भारत ने सुरक्षा को मजबूत करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। अब चीनी कंपनियों से जुड़े सैटेलाइट्स का इस्तेमाल भारतीय ब्रॉडकास्टर्स और टेलीपोर्ट ऑपरेटर्स के लिए सीमित कर दिया जाएगा। यह फैसला चीन के साथ भू-राजनीतिक तनाव के बीच लिया गया है।

 

पहले भारत में सैटेलाइट की कमी थी। इसलिए सभी अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट्स, जिनमें चीनी कनेक्शन वाले भी शामिल थे, को अनुमति दी जाती थी ताकि सेवाएं बनी रहें। लेकिन अब डिफेंस के क्षेत्र के लिए अंतरिक्ष काफी महत्त्वपूर्ण हो गया है। सरकार सैटेलाइट्स को लेकर घरेलू क्षमता बढ़ाने पर जोर दे रही है, जिसमें अपने सैटेलाइट और सहायक ढांचा शामिल है।

 

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आवेदन किया खारिज

भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) ने चाइना सैट और हांगकांग की अपस्टार व एशिया सैट कंपनियों के आवेदनों को खारिज कर दिया। ये कंपनियां भारतीय कंपनियों को सैटेलाइट सेवाएं देना चाहती थीं।

एशिया सैट भारत में 33 साल से काम कर रही है। अभी उसे सिर्फ एएस5 और एएस7 सैटेलाइट्स की अनुमति मार्च तक है। लेकिन एएस6, एएस8 और एएस9 के लिए अनुमति नहीं मिली।

 

एक सूत्र ने ईटी को बताया, 'जियोस्टार, जी जैसे ब्रॉडकास्टर्स और टेलीपोर्ट ऑपरेटर्स को अगले साल मार्च तक एशिया सैट 5 और 7 से हटकर स्थानीय जीसैट या इंटेलसैट पर जाना होगा।'  दूसरे सूत्र के मुताबिक कंपनियां बदलाव शुरू कर चुकी हैं ताकि काम में रुकावट न आए।

जीसैट की बढ़ रही क्षमता

कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां जैसे इंटेलसैट, स्टारलिंक, वनवेब, आईपीस्टार, ऑर्बिटकनेक्ट और इनमारसैट को भारत में संचार और प्रसारण सेवाओं की अनुमति मिली है। अधिकारी कहते हैं कि जीसैट अब पर्याप्त क्षमता बना रहा है, इसलिए पुरानी दिक्कतें नहीं होंगी। एशिया सैट भारत में सेवाएं बनाए रखने के लिए नियामक से बात कर रही है।

 

इनऑर्बिट स्पेस ने एशिया सैट 5 और 7 के सी बैंड एक्सटेंशन के लिए इन-स्पेस में आवेदन किया है। इनऑर्बिट स्पेस के प्रबंध निदेशक राजदीप सिंह गोहिल ने कहा, 'इनऑर्बिट और एशिया सैट के टॉप अधिकारी पिछले कुछ महीनों में इन-स्पेस चेयरमैन से कई मीटिंग कर चुके हैं।'

33 साल से था योगदान

भारत में एशिया सैट की अधिकृत प्रतिनिधि इनऑर्बिट स्पेस ने कहा कि इन-स्पेस एशिया सैट के 33 साल के योगदान को मानता है, लेकिन आगे की परमिशन न देने का कारण नहीं बताया। 'एशिया सैट का भारत में कोई नॉन-कंप्लायंस का इतिहास नहीं है। सभी पुराने अपलिंक सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, दूरसंचार विभाग, अंतरिक्ष विभाग और गृह मंत्रालय से मंजूर थे।'

 

हाल के अंतरिक्ष के नियमों में बदलाव के बाद अब सभी अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट्स को इन-स्पेस से अनुमति लेनी पड़ती है। भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था मजबूत है। इन-स्पेस के अनुसार, 2033 तक यह 44 अरब डॉलर की हो जाएगी और वैश्विक बाजार हिस्सा 2% से 8% हो जाएगा।

 

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संचार और प्रसारण इस विकास में बड़ा योगदान देंगे। एलन मस्क की स्टारलिंक, यूटेलसैट वनवेब, अमेजन कुइपर और जियो-एसईएस साझेदारी जैसी कंपनियां ब्रॉडबैंड शुरू करने के लिए अंतिम सरकारी मंजूरी का इंतजार कर रही हैं।