक्स विवाद के बाद यह 2022 में ही बंद हो चुकी है। अब चीन का पूरी तरह से एकाधिकार है।
दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका खनन से रेयर अर्थ मिनरल्स को निकाल तो लेता है, लेकिन उसके पास प्रोसेस करने की तकनीक नहीं है। कैलिफोर्निया में एक रेयर अर्थ मिनरल्स खदान है। यहां से जो भी खनिज निकलता है, उसे चीन भेजा जाता है, ताकि रेयर अर्थ मिनरल्स को अलग किया जा सके।
दुनियाभर में 17 रेयर अर्थ एलिमेंट्स
दुनियाभर में 17 रेयर अर्थ एलिमेंट्स हैं। इनमें से 12 पर चीन बैन लगा चूका है। अप्रैल महीने में सात और अक्तूबर में पांच और नामों को इस सूची में डाला गया है। खास बात यह है कि इन तत्वों का इस्तेमाल रक्षा, ऊर्जा और ऑटोमोटिव सेक्टर में होता है।
पहले इन पर लगाया बैन
- समैरियम
- गैडोलीनियम
- टेरबियम
- डिस्प्रोसियम
- ल्यूटेटियम
- स्कैंडियम
- यिट्रियम
दूसरी पर चीन ने लगाया बैन
चीन ने जून महीने में पहली बार सात रेयर अर्थ मिनरल्स पर बैन लगाया था। अब अक्तूबर में पांच अन्य खनिजों को इस सूची में शामिल कर लिया है। अब कुल खनिजों की संख्या 12 हो गई है। अगर किसी कंपनी को चीन से इन रेयर अर्थ मिनरल्स का निर्यात करना है तो उसे चीन की सरकार से लाइसेंस लेना होगा। चीन की सरकार ने अपने देश से बाहर रेयर अर्थ मिनरल्स से जुड़ी तकनीक पर भी प्रतिबंध लगाया है। बिना लाइसेंस के तकनीक नहीं दी जाएगी।
अब इन तत्वों पर प्रतिबंध
- होल्मियम
- एर्बियम
- थुलियम
- यूरोपियम
- यटरबियम
अमेरिका के लिए क्यों बड़ा झटका?
अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट बताती है कि 2020 से 2023 के बीच अमेरिका ने करीब 70% रेयर अर्थ मिनरल्स का चीन से आयात किया। इन खनिजों पर अमेरिका की सेना की ताकत टिकी है। अमेरिका की विख्यात टॉमहॉक मिसाइल, पनडुब्बी, रडार, लेजर और एफ-35 लड़ाकू विमान में भारी मात्रा में रेयर अर्थ मिनरल्स का इस्तेमाल होता है। F-35 लड़ाकू विमान में करीब 408 किलो रेयर अर्थ मिनरल्स का इस्तेमाल होता है। वर्जीनिया क्लास की पनडुब्बी में 4173 किलो की जरूरत होती है। चीनी प्रतिबंध का असर अमेरिका सेना की तैयारी और साजो सामान पर पड़ेगा।
चीन ने अमेरिका की 16 कंपनियों को निर्यात नियंत्रण सूची में डाला है। इनमें से 15 कंपनियां रक्षा क्षेत्र की हैं। मतलब साफ है कि इन कंपनियों को चीन रेयर अर्थ मिनरल्स नहीं बेचेगा। उसके इस कदम से अमेरिकी रक्षा विभाग को झटका लगेगा।
इन अमेरिकी हथियारों पर होता है रेयर अर्थ मिनरल्स का इस्तेमाल
- F-35 लड़ाकू विमान
- वर्जीनिया और कोलंबिया क्लास पनडुब्बी
- टॉमहॉक मिसाइल
- रडार सिस्टम
- प्रीडेटर ड्रोन
- स्मार्ट बमों
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अमेरिका क्या कदम उठा रहा?
अमेरिका रक्षा विभाग का फोकस साल 2027 तक अपनी जरूरत के सभी रेयर अर्थ मिनरल्स का देश के भीतर ही उत्पादन करने पर है। 2020 में अमेरिका ने एमपी मैटेरियल को 9.6 मिलियन डॉलर का अनुदान दिया। यह कंपनी हल्के रेयर अर्थ मिनरल्स को अलग करेगी। 2022 में रक्षा विभाग ने एक अन्य कंपी को 35 मिलियन का अनुदान दिया। यह कंपनी भारी रेयर अर्थ प्रसंस्करण से जुड़ी है।
एक अनुमान के मुताबिक 2025 के आखिरी तक एमपी मैटेरियल्स 1,000 टन नियोडिमियम-बोरॉन-आयरन मैग्नेट का उत्पादन करेगी। यह 2018 में चीन के उत्पादन से एक प्रतिशत से भी कम है। ऑस्ट्रेलियाई कंपनी लिनास रेयर अर्थ की सहायक कंपनी लिनास यूएसए ने भी रेयर अर्थ मिनरल्स को अलग करने की यूनिट लगाई है।
क्या चीन का विकल्प तलाश पाएगी दुनिया?
भारत समेत दुनियाभर के कई देशों ने रेयर अर्थ मिनरल्स की दिशा में कई बड़े कदम उठाए हैं। जापान, वियतनाम, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया रेयर अर्थ मिनरल्स के प्रसंस्करण, अनुसंधान और विकास में निवेश कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया अपने ब्राउन्स रेंज को विकसित करने की कोशिश में है। माना जाता है कि यहां 2,294 टन डिस्प्रोसियम का भंडार है।
चीन के बाहर ऑस्ट्रेलिया की लिनास रेयर अर्थ्स कंपनी रेयर अर्थ मिनरल्स का सबसे बड़ा उत्पादक है। मगर उसे भी अपना ऑक्साइड चीन भेजना पड़ता है। यहां से शोधित होकर ऑक्साइड लिनास के पास पहुंचता है। अभी रेयर अर्थ मिनरल्स के क्षेत्र में चीन पर निर्भरता कम करने की दिशा में कई और बड़े कदम उठाने की जरूरत है।
