9 साल में ATM और कैश को खत्म नहीं कर पाया UPI, कैसे डिजिटल होगा भारत?
2016 में UPI सर्विस शुरू हुई थी। तब से यह लगातार बढ़ रही है। अब हर दिन 80 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का ट्रांजैक्शन UPI से हो रहा है। ऐसे में जानते हैं कि UPI आने के बाद कैश और ATM पर क्या असर पड़ा?

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
बस QR कोड स्कैन किया... फोनपे, गूगलपे, पेटीएम या कोई भी UPI खोली और कर दिया पेमेंट। इससे न तो बंधा हुआ नोट तुड़वाना पड़ा और दुकानदार के भी छुट्टे पैसे देने की झंझट खत्म हो गई। कुछ इस तरह से बदल गई है अब हमारी जिंदगी, आपकी जिंदगी और हम सबकी जिंदगी। खासकर पेमेंट के मामले में।
और ये सब कब हुआ? 2016 में जब नोटबंदी हुई। अचानक से 500 और 1000 रुपये के नोट को बंद कर दिया। तब कैश रखना जरूरत हुआ करता था। मगर नोटबंदी से जेब में रखा कैश किसी मतलब का नहीं रह गया था। ऐसे में भारत में UPI पेमेंट सिस्टम ने रफ्तार पकड़ी और आज यह हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। UPI की खास बात यह है कि इससे छोटा सा छोटा ट्रांजैक्शन भी किया जा सकता है। पहले बैंक अकाउंट में कितना पैसा बाकी है? यह जानने के लिए या तो बैंक जाना पड़ता था या फिर ATM। लेकिन अब UPI ऐप्स पर अकाउंट का बैलेंस भी चेक किया जा सकता है। किसी से पैसे उधार लेने हों या किसी को उधार देने हों, ये काम भी पल भर में UPI से ही हो जाता है।
UPI की बदौलत ही टेक्नोलॉजी से थोड़ा बचकर चलने वालों की भारतीयों की जिंदगी अब डिजिटल पेमेंट पर निर्भर हो गई है। जेब और पर्स में नकद रखकर घूमने वाले भारतीय अब फोन उठाते हैं और खरीदारी करने चल पड़ते हैं। अब आलम यह है कि हर दिन UPI से ही लगभग 80 हजार करोड़ रुपये का लेन-देन होता है।
UPI कैसे बना डिजिटल पेमेंट का 'बॉस'
भारत का UPI एक IMPS इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम करता है, जिससे एक बैंक से दूसरे बैंक में पैसे ट्रांसफर करना आसान हो जाता है।
UPI को 2016 में लॉन्च किया गया था और तब से अब तक इसके यूजर्स लगातार बढ़ रहे हैं। UPI का सारा काम नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) संभालती है। NPCI हर महीने के ट्रांजैक्शन का डेटा अपनी वेबसाइट पर देती है। इसके आंकड़े बताते हैं कि जुलाई 2016 में सिर्फ 38 लाख रुपये का लेन-देन ही UPI से हुआ था। नवंबर 2016 में जब नोटबंदी हुई थी, तब 100 लाख करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन UPI के जरिए हुआ था।
NPCI के डेटा से पता चलता है कि 2016-17 में 7 हजार करोड़ रुपये से भी का लेन-देन UPI से हुआ था। हालांकि, उसके बाद से यह लगातार बढ़ता जा रहा है। 2017-18 में एक लाख करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन UPI से किया गया था। वहीं, 2018-19 में यह और बढ़कर 8.77 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया।

अब हर साल UPI से होने वाला ट्रांजैक्शन रिकॉर्ड तोड़ रहा है। 2022-23 में देशभर में UPI के जरिए 148.81 लाख करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन हुआ था। 2024-25 में यह बढ़कर 260.56 लाख करोड़ रुपये के पार चला गया। यानी 4 साल में ही UPI से होने वाला लेन-देन लगभग दोगुना हो गया। 2025-26 के सिर्फ 5 महीनों- अप्रैल से अगस्त के बीच ही 123 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का लेन-देन हो चुका है।
इतना ही नहीं, अब UPI से हर दिन होने वाला औसत लेन-देन भी खूब बढ़ रहा है। NPCI के मुताबिक, जनवरी 2025 में UPI के जरिए हर दिन औसतन 75,743 करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ था। अगस्त तक यह बढ़कर 80,176 करोड़ रुपये हो गया। सितंबर की 21 तारीख तक ही हर दिन औसतन 83,200 करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन UPI से हो रहा है। यह आंकड़ा अभी और बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि 22 तारीख से GST की नई दरें लागू हो गई हैं। इसके बाद खरीदारी खूब बढ़ी है।

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क्या UPI नकदी को खत्म कर रहा है?
एक वक्त था जब भारतीय अर्थव्यवस्था नकदी पर चलती थी। ज्यादातर लोग डिजिटल पेमेंट पर भरोसा नहीं करते थे या यूं कहे कि इसका इस्तेमाल करने से डरते थे। मगर अब ट्रेंड बदला है। लोग नकदी की बजाय डिजिटल पेमेंट ज्यादा कर रहे हैं।
सितंबर में RBI की रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि कैसे UPI से अब नकदी की मांग कम हो रही है। इसमें बताया गया था कि अब जितनी भी डिजिटल पेमेंट हो रही है, उसमें से 84% से ज्यादा UPI के जरिए हो रही है। इसका मतलब हुआ कि अगर डिजिटल पेमेंट से 100 रुपये का ट्रांजैक्शन हुआ था तो उसमें से 84 रुपये सिर्फ UPI के जरिए हुआ था।
RBI ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि बढ़ती डिजिटल लिटरेसी और UPI की आसान तकनीक की बदौलत डिजिटल पेमेंट तेजी से बढ़ रही है।

UPI और डिजिटल पेमेंट बढ़ने के कारण अब नकदी की मांग कम हो रही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि नकदी खत्म होती जा रही है। नकदी भी बढ़ रही है लेकिन इसके बढ़ने की रफ्तार कम हो गई है। RBI की रिपोर्ट बताती है कि हालिया सालों में नकदी की मांग 4 से 6 फीसदी की दर से ही बढ़ी है।
RBI की रिपोर्ट के मुताबिक, GDP में नकदी की हिस्सेदारी अब घट रही है, जो दिखाता है कि डिमांड कम हो रही है। 2020-21 में GDP में नकदी की हिस्सेदारी 14.4% थी, जो 2023-24 तक घटकर 11.7% पर आ गई। 2024-25 में GDP में नकदी की हिस्सेदारी और कम होकर 11.2% हो गई। हालांकि, इसकी एक वजह यह भी है कि सरकार ने धीरे-धीरे 2000 रुपये के नोट को पूरी तरह से बंद कर दिया।
RBI की सालाना रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022-23 तक 33.48 लाख करोड़ रुपये की नकदी चलन में थी। इकोनॉमिक्स की भाषा में इसे करंसी इन सर्कुलेशन (CIC) कहा जाता है। 2023-24 तक यह नकदी बढ़कर 34.77 लाख करोड़ रुपये हो गई। जबकि, 2024-25 तक यह और बढ़कर 36.86 लाख करोड़ रुपये के पार चली गई। यानी, अर्थव्यवस्था में अब भी नकदी चल रही है।

हालांकि, UPI और डिजिटल पेमेंट के बढ़ते इस्तेमाल के कारण ATM की संख्या और उससे निकाली जाने वाली रकम घट रही है।
RBI की मंथली रिपोर्ट बताती है कि अगस्त 2025 तक देशभर में 2.07 लाख ATM थे। अगस्त के महीने में इनसे 2.38 लाख करोड़ रुपये विदड्रॉ किए गए थे। अगर एक साल पीछे जाएं तो अगस्त 2024 तक ATM की संख्या 2.15 लाख से ज्यादा था। अगस्त 2024 में 2.53 लाख करोड़ रुपये निकाले गए थे। और थोड़ा पीछे जाएं तो अगस्त 2023 तक 2.19 लाख से ज्यादा ATM थे, जिनसे महीनेभर में 2.72 लाख करोड़ रुपये विदड्रॉ किए गए थे। देखा जाए तो दो साल में ATM से विदड्रॉल लगभग 12 फीसदी कम हो गया है।
कुल मिलाकर, भारत में UPI का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है। इसका असर नकदी की मांग पर पड़ रहा है। हालांकि, अभी भी भारत में अभी भी बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो UPI या डिजिटल पेमेंट की बजाय नकद में ही लेन-देन करता है। ये तबका छोटे राज्यों में रहता है। NPCI का डेटा बताता है कि 20 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अभी भी ऐसे हैं जहां UPI के जरिए 1% से भी कम लेन-देन होता है।
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