कैश कांड के आरोपी जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही इस मुद्दे पर एकजुट हैं। अगर संसद के दोनों सदनों से जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पास होता है, तो उन्हें अपना पद छोड़ना होगा। इसके साथ ही आजाद भारत में वह पहले ऐसे जज होंगे, जिनके खिलाफ इस तरह की कार्रवाई होगी।

 

इससे बचने के लिए जस्टिस वर्मा ने अपने बचाव में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इसमें जस्टिस वर्मा ने उनके घर पर जले नकदी नोट मामले में इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर आज फैसला सुरक्षित रख लिया है। हैरानी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में दर्ज केस में जस्टिस वर्मा का नाम नहीं है। इस केस का नाम 'XXX बनाम भारत सरकार' रखा गया है।

 

इस स्टोरी में जानते हैं कि जस्टिस वर्मा के केस का नाम 'XXX बनाम भारत सरकार' क्यों रखा गया है? उन्हें नाम छिपाने की इजाजत कैसे मिली, क्या कोई भी याचिकाककर्ता नाम छिपा सकता है?

 

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'XXX बनाम भारत सरकार' क्यों?

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वर्मा केस में पहली सुनवाई 28 जुलाई को हुई थी। इस दौरान सुनवाई के लिए लिस्ट हुए केस की सूची में जस्टिस वर्मा से जुड़े इस मामले का जिक्र 'XXX बनाम भारत संघ' के रूप में किया गया। यहां 'XXX' का जस्टिस वर्मा हैं। दरअसल, जस्टिस वर्मा ने याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपनी पहचान गुप्त रखने की इजाजत मांगी थी। संसद में महाभियोग की कार्रवाई का सामना कर रहे न्यायाधीश ने कहा था कि सार्वजनिक रूप से अपनी पहचान उजागर करने से उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा।

 

खासकर तब जब उनके खिलाफ आरोप अभी तक साबित नहीं हुए हैं। संभव है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मांग को स्वीकार कर लिया। इसी वजह से सूची में उनके नाम की जगह 'XXX' लिखा गया। इससे पहले भी याचिकाकर्ताओं की पहचान छिपाने के लिए 'XXX' का इस्तेमाल कई मौकों पर हुआ है लेकिन सिर्फ यौन उत्पीड़न या बलात्कार की शिकार महिलाओं के नाम की जगह ही XXX लगाया जाता था। किशोरों और नाबालिगों से जुड़े मामलों में भी उनकी पहचान उजागर होने से रोकने के लिए 'XXX' इस्तेमाल किया जाता है। ऐसै पहली बार हो रहा है, जब एक जज को अपने नाम की जगह याचिका में 'XXX' इस्तेमाल करना पड़ रहा है।

 

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क्या कोई भी शख्स अपनी पहचान छिपा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के वकील कपिल सांखला के मुताबिक, पहचान छिपाने के लिए कुछ लोगों को कानून खुुद अधिकार देता है, जैसे नाबालिग या यौन शोषण के पीड़ित। वहीं, कुछ मामलों में जब एक पार्टी की पहचान के बारे में जानकारी ही न हो, तब भी XXX जैसे नाम का इस्तेमाल किया जाता है। 

 

अनजान लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के दौरान कुछ चुनिंदा तरीके के नाम जैसे XXX इस्तेमाल करने को जॉन डो ऑर्डर कहा जाता है। यह एक तरह का लीगल ऑर्डर है जिससे कोई शख्स किसी अनजान के खिलाफ लीगल ऐक्शन ले सकता है। इसका ज्यादातर इस्तेमाल तब होता है कानूनी कार्रवाई के दौरान आरोपी की पहचान की जानकारी न हो।

 

भारत में इसे अशोक कुमार ऑर्डर कहते हैं। इसकी वजह यह है कि जिन मामलों में यह पता नहीं होता कि किस के खिलाफ केस दर्ज करना है जैसे चोरी या इंटरनेट पर हुआ कोई अपराध जिसमें अरोपी की जानकारी न हो। इन मामलों में अशोक कुमार नाम का इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के तौर पर अशोक कुमार बनाम बिहार सरकार या अशोक कुमार बनाम भारत सरकार।

 

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ए़डवोकेट सांखला बताते हैं, 'जस्टिस वर्मा का मामला अलग है, यहां कानून  या नियमों का पालन करने के लिए उनके नाम की जगह XXX नहीं लिखा गया है। इस मामले में न्यायिक विवेकाधिकार के चलते जस्टिस वर्मा को नाम छिपाने की इजाजत मिली है। यानी कोर्ट ने अपनी तरफ से उन्हें पहचान छिपाने की छूट दी है।' 

 

नाम छिपाने से जस्टिस वर्मा को क्या फायदा?

कपिल सांखला के मुताबिक, पहचान छिपाए जाने से केस पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। हालांकि, इससे फायदा यह होगा कि जिसने अपनी पहचान छिपाई है, वह यह अपील कर सकता है कि इसके केस से जुड़ी जजमेंट पब्लिक न की जाए। यानी उस मामले में आए फैसले को वह सार्वजनिक होने से बचा सकता है। आमतौर पर किसी भी आरोपी के केस के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है लेकिन इस मामले में जजमेंट प्राइवेट रहने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है।