आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। आवारा कुत्तों के हमले और काटने की घटनाओं को सुप्रीम कोर्ट ने 'चिंताजनक' और 'परेशान करने वाला' बताया है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा, 'शहरों और आसपास के इलाकों से कुत्तों के काटने की सैकड़ों खबरें हैं। इनमें से कई में रेबीज हुआ है। आखिरकार बच्चे और बुजुर्ग ही इस जानलेवा बीमारी का शिकार हो रहे हैं।'
इससे पहले पिछले हफ्ते ही मेघालय हाई कोर्ट ने आवारा कुत्तों की आबादी बढ़ने से रोकने के लिए एनिमल बर्थ कंट्रोल कमेटी (ABC) बनाने का आदेश दिया है।
आवारा कुत्तों के हमले और काटने की घटनाएं दुनियाभर में होती हैं। दुनिया के कई मुल्क इससे परेशान हैं। पिछले साल ही तुर्की में आवारा कुत्तों को लेकर एक नया कानून आया था। कानून यह था कि सभी नगर निगमों को 4 साल के लिए आवारा कुत्तों को शेल्टर में रखना होगा। अगर कहीं ऐसा नहीं होता है तो वहां के मेयर को जेल में डाल दिया जाएगा।
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कितनी बड़ी है आवारा कुत्तों की समस्याएं?
भारत में हाल के सालों में कुत्तों के काटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। ज्यादातर हमले बच्चों और बुजुर्ग पर होते हैं।
केंद्र सरकार ने आवारा जानवरों की गिनती 2021 में करवाई थी। इससे पता चला था कि देशभर में 1.53 करोड़ आवारा कुत्ते हैं।
हालांकि, कुछ अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट्स इसे लेकर अलग आंकड़े देती हैं। 'स्टेट ऑफ पेट होमलेस' की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 6 करोड़ से ज्यादा कुत्ते ऐसे हैं, जो लावारिस हैं। इनमें से 80 लाख कुत्ते शेल्टर में हैं, जबकि 5.25 करोड़ आवारा हैं। अनुमान है कि भारत में हर 100 लोगों पर 3 आवारा कुत्ते हैं।
कुत्तों के काटने की घटनाएं कितनी बढ़ीं?
आंकड़े बताते हैं कि भारत में कुत्तों के काटने की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रहीं हैं। इसी साल 1 अप्रैल को केंद्र सरकार ने संसद में कुत्तों के हमलों से जुड़ा आंकड़ा दिया था।
केंद्र सरकार ने बताया था कि 2022 में देशभर में कुत्तों के काटने के 21.89 लाख मामले सामने आए थे। 2023 में यह बढ़कर 30.52 लाख हो गए। वहीं, 2024 में कुत्तों के काटने की 37.15 लाख घटनाएं सामने आई थीं। यानी 2022 से 2024 के बीच कुत्तों के काटने की घटनाएं लगभग 70 फीसदी बढ़ गई हैं।
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... और रेबीज से मौतें?
दुनियाभर में रेबीज से सबसे ज्यादा मौतें भारत में ही होती हैं। संयुक्त राष्ट्र और WHO के मुताबिक, हर साल दुनियाभर में रेबीज से 60 हजार मौतें होती हैं। इनमें से 36% मौतें सिर्फ भारत में होती है। इसका मतलब हुआ कि अगर दुनिया में रेबीज से 100 मौतें हो रही हैं तो उनमें से 36 भारतीय हैं।
हालांकि, सरकार के आंकड़े कुछ और बताते हैं। अप्रैल में स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया था कि 2022 में कुत्तों के काटने के बाद रेबीज से 21 लोगों की मौत हुई थी। 2023 में रेबीज से 50 लोग मारे गए। जबकि, 2024 में रेबीज की वजह से 54 लोगों की मौत हो गई थी।
हालांकि, लैंसेट की स्टडी इस पर सवाल खड़े करती है। इसी साल जनवरी में साइंस जर्नल लैंसेट में एक स्टडी छपी थी। इसमें बताया गया था कि भारत में हर साल रेबीज से औसतन 5,726 मौत हो गई थी।
तो बच सकती है जान?
रेबीज एक ऐसी बीमारी है, जो सिर्फ कुत्तों के काटने से ही नहीं, बल्कि दूसरे जानवरों के काटने से भी होती है। हालांकि, इंसानों में होने वाले रेबीज की 99% वजह कुत्तों के काटने से होती है।
WHO का कहना है कि रेबीज एक ऐसी बीमारी है, जिसका समय पर इलाज हो तो पूरी तरह से बचा जा सकता है। अगर इसके इलाज में थोड़ी भी देर होती है तो इससे बचना नामुमकीन है।
कुत्ते या किसी जानवर के काटने या लार के संपर्क में आने से रेबीज हो सकता है। यह वायरस न्यूरो सिस्टम पर हमला करता है। अगर एक बार वायरस दिमाग में पहुंच जाए तो इससे बचना मुश्किल होता है।
अगर कुत्ते ने काट लिया है तो उस जगह पर साबुन और पानी से कम से कम 15 मिनट तक धोएं। एंटीसेप्टिक लगाएं। अगर कुत्ता स्ट्रे है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और एंटी-रेबीज वैक्सीन लगवाएं। अगर कुत्ता पालतू है तो भी डॉक्टर को दिखाएं।
रेबीज का 100% इलाज है, बशर्ते समय पर हो जाए। रेबीज से बचने का यही तरीका है कि कुत्तों का भी वैक्सीनेशन किया जाए। 2021 में केंद्र सरकार ने एक नया कार्यक्रम शुरू किया था, जिसका मकसद 2030 तक कुत्तों से होने वाली रेबीज को खत्म करना है।
