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OBC कोटे पर हलफनामा, MP सरकार 'एंटी-हिंदू विवाद' में क्यों घिर गई?

OBC आरक्षण को लेकर एमपी की बीजेपी सरकार निशाने पर आ गई है। सोशल मीडिया पर यूजर्स सरकार को 'हिंदू-विरोधी' बता रहे हैं। क्या है पूरा मामला? समझते हैं।

mp obc quota

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार OBC आरक्षण को लेकर फंसती दिख रही है। OBC को 27% आरक्षण दिए जाने को लेकर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया है, उसे अब 'हिंदू विरोधी' बताया जा रहा है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सरकार के इस हलफनामे पर सवाल उठाए हैं। 


हलफनामे में एमपी की बीजेपी सरकार ने 27% OBC कोटे का बचाव किया था। सरकार ने कहा था कि राज्य में इनकी आबादी 50% से ज्यादा है, इसलिए 27% कोटा दिया जा सकता है।


अपने हलफनामे में एमपी सरकार ने 1983 की महाजन आयोग की रिपोर्ट भी लगाई है। इस रिपोर्ट के कुछ कथित हिस्से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर यूजर्स इसे सरकार की 'हिंदू विरोधी' सोच बता रहे हैं। हालांकि, बीजेपी का दावा है कि सोशल मीडिया पर जिन हिस्सों को वायरल किया जा रहा है, वह एमपी सरकार के हलफनामे के नहीं हैं।

 

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क्या है यह पूरा मामला?

मध्य प्रदेश में अभी कुल 60% आरक्षण है। इसमें अनुसूचित जाति (SC) को 16%, अनुसूचित जनजाति (ST) को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 14% आरक्षण मिलता है। इनके अलावा 10% आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए है।


मार्च 2019 में जब एमपी में कांग्रेस की सरकार थी, तब अध्यादेश के जरिए OBC आरक्षण को बढ़ाकर 27% किया गया था। मार्च 2020 में हाई कोर्ट ने इस पर इस आधार पर रोक लगा दी थी कि इससे 50% आरक्षण की सीमा टूटती है। इसके बाद 2022 में हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी किया और साफ किया कि 14% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता।


फरवरी 2025 में एमपी सरकार ने 27% OBC आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई पर रोक लगा दी। 

 

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सुप्रीम कोर्ट में सरकार का वह हलफनामा

मामला सुप्रीम कोर्ट गया। 27% आरक्षण को चुनौती भी दी गई। 23 सितंबर को एमपी सरकार ने अदालत में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें 27% आरक्षण का बचाव किया गया।


सरकार ने अपने हलफनामे में कहा, '2011 की जनगणना के मुताबिक, एमपी में SC की 15.6%, ST की 21.1% और OBC की 51% आबादी है। मध्य प्रदेश की 2022 की OBC आयोग की रिपोर्ट भी बताती है कि राज्य में OBC की आबादी 50% से ज्यादा है। इस तरह से राज्य में SC, ST और OBC की 87% से ज्यादा आबादी है। फिर भी OBC को 14% आरक्षण ही मिल रहा है, जो सही नहीं है। इसलिए 27% आरक्षण दिया जाना संवैधानिक रूप से सुधारात्मक कदम है।'


50% की लिमिट टूटने का तर्क देते हुए सरकार ने कहा, '1992 के इंदिरा साहनी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि असाधारण परिस्थितियों में 50% की लिमिट टूट सकती है। मध्य प्रदेश का मामला पूरी तरह से इन असाधारण परिस्थितियों में आता है।'


सरकार ने दलील दी है कि एमपी में OBC वर्ग सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर है। OBC आयोग की रिपोर्ट से पता चलता है कि लगभग आधी आबादी होने के बावजूद सरकारी नौकरियों में OBC का प्रतिनिधित्व न के बराबर है। उन्हें जातिगत भेदभाव के साथ-साथ कई बहिष्कारों का सामना भी करना पड़ता है। इसलिए इनके लिए सुरक्षात्मक उपाय करने की जरूरत है।


हलफनामे में राज्य सरकार ने कई और भी रिपोर्ट्स का हवाला दिया है। सरकार ने 1983 की महाजन आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में OBC को 35% आरक्षण दिया जाना चाहिए। हालांकि, 1994 के कानून के तहत OBC को सिर्फ 14% कोटा दिया गया। मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग ने 1996 से 2001 के बीच कई रिपोर्ट्स में कोटा 27% से 35% के बीच बढ़ाने की सिफारिश की थी।


सरकार ने यह भी दलील दी है कि आरक्षण का मामला अदालतों में होने के कारण भर्ती प्रक्रिया ठप पड़ी है। लगभग 4,700 से ज्यादा पद खाली हैं। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह बढ़े हुए आरक्षण के साथ भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की इजाजत दे।

 

इसमें 'हिंदू विरोधी' का मामला कैसे आया?

एमपी सरकार ने जो हलफनामा दाखिल किया था, उसके कुछ हिस्से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। वायरल हिस्सों में कथित तौर पर भगवान राम ने ऋषि शंभु का जो वध किया था, उस पर सवाल उठाए गए हैं।


यह भी आरोप लगाया गया है कि एकलव्य को उसकी भील पहचान के कारण धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया गया था। तर्क दिया गया है कि वर्ण व्यवस्था ने सदियों से 80% बहुजनों को उनके अधिकारों से वंचित रखा। कई सोशल मीडिया पोस्ट में यह भी दावा किया गया है कि हलफनामे में हिंदू धर्मग्रंथों का गलत हवाला दिया गया है।

 

 

 


एक यूजर ने लिखा, 'मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार का सुप्रीम कोर्ट में दिया गया हलफनामा सिर्फ एक दस्तावेज नहीं है, बल्कि हमारे लिए एक साफ चेतावनी है। वह पार्टी जो हमेशा हिंदुओं को एकजुट करने का दावा करती थी, आज अदालत में खड़े होकर हिंदू धर्म को अन्याय, शोषण और बुराई का प्रतीक बता रही है।'

 

बीजेपी बोली- सब झूठ है

बीजेपी ने सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावों को झूठा बताया है। एमपी बीजेपी ने X पर एक लंबी पोस्ट कर दावा किया है कि सोशल मीडिया पर जो दावा किया जा रहा है, उसका जिक्र सरकार के हलफनामे में नहीं है। 


बीजेपी ने कहा, सोशल मीडिया पर की जा रही टिप्पणियां और दावे पूरी तरह से झूठे और भ्रामक हैं और दुष्प्रचार की भावना से किए जा रहे हैं। 

 


एमपी बीजेपी ने लिखा, 'मध्यप्रदेश सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ एवं सामाजिक सद्भावना के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध है। शासन स्पष्ट करता है कि वायरल की जा रही सामग्री शासन के हलफ़नामे में उल्लेखित नहीं है और न ही राज्य शासन की किसी स्वीकृत या आधिकारिक नीति या निर्णय का हिस्सा है।'


बहरहाल , एमपी में OBC को 27% आरक्षण मिलेगा या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर की बेंच सुनवाई कर रही है। इस मामले पर अगली सुनवाई 8 अक्टूबर को होगी।

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