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मनमोहन के दौर में 29% तो मोदी सरकार में कितना गिरा रुपया? समझिए गणित

डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत फिर अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। अब एक डॉलर की कीमत लगभग 89 रुपये हो गई है। ऐसे में जानते हैं कि मनमोहन से मोदी सरकार तक रुपये की कीमत कितनी कम हुई है?

rupees dollar

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

रुपया कमजोर हो रहा है। अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। मंगलवार को रुपये में 47 पैसे की गिरावट आई। मंगलवार को एक डॉलर का भाव 88.74 रुपये पर आ गया था। बुधवार को भी रुपये में गिरावट आई। अब एक डॉलर का भाव लगभग 89 रुपये हो गया है। 


बुधवार को जब मार्केट खुला तो रुपया मजबूत था। हालांकि, कुछ देर में ही यह कमजोर हो गया। यह 88.82 तक पहुंच गया था। हालांकि, बाद में इसमें थोड़ी मजबूत हुई और यह 88.71 रुपये पर बंद हुआ। यानी, बुधवार को 1 डॉलर की कीमत 88.71 रुपये हो गई थी, जो मंगलवार को 88.74 रुपये थी।


रुपया कमजोर या मजबूत हो रहा है, इसका पता अमेरिकी डॉलर से तुलना करके लगाया जाता है। एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत जितनी कम होगी, रुपया उतना मजबूत होगा। एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत जितनी ज्यादा होगी, रुपया उतना कमजोर होगा।

 

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कमजोर क्यों होने लगा रुपया?

करंसी के कमजोर होने के कई कारण होते हैं। यह कई फैक्टर्स पर डिपेंड करता है। मसलन, स्टॉक मार्केट में विदेशी निवेशकों की बिकवाली के कारण भी रुपया कमजोर होता है। 


विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। इस हफ्ते के तीन दिन में ही विदेशी निवेशक लगभग 9 हजार करोड़ रुपये के शेयर बेच चुके हैं। सोमवार को विदेशी निवेशकों ने 2,910 करोड़ और मंगलवार को 3,551 करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर बेचे थे। बुधवार को 2,425 करोड़ रुपये की बिकवाली की थी। इससे रुपया कमजोर होता है और डॉलर मजबूत होता है।


रुपये में गिरावट में एक बड़ी वजह अमेरिकी सरकार का H-1B वीजा की फीस बढ़ना भी है। अमेरिकी सरकार अब H-1B वीजा के लिए 1 लाख डॉलर की फीस लेगी। इसने आईटी सर्विस पर सीधा असर डाला है। 


शेयरखान से जुड़े एनालिस्ट अनुज चौधरी ने न्यूज एजेंसी PTI से कहा, 'अमेरिकी वीजा की फीस बढ़ने से रुपया और कमजोर होने के आसार हैं। शेयर मार्केट में गिरावट और विदेशी निवेशकों की बिकवाली से रुपया और कमजोर हो सकता है।' उनका कहना है कि इस हफ्ते एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 88.40 से 89.25 के बीच रह सकती है।

 

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आखिर कितना कमजोर हो चुका है रुपया?

डॉलर की तुलना में किसी भी करेंसी की वैल्यू कम होती है तो उसे करेंसी का टूटना या कमजोर होना कहा जाता है। अर्थशास्त्र की भाषा में इसे 'करेंसी डेप्रिसिएशन' कहते हैं। ये पूरा खेल अंतर्राष्ट्रीय बाजार से चलता है। 


दरअसल, होता ये है कि हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है। चूंकि दुनियाभर में 90 फीसदी कारोबार अमेरिकी डॉलर से होता है, इसलिए विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर ही सबसे ज्यादा होता है। विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का होना बहुत जरूरी है, ताकि रुपया मजबूत हो सके।


बीते एक साल में रुपया काफी कमजोर हुआ है। सालभर में ही एक डॉलर के मुकाबले रुपया 6 प्रतिशत से ज्यादा कमजोर हो चुका है। पिछले साल 23 सितंबर को एक डॉलर का भाव 83.51 रुपये था। इस साल 23 सितंबर तक यह बढ़कर 88.74 रुपये हो गया है। 

 

 

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किस सरकार में कितना गिरा रुपया?

2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले पीएम नरेंद्र मोदी लगातार उस वक्त की कांग्रेस सरकार को रुपये की गिरती कीमत पर निशाने पर लेते थे।


मोदी ने 2013 में एक भाषण में कहा था कि रुपये की कीमत जिस तेजी से गिर रही है, उससे कभी-कभी तो लगता है कि दिल्ली सरकार और रुपये के बीच कंपीटीशन चल रहा है कि कौन कितनी तेजी से गिरेगा। तब उन्होंने कहा था कि आजादी के वक्त एक रुपया एक डॉलर के बराबर था। जब अटलजी ने सरकार बनाई तो भाव 42 रुपये तक पहुंच गया और जब छोड़ा तो 44 रुपये पर पहुंच गया था लेकिन इस सरकार में यह 60 रुपये पर पहुंच गया है।


हालांकि, अगर देखा जाए तो मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार में रुपये का भाव ज्यादा तेजी से कम हुआ है। RBI के आंकड़े बताते हैं कि मई 2004 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे, तब 1 डॉलर का भाव 45.45 रुपये था। जब मई 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो यह 58.58 पर पहुंच गया। अब एक डॉलर की कीमत लगभग 89 रुपये तक पहुंच गई है।


दोनों सरकारों की तुलना करें तो मनमोहन सरकार में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 29% तक कम हुई थी। वहीं, मोदी सरकार में अब तक 52% तक कम हो चुकी है। 

 

 

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कभी डॉलर-रुपये में बहुत फर्क नहीं था

अब जब बात डॉलर और रुपये की हो रही है तो थोड़ा इतिहास भी झांक लेते हैं। आजादी के वक्त 1947 में एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये थी। 1965 तक रुपया स्थिर रहा लेकिन 1966 के बाद से इसमें गिरावट आनी शुरू हो गई। 1975 तक आते-आते डॉलर का भाव 8 रुपये और 1985 तक 12 रुपये के पार चला गया। 1991 में आर्थिक उदारीकरण ने रुपये को और कमजोर किया। जनवरी 2001 तक डॉलर की कीमत 46 रुपये के पार चली गई। 2010 तक कीमत लगभग इतनी ही रही।

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