मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों में OBC नौकियों में 27 फीसदी आरक्षण पर देशभर में हंगामा भरपा है। सबके निशाने पर मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया है, महाजन आयोग की सिफारिशों का हवाला दिया गया है। सोशल मीडिया पर मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार सबके निशाने पर है। लोग कह रहे हैं कि हिंदुत्व की बात करने वाली मोहन यादव सरकार, खुद जातिवादी है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण को लेकर 15,000 पन्नों के दस्तावेज पेश किए हैं, जिसकी वजह से यह हंगामा हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट 8 अक्तूबर को पूरे मामले की सुनवाई करने वाला है।
दस्तावेजों में कुछ ऐसा है, जो विवाद के मूल में है। महाजन आयोग की रिपोर्ट के कुछ दस्तावेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिनमें भगवान राम को हत्यारा और गुरु द्रोणाचार्य को भेदभाव करने वाले शिक्षक के तौर पर पेश किया गया है। मध्य प्रदेश की सियासत में हंगामा बरपने की सबसे बड़ी वजह यही है। दस्तावेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिनमें जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था की तीखी आलोचना की है। सरकार वायरल हलफनामे से दूरी बरत रही है लेकिन लोग सरकार की बात का यकीन नहीं कर रहे हैं।
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कौन थे रामजी महाजन?
रामजी महाजन की सियासत बैतूल जिले से शुरू हुई थी। 80 के दशक में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे। उन्होंने मध्य प्रदेश में पिछड़ों की स्थिति पर एक आयोग गठित किया था। उसका नाम रामजी महाजन आयोग था। इसके मुखिया भी रामजी महाजन थे। आयोग की रिपोर्ट 1983 में आई थी। रामजी महाजन दिग्विजय सिंह सरकार में भी मंत्री भी रहे रहे थे। रिपोर्ट में कई घटनाएं ऐसी थीं, जिनका कोई लिखित इतिहास नहीं था। रिपोर्ट का ज्यादा जिक्र तब नहीं हुआ था। मध्य प्रदेश में मोहन यादव सरकार यह रिपोर्ट लेकर आई है।
रामजी महाजन ने 1980 के दशक में मध्य प्रदेश में पिछड़े वर्गों (OBC) के सर्वेक्षण और आरक्षण संबंधी सिफारिशों के लिए एक महत्वपूर्ण आयोग का नेतृत्व किया। वे मध्य प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रहे। इसे महाजन आयोग के नाम से जाना गया। यह आयोग 1983 में गठित किया गया था। रामजी महाजन की अध्यक्षता में इसने OBC वर्गों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन किया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में OBC के लिए 35 फीसदी आरक्षण की अनुशंसा की थी। आयोग ने इसे सामाजिक न्याय के प्रयासों का हिस्सा बताया था।
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क्यों हंगामा बरपा है?
महाजन आयोग की रिपोर्ट में महाभारत, रामायण जैसे हिंदू धर्म ग्रंथों के संदर्भों पर बात की गई थी। सामाजिक व्यवस्था और जातिगत ऊंच-नीच की घटनाओं के धार्मिक प्रंसग दिए गए थे। OBC समुदाय के लिए अतिरिक्त आरक्षण देने पर जोर दिया गया था।'
रिपोर्ट का वायरल हिस्सा क्या है?
'वाल्मिकी रामायण में एक शूद्र शम्बूक की प्रसिद्धा कहानी आती है, जिसने उत्तराखंड के वनों में किसी वृक्ष पर अपने पैरों के बल उल्टा लटक कर 12 वर्षों तक गहन तपस्या की थी। एक ब्राह्मण लड़की की मृत्यु पर जिसाक पिता अभी जीवित था, उसके कुछ रिश्तेदारों ने राम से शिकायत की कि वह आघात इसलिए लगा है, क्योंकि शम्बूक ने जो शूद्र है, तपस्या करके धर्म विरोधी कार्य किया था राम उत्तराखंड वनों में गए और इस आरोप की सत्ययता का पता लगाने के बाद शम्बूक का इस दुस्साहस के लिए सिर काट दिया।'
'महाभारत में एक भील लड़के एकलव्य की कहानी दी गई है, जो धनुर्विद्या सीखने के लिए गुरु द्रोणाचार्य के पास गया था। गुरु ने उसे शिष्य बनाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि यह विद्या केवल क्षत्रियों को ही सिखाई जा सकती थी। एक दिन द्रोणाचार्य अपने शिष्यों, कौरवों और पांडवों के साथ धनुर्विद्या के अभ्यास के लिए वनों में गए। दल के साथ-साथ चलने वाला एक कुत्ता जब भोंकने लगा तो एक तीर उसके मुख में आकर लगा। धनु्षधारी, छुपकर पर बैठा हुआ था और कुत्ते के भौंकने की दिशा को ही लक्ष्य बनाकर उसने तीर छोड़ा था। द्रोणाचार्य जानते थे केवल अर्जुन में ही ऐसी कमाल दिखाने की योग्यता थी। उन्होंने निशानेबाज को पुकारा और एकलव्य जंगल में बाहर आया। उसने अफने तीर से कुत्ते को मारने का अफराध स्वीकार कर दिया। अपने गुरु का नाम बताने के बारे में पूछे जाने उसने कहा कि वह द्रोणाचार्य का शिष्य था। इस संबंध में उसने पहले वाली घटना की याद दिलाई और बताया कि उसने धनुर्विद्या द्रोणाचार्य की मूर्ति से सीखी थी, जिसे उसने जंगल में खड़ा कर रखा था। द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षक्षिणा के रूप में एकलव्य से उसके दाएं हाथ का अंगूठा मांग लिया। एकलव्य ने फौरन अपने गुरु की इच्छाओं को पूरा किया। यद्यपि वह अपने अंगूठे कटे हाथ से फिर कभी तीर नहीं चला सकता था।'
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मध्य प्रदेश सरकार क्या चाहती है?
मध्य प्रदेश सरकार ने अपने OBC आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने के फैसले का बचाव सुप्रीम कोर्ट में कर रही है। सरकार ने कहा है कि राज्य की 85 फीसदी से ज्यादा आबादी पिछड़े समुदाय से आती है। यह आबादी आज भी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से बहुत पीछे है। आबादी के हिसाब से 27 फीसदी आरक्षण वक्त की मांग है, इसलिए यह संवैधानिक है।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 2011 की जनगणना और 2022 की OBC कमीशन की रिपोर्ट का हवाला दिया था। ओबीसी की आबादी आधी जनसंख्या से ज्यादा है। उन्हें सिर्फ 14 फीसदी आरक्षण मिलता था, जो उनकी आबादी के हिसाब से बहुत कम था। मध्य प्रदेश में अनुसूचित जातियों को 16 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों को 20 फीसदी आरक्षण मिलता है।
अगर ओबीसी को 27 फीसदी मिल गया तो कुल आरक्षण 50 फीसदी की सीमा से ऊपर हो जाएगा। अब अगर आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों को भी 10 फीसदी जोड़ दिया जाए तो यह बढ़कर 73 फीसदी हो जाएगा।
मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 1992 के इंदिरा साहनी फैसले के मुताबिक इस सीमा को असाधारण परिस्थिति में रखा जा सकता है। यहां की पिछड़ी जातियों की आबादी ज्यादा है, शैक्षणिक पिछड़ापन ज्यादा है। सरकार ने कहा कि पिछड़ी जातियों को अभी भी भेदभाव, आर्थिक समस्या और अशिक्षा से जूझना पड़ रहा है। यहां राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी है। उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण जरूरी है।
साल 2019 में सरकार ने पुराने कमीशन और रिपोर्ट के बारे में बताकर 27 फीसदी आरक्षण लागू किया था, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे 14 फीसदी तक सीमित किया था। अब सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 8 अक्टूबर 2025 से ही इस केस पर नियमित सुनवाई होगी। सरकार ने कोर्ट से कहा है कि भर्तीयां रुकी हुई हैं, कई सरकारी पद खाली हैं और इससे राज्य को नुकसान हो रहा है।
सु्प्रीम कोर्ट क्यों जाना पड़ा?
साल 2019 में कमलनाथ सरकार ने मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को बढ़ाकर 14 फीसदी से 27 फीसदी कर दिया था। जबलपुर हाई कोर्ट में एक याचिका दायर हुई, जिसमें कहा गया कि इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट से तय किए गए 50 फीसदी ओबीसी आरक्षण का यह उल्लंघन कर रहा है। हाई कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी। अब सुप्रीम कोर्ट में 8 अक्तूबर से इस केस पर नियमित सुनवाई होगी।
लोगों ने क्या कहा?
लोगों की राय इस पर बंटी हुई है। कुछ लोग कह रहे हैं कि हिंदुत्व की बात करने वाली पार्टी, राम विरोधी बातें अदालत में कह रही है। यह विवाद यहां तक बढ़ गया सरकार को स्पष्टीकरण तक जारी करना पड़ गया।
प्रभु पटेरिया ने X पर लिखा, 'राम का नाम वाले रामजी महाजन की 42 साल पुरानी पिछड़ा वर्ग आयोग रिपोर्ट में भगवान राम को लेकर उद्धृत की गई एक कहानी न सिर्फ भांति भांति के उपमा अलंकार ट्रेंड करा रही है, बल्कि इस अंगार को चिमटे से भी छूने न छूने के दावे करा रही है। लेकिन सोशल मीडिया पर ठीकरा शिफ्ट करने ट्रेंड के जवाब में ट्रेंड चलाने से फाइल के पन्ने ही खुल रहे हैं, न कि फाइल बंद हो रही है। सवाल यह है कि 1983 से अभी के पहले तक क्या किसी ने इस रिपोर्ट को पूरा पढ़ा भी नहीं था? न उन्होंने जिनके समय ये आई और न उन्होंने जिन्हें इस रिपोर्ट से ही कोविड-19 वायरस वाला अहसास हो रहा है। लगता है कि बस किताब पोटली में बंधती रही और अब जब खुली किसी को गंध तो किसी को सुगंध फैलाती लग रही है।'
मनीष यादव ने X पर लिखा, 'ये छद्म कांग्रेसी जिस रिपोर्ट में भगवान राम के अपमान की बात कह रहे हैं, उस रिपोर्ट को 1983 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को सौंपते मंत्री रामजी महाजन। इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने हाई कोर्ट में केस फाइल किया जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। हिंदुत्व का सबसे बड़ा खतरा कांग्रेस थी ,कांग्रेस है और कांग्रेस रहेगी। इनकी समाज को बांटने की साजिश का हिस्सा हमे नहीं बनना है। मोदी हों या मोहन यादव, सबका साथ-सबका विकास के आधार पर समाज की सेवा कर रहे हैं।'
सरकार ने क्या कहा है?
सरकार का कहना है कि जिस हिस्से पर हंगामा हो रहा है, वह दरअसल हलफनामा का हिस्सा नहीं है। सरकार ने कहा है कि यह भ्रामक तरीके से प्रचारित किया जा रहा है। बिना संदर्भ को समझे लोग शेयर कर रहे हैं। ऐसे हलफनामे सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत होते रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार सबके विकास के लिए प्रयासरत है।
